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sawan somvar -2021 |
❄ जिनके सर पर चन्द्र सुशोभित,
गले में सर्प की माला।।
जटा से अविरल गंगा बहती,
कंठ में विष का प्याला।।
वो है अनादि, त्रिनेत्रधारी,
हम सबका भोले बाबा ।। ❄
वो है अनादि, त्रिनेत्रधारी,
हम सबका भोले बाबा ।। ❄
सावन सोमवार क्यों मनाये जाते है :-
श्रावण मास, अर्थात भगवान शिव की पूजा का महीना। श्रावण मास भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय है। इसलिए इस माह में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्तव है।
श्रवण मास का आगमन अर्थात जब ग्रीष्म ऋतु अपनी तपिश को कम करते हुए जाने लगती है और वर्षा ऋतु अपनी वर्षा की फुहारों से सारी धरती को भिगोकर मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबु से सारे जग को सुगन्धित करती हैं तब सारी मानव जाती गर्मी की तपिश से राहत पाकर प्रफुल्लित हो उठती है साथ ही धरती हरी भरी हो झूम उठती है। ऐसे में हमारे भोले बाबा भला कैसे प्रसन्न नहीं होंगे क्योंकि उन्हें तो जल अत्यंत प्रिय है। इसलिए श्रावण सोमवार में भगवान शिव की पूजा अर्चना का विशेष महत्व माना गया है।
इस साल भी 26 जुलाई 2021 से सावन सोमवार का प्रारंम्भ हो गया है।
भगवान शिव को श्रावण मास अत्यधिक प्रिय क्यों है अब यह जान लेते हैं।
ऐसा माना जाता है कि जब माता सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति से अपमानित होकर अपनी देह त्याग दी थी। उसके बाद उन्होंने दुबारा माता पार्वती के रूप में राजा हिमावत और महारानी मैंनावती के घर में जन्म लिया।
हर जन्म में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए श्रावण मास में ही कठोर तपस्या की थी, जिससे भगवान शिव प्रसन्न हुए और माता पार्वती की मनोकामना पूर्ण की। इसलिए भगवान शिव को श्रावण मास अत्यधिक प्रिय है।
हर जन्म में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए श्रावण मास में ही कठोर तपस्या की थी, जिससे भगवान शिव प्रसन्न हुए और माता पार्वती की मनोकामना पूर्ण की। इसलिए भगवान शिव को श्रावण मास अत्यधिक प्रिय है।
भगवान शिव को श्रावण मास अत्यधिक प्रिय होने के पीछे एक और कारण भी माना जाता है ऐसा माना जाता है कि जब समुद्र मंथन हुआ तब उसमे से कई प्रकार की वस्तुए बहार निकली , जिसमे से एक हलाहल विष का पात्र भी था। परंतु इस विष का पान कोई भी कर सके इतनी क्षमता किसी में भी नहीं थी और यह विष इतना घातक था की उससे सारी सृष्टि नष्ट हो सकती थी ऐसी स्थिति में भगवान शिव आगे आए और उन्होंने इस विष को अपने कंठ में धारण किया। हलाहल विष को कंठ में धारण करने के बाद भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया। और तब सभी देवी देवताओं ने उन पर जल चढ़ाया ताकि विष का प्रभाव कम हो सके और भगवान् शिव को शीतलता मिल सके।
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Bhagvan shiv |
इसलिए भगवान् शिव की पूजा मे सर्वप्रथम उन्हें जल चढ़ाया जाता है ताकि उन्हें शीतलता मिले।
श्रावण मास में ही कांवड़ यात्रा शुरू होती है जिसमे कावड़िये विभिन्न नदियों से पवित्र जल पात्रों में भरकर मीलों पैदल यात्रा कर भगवान् शिव का अभिषेक करतेहै।
पूजा विधि :-
प्रत्येक सावन सोमवार को सुबह स्नान कर मंदिर में जाकर अथवा घर पर ही सर्वप्रथम भगवान शिव को जल चढ़ाये उसके बाद दूध, दही, घी, शहद, शक्कर से अभिषेक कर चन्दन, पुष्प, बिल्वपत्र, धतूरा चढ़ा कर पूजा करे। पूरा दिन व्रत कर एक समय भोजन करे। ऐसा माना जाता है की सावन सोमवार को भगवान शिव की पूरी श्रद्धा से पूजा करने से भगवान् शिव अत्यधिक प्रसन्न होते हैं एवं सारी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। इसीलिए इस माह में भगवान शंकर की पूजा अर्चना करने का विशेष महत्तव माना गया है।
सावन की शिवरात्रि :-
वैसे तो हर माह की चतुर्दशी को शिवरात्रि होती है, परन्तु सावन की शिवरात्रि का महत्व अत्यधिक है। इस शिवरात्रि का महत्तव महाशिवरात्रि के समान ही माना गया।
ऐसा माना जाता है की शिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे। यह भी मान्यता है की भगवान् शिव चातुर्मास में पृथ्वी का भ्रमण करने आते है और अपने भक्तों की सभी मानोंकामना पूर्ण करते है अतः इस दिन सुबह स्नान कर सर्वप्रथन व्रत का संकल्प करे। तत्पश्चात भगवान् शिव और माता पार्वती की जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद से अभिषेक कर रोली ,सिंदूर, चन्दन, पुष्प, बिल्वपत्र धतूरा आदि से विधिवत पूजा करे एवं वस्त्र अर्पित कर प्रसाद का भोग लगाएं और भगवान् शिव एवं माता पार्वती को प्रसन्न करें।
🌹हर हर महादेव 🌹
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