Navratri pratham devi shailputri/ shailputri mata




नवरात्री / Navratri 

नवरात्रि, अर्थात नौ देवी का नौ दिन तक चलने वाला पर्व,  जब पूरा देश माँ दुर्गा  की अराधना में  लीन हो जाता है। और माँ अपने भक्तों के कष्टों को दूर करने के लिए, उनका कल्याण् करने के लिए, उनकी हर मनोकामना को पूर्ण करने के लिए अपने नौ रूपों में पधारती है। 

नवरात्री साल में दो बार आती है चैत्र नवरात्री और शारदीय नवरात्री। 

नवरात्रि में माँ दुर्गा नौं रूपों में विराजती है और पूजी जाती है।

नवरात्री की 9 देवियों के नाम/ Navratri ki 9 deviyon ke naam

  • माँ शैलपुत्री        -  प्रथम 
  • माँ ब्रह्मचारिणी    - द्वितीय 
  • माँ चंद्रघंटा          - तृतीय 
  • माँ कूष्माण्डा        - चतुर्थी 
  • माँ स्कंदमाता       - पंचमी 
  • माँ कात्यायनी      - षष्टी 
  • माँ कालरात्रि        - सप्तमी 
  • माँ महागौरी          - अष्टमी 
  • माँ सिद्धिदात्रि       - नवमी

माँ शैलपुत्री कथा/ Maa shailputri kath:-


नवरात्री में प्रथम दिन माँ शैलपुत्री विराजमान होती है अतः प्रथम दिन माँ शैलपुत्री का पूरे विधि विधान से पूजन किया जाता है। माँ शैलपुत्री वृषभ पर सवार होकर दायें हाथ में त्रिशूल लिए एवं बाएं हाथ में कमल का पुष्प धारण कर नवरात्री के प्रथम दिन  पूजी जाती  है। 

नवरात्री प्रथम देवी मंत्र/ Navratri pratham devi mantra :- 


मन्त्र-वन्दे वांच्छित लाभाय  चन्द्रार्धकृतशेखराम।
वृषारूढ़ शूलधरां  शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।

अर्थ - देवी वृषभ पर विराजित है। माँ शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल  पुष्प सुशोभित है । यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है। नवरात्री में पहले दिन माता  शैलपुत्री  का  पूजन  करना चाहिए। 

माता शैलपुत्री का नाम शैलपुत्री क्यों पड़ा ,  सर्वप्रथम यह जान लेते हैं।  माता शैलपुत्री ने  शैलराज हिमालय के घर जन्म लिया था। इसीलिए वे शैलपुत्री कहलाती हैं। इस रूप में वे पार्वती, हेमवती के नाम से भी जानी जाती है। 

शैलपुत्री माता की कथा/ Shailputri mata ki katha:- 


माता शैलपुत्री  से पूर्व माता सती के रूप में उन्होने  जन्म लिया था एक पौराणिक कथानुसार माता सती ने प्रजापति दक्ष के यहां जन्म लिया था।  बचपन से ही माता सती भगवान शंकर की आराधना करती थी। देवी सती जब  बड़ी हुई तब उनका विवाह उनके इच्छानुसार भगवान शंकर से कर दिया गया, परन्तु दक्ष प्रजापति इस विवाह से खुश नहीं थे।

एक बार दक्ष प्रजापति ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होंने सभी देवताओं को आमन्त्रित किया। परंतु शंकर भगवान को इस यज्ञ में आमन्त्रित नहीं किया गया। 

जब माता पार्वती ने सभी देवताओ को यज्ञ में जाते देखा तब उन्हें पता चला की उनके पिता ने एक बहुत ही विशाल यज्ञ का आयोजन किया है जिसमे उन्होंने सभी देवी देवताओं को आमन्त्रित किया, परन्तु महादेव को आमन्त्रण  नहीं भेजा।  

सभी को यज्ञ  में जाता देख कर माता सती ने भगवान शंकर से आग्रह किया, कि प्रभु हमे भी यज्ञ में चलना चाहिए। परंतु भगवान शंकर ने सब ओर से विचार कर माता सती से कहाँ की इस यज्ञ में सभी को आमन्त्रित किया गया है,  परंतु सिर्फ हमे ही आमन्त्रित नहीं किया गया है अतः हमारा इस यज्ञ में जाना उचित नहीं होगा। भगवान शंकर की  यह बात सुनकर वे अत्यंत दुखी हो गई। उन्होंने सोचा पिता  के घर जाने के लिए कैसा आमन्त्रण, अतः वे यज्ञ में जाने के लिये आग्रह करने  लगी। उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए भगवान शंकर ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। 

यज्ञ में पहुंचने पर माता सति ने देखा की वहाँ सभी देवी देवता, ऋषि मुनि  उपस्थित थे। उनकी सभी बहने और जमाता भी उपस्थित थे।  माता सती के पहुंचने पर सिर्फ उनकी माता ने ही उनका  आदर सत्कार किया। उनकी बहनो  का व्यवहार भी उनके प्रति अच्छा नहीं था।

उनके पिता दक्ष  प्रजापति का भी उनके प्रति  व्यवहार अच्छा नहीं था। उन्होंने माँ सती को अपशब्द कहे एवं भगवान शंकर का भी अपमान  किया।  भगवान शंकर का अपमान माता  सती सह नहीं सकी और उन्होंने वही पर योगाग्नि  में जल कर अपने जीवन को समाप्त कर दिया। यह बात जब भगवान शंकर को पता चली तो उन्होने नंदी एवं अपने   अन्य गणों को भेजकर  यज्ञ विध्वंस  करा दिया ।

क्रोध में शंकर भगवान ने अपनी जटा से एक लट तोड़कर एक चट्टान पर फेक दी। उससे वीरभद्र उत्पन्न हुए। वीरभद्र ने राजा दक्ष के यहां जाकर सबकुछ तहस नहस कर दिया और दक्ष प्रजापति का सर काट दिया। परन्तु  राजा दक्ष की पत्नी द्वारा भगवान शंकर से प्रार्थना करने पर  भगवान  शंकर ने दक्ष प्रजापति को बकरे का सर  लगाकर पुनः जीवित कर दिया। और  माता  सती का मृत शरीर लेकर अत्यधिक विलाप करते हुए भटकने लगे। भगवान शंकर की ऐसी स्थिति को देखते हुए भगवान  विष्णु को माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से खण्ड खण्ड करना पड़ा। 

इसके बाद माता सती ने पर्वतराज हिमवान के यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री कहलायी। इस जन्म में भी भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए उन्होंने कठोर तप किया और भगवान शंकर से उनका विवाह हुआ। 


🌹शुभ नवरात्री🌹



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Milan Tomic

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