Ancient history - Magadh samrajy/ haryak vansh ka snsthapak/shishunag vansh ka snsthapak/nand vansh ka snsthapak.
मगध राज्य का उत्कर्ष नोट्स
मगध राज्य का उत्कर्ष/ Magadh rajay ka utkarsh :-
प्राचीन काल में द० बिहार (आधुनिक पटना और गया जिला शामिल) को मगध के नाम से जाना जाता था। बुद्धकालीन समय में धीरे धीरे मगध महाजनपद राजनैतिक एवं धार्मिक दृष्टी से बहुत अधिक सुदृढ़ और शक्तिशाली होता गया ।अभियान चिंतामणि के अनुसार मगध को कीकट कहा गया है।
बृहद्रथ वंश:-
1) बृहद्रथ:-
- मगध के सबसे प्राचीन वंश के संस्थापक बृहद्रथ थे। महाभारत के अनुसार बृहद्रथ चेदिराज वसु के पुत्र थे।
- मगध की राजधानी गिरिब्रज (राजगृह) थी। ये चारों और से पर्वतों से घिरी होने कारण गिरिब्रज कहलाती थी।
2) जरासन्ध :-
- जरासन्ध बृहद्रथ का पुत्र था, और वह भी एक पराक्रमी राजा था।
- जरासन्ध की दो पुत्रियाँ थी अस्ति एवं प्रप्ति, जिनसे मथुरा नरेश महाराज कंस ने विवाह किया था।
- जरासन्ध की मृत्यु के बाद उसका पुत्र सहदेव गद्दी पर बैठा।
- इस वंश में 10 राजा हुए। अंतिम राजा रिपुंजय था।
हर्यक वंश :-
1) बिम्बसार :-
- हर्यक वंश का संस्थापक बिम्बसार था।
- बिम्बसार को मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। वह मगध की गद्दी पर 544 ईसा पूर्व में बैठा (बौद्ध ग्रन्थ के अनुसार)।
- विनयपिटक के अनुसार बिम्बसार ने महात्मा बुद्ध से मिलने के बाद बौद्ध धर्म ग्रहण किया। वह महात्मा बुद्ध का मित्र और संरक्षक भी था।
- बिम्बसार बौद्ध धर्म का अनुयायी था, पर साथ ही वह ब्राह्मणों एवं जैन धर्म के प्रति सहिष्णुता रखता था। वह बहुत ही कर्तव्यनिष्ठ राजा था।
- बिम्बसार ने ब्रह्यदत्त को हराकर अंग राज्य को मगध मे मिला लिया था। एवं अपने पुत्र अजातशत्रु को वहां का उपराजा बनाया था।
- बिम्बसार ने राजगृह का निर्माण कर उसे अपनी राजधानी बनाया।
- बिम्बसार एक बहुत ही शक्तिशाली राजा था। उसने मगध पर करीब 52 वर्षों तक शासन किया।
- वह पहला ऐसा शासक था जिसने स्थायी सेना रखी थी।
- बिम्बसार ने अपने राजवैद्य जीवक को महात्मा बुद्ध की सेवा में भेजा था। इसी प्रकार एक बार जब अवन्ति के राजा प्रद्योत जो की बिम्बसार के मित्र थे पाण्डु रोग से ग्रसित हो गए थे तब भी अपने राजवैद्य को उनकी सेवा में भेजा था।
- बिम्बसार ने तीन विवाह किये और वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
- 1) प्रथम विवाह, वैशाली के चेटक की पुत्री चेल्लना से।
- 2) द्वितीय विवाह, कौशल नरेश प्रसेनजित की बहन महाकोशला से।
- 3) तृतीय विवाह, मद्र देश (आधुनिक पंजाब) की राजकुमारी क्षेमा से।
- बिम्बसार ने अपने बड़े पुत्र दर्शक को उत्तराधिकारी बनाया था। परन्तु अजातशत्रु जो की बिम्बसार का पुत्र था, उसने महात्मा बुद्ध के विरोधि देवव्रत के भड़काने पर अपने पिता बिम्बसार की हत्या कर दी और स्वयं 493 ईसा पूर्व में मगध की गद्दी पर बैठ गया।
2) अजातशत्रु:-
- अजातशत्रु का उपनाम कुणिक था।
- अजातशत्रु ने 32 वर्षों तक मगध पर राज किया।उसने अपने पिता की तरह ही साम्राज्य विस्तार की निति अपनाई।
- बिम्बसार की इस प्रकार मृत्यु होने से अत्यंत दुखी उसकी पत्नी कौशला की भी मृत्यु हो जाती है तब प्रसेनजित अपनी बहन की मृत्यु से आहत होकर अजातशत्रु के विरुद्ध युद्ध छेड देता है। परन्तु इस युद्ध में उसकी पराजय हो जाती है । दूसरी बार युद्ध होने पर अजातशत्रु पराजित हो जाता है, तब प्रसेनजित ने अपनी पुत्री वाजिरा का विवाह अजातशत्रु से कर दिया और काशी को उपहार स्वरूप दहेज में दे दिया।
