🎆 रक्षाबंधन 2022 🎆
रक्षाबंधन का त्यौहार, ये भाई बहन का वह पवित्र पर्व है जो उनके अटूट प्रेम और विश्वास को दर्शाता है। रक्षा बंधन अर्थात रक्षा का बंधन है ये। जब बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर अपनी रक्षा का दायित्व उसे सौंपती है और उसकी लंबी आयु एवं सुखी जीवन की भगवान से प्रार्थना करती है तो वहीँ, भाई अपनी बहन के इस प्यार भरे तोहफे को सहर्ष स्वीकार कर सदैव उसकी रक्षा का विश्वास उसे दिलाता है। यह प्रथा वर्षों से चली आ रही है और सदैव यूँही चलती रहेगी।
रक्षाबंधन 2022 कब है/ Rakshabandhan 2022 date :-
,रक्षाबंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है और इस वर्ष यह पर्व 11 अगस्त 2022 को मनाया जायेगा।
रक्षाबंधन कैसे मनाते है/ Rakshabandhan kaise manate hai :-
यह त्यौहार क्योंकि भाई बहन का है अतः बहने अपने भाई के लिए मिठाईयां, पकवान बनाती है। हाथों में शगुन की मेंहदी लगाती है।
रक्षाबंधन त्यौहार पर कई तरह के पकवान, मिठाइयां बनाई जाती है। जिसमे खासतौर पर गुजियां, बेसन के लड्डू, बेसन की बर्फी, गुलाबजामुन, बेसन की पपड़ी जैसी कई तरह मिठाइयां बनायीं जाती है।
रक्षाबंधन के दिन बहने सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नान कर नए वस्त्र पहनती है। एक थाली में रोली, अक्षत, नारियल, दीपक और राखी रखकर आरती की थाल सजाती है। फिर भाई को बिठाकर सर्वप्रथम नारियल देती है रोली से तिलक करती है और मिठाई खिलाकर मुंह मीठा करती है, उसके बाद आरती उतारती है और भगवान् से भाई के दीर्घायु होने की कामना करती है। बदले में भाई बहन के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेता है और कुछ उपहार देता है।
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Rakshabandhan wishes 2022
रक्षा बंधन के दिन बहन भाई के घर मिठाई लेकर राखी बंधने जाती है परंतु यदि किसी कारणवश बहन भाई के घर ना जा पाये तो भाई अपनी बहन के घर राखी बंधवाने जाता है। या फिर बहन दूसरे शहर में ज्यादा दूर रहती है तो डाक द्वारा भी भाई के लिए राखी भेजती है। हिन्दू धर्म में राखी मनाने की यही प्रथा चली आ रही है।
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Festival of Rakhi |
रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है /
Rakshabandha ka etihas
Rakshabandhan kyo manaya jata hai. या रक्षाबंधन की प्रथा कैसे प्रारंम्भ हुई इससे जुडी कई पौराणिक कथाये प्रचलित है। रक्षाबंधन का इतिहास बहुत प्राचीन है। यहां हम उन्ही में से कुछ पौराणिक कथायें एवं कहानियों का उल्लेख करेंगें।
1. भगवान् श्री कृष्ण और द्रोपदी से सबंधित कथा :-
पौराणिक कथानुसार शिशुपाल, भगवान् श्री कृष्ण की बुआ के पुत्र थे। जब शिशुपाल की माता को यह बात ज्ञात हुई की शिशुपाल का वध भगवान् कृष्ण के हाथों होगा तब उन्होंने भगवान् कृष्ण से विनती की और तब भगवान् कृष्ण ने अपनी बुआ को यह वचन दिया था की वे शिशुपाल के 100 अपराध क्षमा करेगे, परंतु अगर शिशुपाल ने 100 के आगे एक भी गलती की तो वे उसका वध कर देगें।
एक बार जब महाराज युधिष्ठर की सभा में वहां उपस्थित सभी लोगों में से भगवान श्री कृष्ण को सबसे श्रेष्ठ मानते हुए सर्वप्रथम उनकी पूजा की जा रही थी की तभी शिशुपाल ने वहां आकर भगवान् कृष्ण का अपमान किया उन्हें अपशब्द कहे। तब भगवान् ने उसे सावधान भी किया की उसके 100 अपराध पूरे होने वाले है अतः वह सावधान हो जाये।परन्तु शिशुपाल नहीं रुका और उसके 101 अपराध करते ही भगवान् श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल की गर्दन काट दी।
इस घटना के बाद भगवान् की उंगली में सुदर्शन चक्र के कारण चोट लग गई और रक्त निकलने लगा, तभी वहां खड़ी द्रोपदी ने जैसे ही भगवान् कृष्ण की उंगली से रक्त बहते देखा, उन्होंने तुरंत अपनी साड़ी के पल्ले को फाड़ कर उनकी उंगली में पट्टी बांध दी और रक्त बहना बंद हो गया। यह देख भगवान ने उन्हें वचन दिया की समय आने पर वे उनकी रक्षा अवश्य करेगे। इसके बाद जब द्रोपदी को भरी सभा में अपमानित कर उनका चीरहरण किया जा रहा था तब भगवान कृष्ण ने द्रोपदी की रक्षा कर उनका सम्मान बचाया और अपना वचन पूरा किया।
