महालक्ष्मी व्रत 2020 कब है एवं महालक्ष्मी व्रत कथा:-
महालक्ष्मी व्रत 2020/ Mahalaxami vart 2020 :-
महालक्ष्मी व्रत जो की पितृ पक्ष के मध्य में अष्टमी के दिन पड़ता। महालक्ष्मी व्रत को गजलक्ष्मी व्रत, हाथी व्रत भी कहा जाता है।
महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होता है अर्थात राधा अष्टमी से शुरू होता है एवं अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को समाप्त होता है। इस प्रकार महालक्ष्मी व्रत 16 दिन तक चलता है। कुछ लोग पूरे 16 दिन व्रत करते है तो कुछ सुहागिन सौलवें दिन अर्थात समापन वाले दिन, एक दिन का ही व्रत रखती है। इस व्रत में सूत के सौलह धागों में 16 गांठ लगा कर डोरा तैयार किया जाता है और हर दिन 16 दूब, 16 गेंहू, डोरे पर प्रति दिन चढ़ाये जाते है। 16वें दिन व्रत किया जाता है शाम के समय मिट्टी का हाथी बनाया जाता है अगर घर में न बना सके तो बाजार से भी मिट्टी का हाथी मिल जाता है। चौक बनाया जाता है चौक के फूल में भी 16 पंखुड़िया बनाई जाती है पटा रख कर उस पर लाल वस्त्र बिछाया जाता है पटे पर हाथी को स्थापित कर माँ लक्ष्मी को विराजमान किया जाता है और उनकी और हाथी महाराज की पूजा की जाती है। कथा सुनाई जाती है और आरती की जाती है। ताकि माता प्रसन्न हो और अपना आशीर्वाद दे।
महालक्ष्मी व्रत कथा/ Mahalaxami vart katha :-
पौराणिक कथानुसार एक बार हस्तिनापुर में महर्षि वेदव्यास पधारे। हस्तिनापुर में महाराज द्वारा उनका खूब आदर सत्कार किया गया। इसी समय माता गान्धारी और कुंती ने महर्षि व्यास से अपने परिवार की और राज्य की सुख, समृद्धि और उन्नति बनाये रखने के लिए उपाय जानना चाहा। तब महर्षि व्यास ने उन्हें महालक्ष्मी व्रत करने के लिए कहा। उन्होंने उन्हें बताया की यह व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल की अष्टमी से शुरू होता है। और अश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक चलता है साथ महर्षि ने उन्हें व्रत की पूरी विधि भी बताई।
कुछ समय बाद भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी आने पर गांधारी और कुंती दोनों ने व्रत आरंभ किया और 16वे दिन महालक्ष्मी पूजा के दिन व्रत रख कर शाम को पूजा की तैयारियां शुरू कर दी। गांधारी के सौ पुत्र थे अतः 100 पुत्रों ने मिट्टी का हाथी बनाने के लिए मिट्टी का ठेर लगा दिया। और उस मिट्टी से एक विशालकाय हाथी का निमार्ण कर दिया। गांधारी ने सारे नगर की औरतों को आमन्त्रित किया लेकिन कुंती को आमन्त्रित नहीं किया। कुंती को यह बात अच्छी नहीं लगी। वो बहुत उदास थी। सभी लोग गांधारी के यहाँ पूजा करने जा रहे थे। वह यही सोच रही थी की गंधारी के तो 100 पुत्र है इसलिए उन्होंने हाथी भी बहुत बड़ा बनाया है । मेरे पांच पुत्र है अतः हाथी भी छोटा ही बनेगा। इसलिए मेरे यहाँ कौन आएगा पूजा करने।
कुंती इसी सोच में डूबी चुपचाप बैठी थी उन्होंने पूजा की तैयारी ही नहीं कि थी। तभी पांडव घर आ गए। माँ को उदास बैठा देख उन्होंने उनसे उनकी उदासी का कारण पूछा। तब कुंती ने अपने मन की बात अपने पुत्रों को बता दी। यह बात सुनकर अर्जुन तुरन्त बोले माँ तुम चिंता मत करों मै तुम्हारे लिए स्वर्ग से ऐरावत हाथी को लेकर आऊंगा। तुम नगर में ढिंडोरा पिटवा दो की सारे नगर वाले पूजा करने आ जाये। और कुछ ही देर में स्वर्ग से झिलमिल करते हुए हिरे मोतियों से सुसज्जित ऐरावत हाथी को लेकर अर्जुन आ गए। यह देख सारे नगरवासी गांधारी के यहां से पूजा छोड़ तुरन्त कुंती के महल की और दौड़ पड़े। देखते ही देखते कुंती के महल में भीड़ एकत्रित हो गई। और फिर कुंती ने पूरे परिवार और नगर वासियों के साथ माता लक्ष्मी और ऐरावत हाथी की बड़ी ही धूम धाम से विधिवत पूजा अर्चना की। और माँ से सुख , समृद्धि, ऐश्वर्य का आशीर्वाद प्राप्त किया।
महालक्ष्मी व्रत की शुभकामनायें
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