हरतालिका तीज 2021 :-
हरतालिका तीज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष के तृतीया को मनाई जाती है। हरतालिका तीज में भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस दिन निर्जला व्रत रखा जाता है यह व्रत सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना हेतु करती है। इसके अलावा यह व्रत कुँवारी कन्याएं अच्छा पति पाने की कामना से भी करती है।
हरतालिका तीज 2021 कब है/ Hartalika teej 2021 date :-
हरतालिका तीज 09 सितम्बर 2021, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जायेगी।
पूजा सामग्री :-
केले के पत्ते, रोली, सिंदूर, अक्षत, चन्दन, दूध दही, घी, शहद, शक्कर (पंचामृत), सुहाग का सामान, चूड़ी, कुंकुम, बिंदी, महावर, मेहंदी, पुष्प, फल, मिठाइयां, पंच मेवा, हरतालिका व्रत कथा।
पूजा विधि :-
हरतालिका तीज का व्रत निर्जला रखा जाता है अर्थात इस व्रत में पानी भी नही पिया जाता है। व्रत के दिन सुहागिन स्त्रियां एवं कुवांरी कन्यायें सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्य कर्म से निवर्त होकर स्नान कर सबसे पहले व्रत का संकल्प लेती है। दिन भर उपवास रखती है हाथों में मेंहदी लगाती है, श्रृंगार करती है।
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भगवान शिव और माता पार्वतीजी की पूजा के लिए बालू या मिट्टी से शिवलिंग और माता पार्वतीजी की प्रतिमा बनाती है। शाम को चौक पूर कर चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाते है एवं भगवान् शिव माता पार्वती, गणेश भगवान एवं नंदीजी को चौकी पर स्थापित कर रोली, चन्दन, सिंदूर, आदि से पूजा करती है माता पार्वती को सुहाग का सामान चढ़ाती है पुष्प अर्पित करती है साथ ही इस पूजा में सभी तरह के पत्ते, धतूरा आदि भी भगवान शिव को अर्पित किये जाते है। क्योकि ऐसा माना जाता है की यह पूजा माता पार्वती ने जंगल में की थी इसलिए वहां के सभी पेड़ पौधो के पत्ते उन्होंने पूजा मे भगवान् को अर्पित किये थे।
इस दिन महिलाये रातभर जागरण करती है एवं भगवान् की पांच बार पूजा करती है। हरतालिका तीज में रातभर भगवान् का भजन कीर्तन किया जाता है। सुबह स्नान करके भगवान की पूजा करके भगवान् को विसर्जित किया जाता है एवं प्रसाद से व्रत खोला जाता है। इस तरह हरतालिका तीज व्रत की पूजा सम्पन्न होती है।
हरितालिका तीज कथा :-
पौराणिक कथानुसार एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा की हे प्रभु आप मुझे ऐसे गुप्त व्रत के बारे में बताये जो सरल हो परंतु उसका फल अधिक् प्राप्त हो सके। जिससे संसार का कल्याण हो। भगवान शिव ने कहा हे देवी आज मैं आपको उस गुप्त व्रत के बारे में बताऊंगा जिसके प्रभाव से आपने मेरा आधा आसान प्राप्त किया।
भगवान शिव ने माता पार्वती को उस व्रत की कथा विस्तारपूर्वक सुनाई। कथानुसार जब माता सती ने अपने पिता द्वारा अपमानित होकर यज्ञ कुण्ड में कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। उसके बाद उन्होंने माता पार्वती के रूप में राजा हिमांचल और माहारानी मैनावती के घर में जन्म लिया। पार्वतीजी बाल्यकाल से ही भगवान शिव की पूजा आराधना करती थी।भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए उन्होंने कठोर तप किया।
एक बार नारदजी राजा हिमांचल के पास आये और उन्होंने कहा, राजन मैं आपकी पुत्री के विवाह के लिए भगवान् विष्णु का प्रस्ताव लाया हूँ आपको भगवान विष्णु से अधिक योग्य वर दूसरा नहीं मिलेगा। राजा हिमांचल यह बात सुनकर अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने विवाह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। परन्तु जब यह बात पार्वतीजी को पता चली तब वो बहुत अधिक व्याकुल हो गई। उन्हें इतना व्याकुल देखकर उनकी सखी ने उनसे इसका कारण पूछा। पार्वतीजी ने बताया की उनका विवाह भगवान् विष्णु के साथ तय कर दिया गया जबकि वे सिर्फ भगवान् शिव की अराधना करती हैं और उनसे ही विवाह करेंगी। तब देवी पार्वती की सखी उनको लेकर जंगल में चली गई और वहां एक गुफा में रहने लगी। वही दूसरी और राजा हिमाचल ने जब पार्वतीजी को महल में नहीं पाया तो वे अत्यधिक दुखी होकर विलाप करने लगे। सभी जगह तलाश की गई परन्तु पार्वती जी कहीं नहीं मिली।
तब राजा हिमांचल अपने सभी बन्धु बांधवों सहित पार्वतीजी को जंगल में तलाश करने निकल पड़े।
दूसरी ओर माता पार्वती ने भगवान शिव की प्राप्ति हेतु निर्जला व्रत रखा, बालू की शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की पूजा की, रातभर जागरण किया और दूसरे दिन सुबह स्नान कर पूजा कर शिवलिंग को सरोवर में विसर्जित किया। इस व्रत के प्रभाव से भगवान शिव का आसान डोलने लगा। और तब भगवान् शिव ने माता पार्वती के समक्ष प्रकट होकर वर मांगने को कहा और उनकी मानोंकामना पूर्ण की।
जब माता पार्वती वापस गुफा की ओर लौट रही थी तभी मार्ग में उनकी अपने पिता राजा हिमांचल से भेट हुई। राजा हिमांचल अपनी पुत्री को सही सलामत देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने पार्वती जी से इस तरह वन में आने का कारण पूछा। तब माता पार्वती ने उन्हें बताया की आपने मेरी इच्छा के विरूद्ध मेरा विवाह भगवान विष्णु के साथ तय कर दिया है जबकि मैं भगवान शिव से विवाह करना चाहती हूँ। राजा हिमांचल ने पुत्री की इच्छा जानकर कहा पुत्री तुम्हारा विवाह तुम्हारी इच्छा अनुसार ही होगा। और वे पार्वतीजी को वापस घर ले आये और इस तरह माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह सम्पन्न हुआ।
हरितालिका तीज नाम क्यों पड़ा:-
इस व्रत का नाम हरतालिका तीज क्यों पड़ा? जब माता पार्वती अपने विवाह की बात सुनकर अत्यंत दुखी हो गयी थी तब उनकी सखी उन्हें चुपचाप जंगल में ले गयी, ताकि उनको भगवान विष्णु से विवाह न करना पड़े। उनकी सखी उन्हें हरण करके जंगल में ले गयी थी इसलिए इस व्रत का नाम हरतालिका तीज पड़ा।
🌹हरतालिक तीज की शुभकामनाये 🌹
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