द्रोपदीजी ने जब भगवान कृष्ण की उंगली में पट्टी बाँधी थी उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। उस दिन द्रोपदी ने भगवान कृष्ण को एक सूत्र से बांध दिया था। इसलिए श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है।
2. भगवान् विष्णु एवं राजा बलि की कथा:-
पद्मपुराण, स्कन्द पुराण, श्रीमद्भागवत में भी रक्षाबंधन का उल्लेख मिलता है।
राजा बलि बहुत बड़े दानवीर थे। एक बार जब भगवान् विष्णु ने वामावतार रूप लेकर राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी और तीन पग भूमि में उन्होंने धरती, आकाश, पाताल नाप लिया तथा राजा बलि को पाताल में पहुंचा दिया था। कुछ समय पश्चात राजा बलि ने तपस्या कर भगवान विष्णु को प्रसन्न कर लिया। प्रसन्न होकर भगवान् ने राजा बलि से वरदान मांगने के लिए कहा। तब राजा बली ने भगवान् से वरदान माँगा की आप मेरे यहाँ पाताल लोक में ही रहेंगे। और भगवान् ने तथास्तु कह कर उनकी बात मान ली। परंतु जब भगवान् विष्णु पाताल लोक में रहने लगे और अपने धाम वापस नहीं गए, तब माता लक्ष्मी एवं अन्य देवता परेशान हो गए, और तब नारदजी की सलाह मानकर श्रावण मास की पूर्णिमा को माता लक्ष्मी पाताल लोक गई और राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधकर भगवान विष्णु को वापस ले जाने का वचन माँगा। इसके बाद माता लक्ष्मी भगवान् विष्णु को लेकर वापस अपने धाम आ गई। इसलिए भी रक्षाबंधन मनाया जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के साथ शुरू हुये इस त्यौहार की समय के साथ कुछ मान्यताये भी बदली।इसका उदाहरण मिलता है रानी कर्णावती और मुग़ल शासक हुमायूँ की कहानी से।
पौराणिक मान्यताओं के साथ शुरू हुये इस त्यौहार की समय के साथ कुछ मान्यताये भी बदली।इसका उदाहरण मिलता है रानी कर्णावती और मुग़ल शासक हुमायूँ की कहानी से।
3. रानी कर्णावती और मुग़ल शासक हुमायूँ की कहानी :-
रानी कर्णावती एक हिंदु रानी थी और मुग़ल शासक हुमायूँ मुस्लिम राजा। परंतु जब बहादुर शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया तब रानी कर्णावती जो की अपनी और अपनी प्रजा की रक्षा करने में असमर्थ थी उन्होंने मुग़ल शासक हुमायुं को राखी भेज कर भाई बनाया और मेवाड़ की रक्षा करने का आग्रह किया। हुमायूँ ने भी राखी का मान रखते हुए अपना फ़र्ज़ निभाया।
4. गिन्नौरगढ़ की निजाम रानी और दोस्त मोहम्मद खान की कहानी :-
गिन्नौरगढ़ के निजाम शाह गौड़ को उनके ही सगे सम्बन्धियो द्वारा षड्यंत्र रचकर मार डाला गया। तब उनकी पत्नी रानी कमलापति ने बदला लेने के उद्देश्य से सरदार दोस्त मोहम्मद खान को राखी भेजी और अपना भाई बना लिया। मोहम्मद खान ने राखी का मान रखते हुए अपनी बहन रानी कमलापति की रियासत की रक्षा की । रानी ने अपने भाई के इस उपकार के बदले उन्हें 50 हजार की राशि और एक गांव भेट किया।
मोहम्मद खान ने ही बाद में भोपाल रियासत की नीव डाली।
5. सिकंदर की पत्नी और पुरू की कहानी :-
सिकन्दर की पत्नी ने पुरू को राखी भेजकर अपना भाई बनाया था और अपने पति को न मारने का वचन लिया था। इसलिए युद्ध के समय पुरू ने जब सिकंदर पर प्रहार करना चाहा तब उसे अपनी बहन की राखी और वचन दोनों याद आ गए और उसने सिकंदर पर प्रहार नही किया और उन्हें बंदी बना लिया गया। परंतु बाद में सिकन्दर ने भी रक्षासूत्र का मान रखते हुए पुरू को उनका राज्य लौटा दिया।
पुराणों और इतिहासों में ऐसी कई कथाये एवं कहानियां मौजूद है जो हमें रक्षाबंधन का महत्तव न सिर्फ समझाती है बल्कि ये भी बताती है की राखी सिर्फ एक धागा मात्र नहीं है बल्कि ये वो अटूट विश्वास और प्रेम का धागा है जिसे कोई भी चाह कर भी नहीं तोड़ सकता है।
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