Why Navratri is celebrated for 9 days

नवरात्रि 



शारदीय नवरात्रि पर्व 

शारदीय नवरात्रि  2020 कब है :-


शारदीय नवरात्रि 17 अक्तूबर  से प्रारम्भ हो  गयी है. माँ की आराधना के, उपासना के ये ही नौं  दिन मुख्य होते है! * इन नौं दिनों में माँ तीन रूपों में पूजी जाती है माँ दुर्गा, माँ लक्ष्मी और माँ सरस्वती!*

हमारे पुराणों में बताया गया है की महिषासुर के वध के लिए सभी देवताओं ने माँ आदिशक्ति की उपासना की और तब माँ आदिशक्ति ने माँ दुर्गा का रूप लेकर महिषासुर का वध किया!

माँ को महिषासुर का  अंत करने के लिए पूरे नौं दिनों तक महिषासुर से युद्ध करना पड़ा और दसवे दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का अंत कर दिया, और माँ के संघर्ष ये नौं दिन ही  नवरात्रि के रूप में मनाये जाते है।  ये शक्ति का पर्व है! इन नौं दिनों में माँ की पूरे तन मन से उपासना करने से शक्ति में वृद्धि होती है!



नवरात्रि में माँ दुर्गा नौं रूपों में विराजती है और पूजी जाती है!

नवरात्री की 9 देवियोन के नाम :-


  • माँ शैलपुत्री        -  प्रथम 
  • माँ ब्रह्मचारिणी    - द्वितीय 
  • माँ चंद्रघंटा          - तृतीय 
  • माँ कूष्माण्डा        - चतुर्थी 
  • माँ स्कंदमाता       - पंचमी 
  • माँ कात्यायनी      - षष्टी 
  • माँ कालरात्रि        - सप्तमी 
  • माँ महागौरी          - अष्टमी 
  • माँ सिद्धिदात्रि       - नवमी
ऐसा माना जाता है की, जब भगवान राम ने रावण का वध किया था तो युद्ध के पहले नौं  दिनों तक माँ शक्ति की उपासना की थी और जब दसवे दिन श्री राम और रावण में युद्ध हुआ तब माँ दुर्गा भगवान श्री राम के चारों ओर उपस्थित थी भगवान राम को शक्ति प्रदान करने के लिए! इसीलिए आज भी दशहरा के दिन माँ की प्रतिमाये दशहरा  मैंदान पर लायी जाती है! * माँ 

*दुर्गा का ही एक नाम ओर भी है माँ पार्वती, माँ  पार्वती और महादेव से सम्बंधित कई कथाऐं  प्रचलित है! उनमें से एक कथानुसार * :-

माता शक्ति ने  जब माँ पार्वती के रूप में राजा हिमाचल के घर  जन्म लिया, तब राजा हिमाचल अपनी पुत्री को देखकर फूले नहीं समाते थे! अद्वितीय सौन्दर्य की धनि  और गुणों से परिपूर्ण माता पार्वती का बचपन हसी ख़ुशी व्यतीत होने लगा!



धीरे धीरे माँ पार्वती बड़ी होने लगी और माता- पिता को उनके विवाह की चिंता सताने लगी, तभी एक दिन नारदजी राजा हिमाचल के महल में पधारे ! नारदजी को महल में देखकर राजा हिमाचल ने हाथ जोड़कर उनका अभिवादन किया और उनका इस तरह अचानक महल में आने का प्रयोजन जानना चाहा!

नारदजी ने राजा हिमाचल से कहा की में आपकी पुत्री के विवाह के लिए एक प्रस्ताव लाया हूँ ।राजन आपकी अद्वितीय सौन्दर्यशीलएवं  गुणवान पुत्री के लिए श्री हरी विष्णु से अच्छा दूसरा वर इस संसार में नहीं मिलेगा! यह सुनकर राजा हिमाचल बहुत खुश हुए और उन्होंने नारदजी की बात मानते हुए अपनी पुत्री का विवाह श्री हरी विष्णुजी से करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, परन्तु माँ पार्वती ये सब बाते सुन रही थी, जब उन्हें यह पता चला की उनका विवाह विष्णुजी के साथ तय कर दिया गया है तो वो रोने लगी और उन्होंने अपनी सखी के पास जाकर यह सब बताया! उन्होंने अपनी सखी से कहा की  वो सिर्फ महादेव से ही विवाह करेंगी!
और तब उनकी सखी ने उनसे कहा की वो महल छोड़कर जंगल में चली जाये! माता पार्वती  ने अपनी सखी की बात मान ली और वो अपनी सखी को लेकर महल में बिना किसी को बताये जंगल चली गयी और घने जंगल के बीच एक कुटिया बनाकर रहने लगी!

जंगल में ही रहकर  माता पार्वती ने शंकर भगवान की कठोर तपस्या करना शुरू कर दी, और बहुत समय तक वो तपस्या में लीन रही!

दूसरी ओर महल में राजा हिमाचल बहुत  परेशान ओर दुःखी थे! उन्होंने माँ पार्वती को ढूढ़ने के हर संभव प्रयास किये परन्तु वे उन्हें ढूंढ नहीं पाए!