- अजातशत्रु का मंत्रि वर्षकार(वरस्कार) था। इसकी सहायता से उसने वैशाली पर विजय प्राप्त की थी।
- मगध में दो अत्यधिक शक्तिशाली राजा हुए। बिम्बसार एवं उनका पुत्र अजातशत्रु। ये सदैव अन्य जनपदों को जीतने की कोशिश में रहते थे इस तरह इन्होंने कई अन्य शक्तिशाली राज्यो को मगध में मिला लिया, और इस प्रकार मगध का विस्तार होता गया।
- अजातशत्रु प्रारम्भ में जैन धर्म का अनुयायी था। परन्तु ग्रन्थो के अनुसार वह बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों धर्मों का अनुयायी था।
- अजातशत्रु के शासनकाल में ही प्रथम बौद्ध संगीति 483 ईसा पूर्व राजगृह, सप्तकर्णि गुफा में आयोजित हुई थी। इस संगीति के अध्यक्ष महाकश्यप थे।
- अजातशत्रु के शासनकाल में ही 482 ईसा पूर्व में महात्मा बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ था। जिसके बाद अजातशत्रु ने उनके अवशेषों पर राजगृह में स्तूप का निर्माण करवाया था।
- भरहुत स्तूप में भी अजातशत्रु को महात्मा बुद्ध की वंदना करते हुए दिखाया गया है। इन सबसे ये पता चलता है की वे बौद्ध धर्म को भी मानता था।
- अजातशत्रु के शासनकाल में ही 468 ईसा पूर्व में महावीर स्वामी की मृत्यु हुई थी।
- अजातशत्रु का पुत्र था उदायिन। उदायिन ने 461 ईसा पूर्व में अजातशत्रु की हत्या कर दी और स्वयं गद्दी पर बैठ गया।
3) उदायिन :-
- उदायिन को बौद्ध ग्रन्थ में पितृहन्ता एवं जैन ग्रन्थ में पितृभक्त कहा गया है।
- उदायिन ने पाटलिग्राम की (गंगा और सोन नदी के संगम पर) स्थापना की।
- उसने पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाया।
- उदायिन जैनधर्म का अनुयायी था।
- उदायिन का पुत्र नागदशक था। जो की हर्यक वंश का अंतिम शासक था।
- नागदशक को उसके अमात्य शिशुनाग ने 412 ईसा पूर्व में अपदस्त करके मगध पर शिशुनाग वंश की स्थापना की।
शिशुनाग वंश
1) शिशुनाग:-
- शिशुनाग ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से हटाकर वैशाली में स्थापित की।
- शिशुनाग बहुत शक्तिशाली राजा था। उसने वत्स और अवन्ति को मगध में मिला लिया।
- शिशुनाग का उत्तराधिकारी कालाशोक था।
2) कालाशोक:-
- कालाशोक 394 ईसा पूर्व मगध की गद्दी पर बैठा।
- उसने अपनी राजधानी पुन: पाटलिपुत्र को बनाया।
- कालाशोक को महावंश में कालाशोक तथा पुराणों में काकवर्ण कहा गया है।
- कालाशोक शक्तिशाली राजा था इसने 28 वर्षों तक शासन किया।
- कालाशोक के शासनकाल में 383 ईसा पूर्व में द्वितीय बौद्ध संगीति, वैशाली में आयोजित हुई। जिसके अध्यक्ष सबाकामी थे।
- शिशुनाग वंश का अंतिम शासक नन्दिवर्धन था।
- इसके बाद नन्द वंश की स्थापना हुई।
नन्द वंश :-
1) महापद्मनन्द:-
- नन्द वंश का संस्थापक महापद्मनन्द था।
- महापद्मनन्द को पुराणों में महपद्म तथा महाबोधिवंश में उग्रसेन कहा गया। यह नाई जाती का था। इसे कई उपाधियाँ जैसे महापद्म एकारट, सर्व क्षत्रान्तक भी प्राप्त थी।
- नन्द वंश का अंतिम शासक घनानंद था।
- घनानंद, सिकंदर के समकालीन था।
- सिकन्दर ने इसके शासनकाल में भारत पर आक्रमण किया था।
- घनानंद एक शक्तिशाली राजा था उसने सत्ता के मद में एक महान विद्वान् ब्राह्मण चाणक्य को अपमानित किया था। तब चाणक्य ने अपनी कूटनीति से चन्द्रगुप्त मौर्य को घनानन्द के विरुद्ध खड़ा किया।
- घनानंद को चन्द्रगुप्त मौर्य ने युद्ध में पराजित कर मौर्य वंश की स्थापना की।
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