इधर जंगल में माता पार्वती की कठोर तपस्या से भगवान शंकरजी का आसन डोलने लगा, तब शंकरजी ने माता पार्वतीजी को दर्शन दिए और कहा,  आप वरदान मांगे! माता ने कहा प्रभु में आप को वर रूप में पाना चाहती हूँ! यह सुन शंकर भगवान ने कहा तथास्तु  और अंतर्ध्यान हो गए!

माँ पार्वती यह सुन बहुत खुश हुयी और अपनी सखी के साथ महल की और चल दी! रास्ते में उन्हें उनके पिता राजा हिमाचल अपने  सैनिको के साथ आते दिखाई दिए वो उनको ही जंगल में ढूढ़ रहे थे!

जब राजा हिमाचल ने अपनी पुत्री को इस तरह अचानक अपने सामने बिल्कुल सही सलामत देखा तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा! राजा हिमाचल ने दौड़कर अपनी पुत्री को गले से लगा लिया और उनसे  जंगल में आने का कारण पूछा!

माता पार्वती बोली पिताजी आपने मेरी इच्छा के विरुद्ध मेरा विवाह श्री हरी विष्णुजी के साथ तय कर दिया था, जबकि में सिर्फ महादेव से ही विवाह करना चाहती हूँ! यही कारण था की मैं  जंगल में आ गयी और भगवान शंकरजी की तपस्या करने लगी! यह बात सुनकर राजा हिमाचल ने कहा की तुम जहाँ विवाह करना चाहती हो मैं वही तुम्हारा विवाह कराऊंगा! 





महल आकर राजा हिमाचल पार्वतीजी के विवाह की तैयारियों में जुट गए और जल्द ही पार्वतीजी के विवाह का दिन भी आ गया!

भगवान  भोले भंडारी अपनी बारात लेकर राजा हिमाचल के द्वार पर आ जाते है! भगवान् शंकरजी की बारात में सभी देवता, ऋषि मुनि, गण , भूत पिशाच शामिल थे और भगवान् शंकर भभूत लपेटे नंदी पर सवार थे!  

अपनी पुत्री की बारात जैसे ही माता पार्वतीजी की माँ देखती है वो बेहोश हो जाती है! जब उन्हें होश में आता है तो  वो सोचने लगाती है ये कैसा बाबा जोगी वर के रूप में मेरी पुत्री ने चुन लिया! ये मेरी पुत्री को कहाँ लेकर जायेगा, क्या खिलायेगा! यही सोच कर बहुत दुखी होती है 

माँ की इस स्थिति को देखकर  माता पार्वती बहुत परेशान हो जाती है और तब शंकर भगवान से हाथ जोड़कर विनती करती है! हे प्रभु कृपा करके आप अपना और बारात का स्वरूप बदलने की कृपा करे, और तब भगवान् शंकर सुन्दर वस्त्र आभूषणों से सुसज्जित दूल्हे के रूप में आ जाते है और उनकी पूरी बारात भी सुंदर वस्त्र आभूषणों से सुसज्जित हो पुरे लाव लश्कर सहित एक भव्य बारात का रूप ले लेती है! इसके बाद भगवान का विवाह संपन्न होता है!



विवाह के बाद राजा हिमाचल सभी बारातियों को भोजन ग्रहण करने के लिए कहते है, तब महादेव अपने केवल दो गणों  को भोजन करने के लिए भेज देते है और रजा हिमाचल से कहते है की आप पहले मेरे इन दोनों गणों को  पेट भरकर भोजन करा दीजिये! दोनों गणों  को पुरे  आदर सम्मान के साथ भोजन कराया जाता है  देखते ही देखते पूरा भोजन ख़त्म हो जाता है! भंडारगृह कुछ ही पलों सारा खाली हो जाता है पर गणों की भूख समाप्त नहीं होती है! राजा हिमाचल खाली भंडारगृह  देखकर बहुत परेशान हो जाते है! 

तब माता पार्वती कच्चे सूत से हाथ बांधकर भगवान् के समक्ष आकर प्रार्थना करती है,  हे महादेव आपके तो दो ही गणों  ने पूरा भोजन समाप्त कर दिया है पर अभी भी उनकी भूख समाप्त नहीं हुयी है, अभी तो पूरी बारात को भी भोजन ग्रहण करना है! तब भगवान मुस्कराकर माँ को भभूत देते है और कहते है इसे आप सब जगह छिड़क दीजिये! माता भभूत लेकर पूरे महल में छिड़क देती है! कुछ ही देर में पूरा महल धन - धान्य से भर जाता है भंडारगृह में अनाज का  ढेर लग जाता है तरह तरह के पकवान, मिठाई, और भोजन से पूरा भंडारगृह भर जाता है! उसके बाद पूरी बारात  अच्छे से भोजन ग्रहण करती है! 

*इस तरह भगवान शिव और पार्वतीजी का विवाह संपन्न हो जाता है!* 




















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