magadh ka utkarsh | मगध साम्राज्‍य के उत्‍कर्ष के क्‍या क्‍या कारण थे | मगध में कितने वंश है

 

Magadh ka Utkarsh

मगध राज्‍य का उत्‍कर्ष 


मगध राज्‍य का उत्‍कर्ष कब से माना जाता है | magadh ka utkarsh in hindi :-

उत्‍तर वैैैदिक काल के बाद 16 महाजनपदों का उदय हुआ। उसके बाद सभी महाजनपद अपने अपने राज्‍य की सीमाओं के विस्‍तार के लिये एक दूसरे के साथ संघर्ष करने लगे। इन्‍ही 16 महाजनपदों में से एक महाजनपद था मगध महाजनपद जो धीरे धीरे सबसे शक्तिशाली राज्‍य बनकर उभरा। छठी से चौथी शताब्‍दी ईसा पूर्व के बीच राजनीतिक स्थिति की एक महत्‍तवपूर्ण घटना है मगध साम्राज्‍य का उदय  तो आखिर ऐसे कौन से कारण थे जो मगध को शक्तिशाली बनने में सहायक सिद्ध हुये। यहां इस पोस्‍ट में हम इन सभी बिन्‍दुओं पर  प्रकाश डालेगे। 


मुख्‍य बिन्‍दु        

  • मगध के उत्‍थान के कारण क्‍या थे, जिनके कारण मगध सबसे शक्तिशाली बनकर उभरा और भारत का प्रथम साम्राज्‍य बना। 
  •  वे कौन कौन से वंश थे जिन्‍होंने मगध पर राज किया। 


 मगध के उत्‍थान के कारण | magadh ka utthan :-

मगध के शासकों का अत्‍याधिक महत्‍तवकांक्षी होना

     जैन और बौद्ध लेखकों ने मगध की महत्‍ता का कारण विभिन्‍न शासकों की नीतियों को बताया है। इनके अनुसार मगध के कुछ शासक जैसे बिंबिसार, अजातशत्रु, महापदमनंद, चन्‍द्रगुप्‍त मौर्य, अशोक जैसे प्रसिद्ध राजा अत्‍यंत महत्‍तवाकांक्षी शासक थे, और इनके मंत्री उनकी नितियां लागू करते थे।

    मगध में अनेक साम्राज्‍यवादी प्रवृत्ति के शासक हुये, जिन्‍होंने युद्ध एवं कूटनीति द्वारा मगध की सीमा का विस्‍तार किया। जिनमें से बिम्बिसार की ‘विवाह के द्वारा  कुटनीतिक प्रसार की निती’  अत्‍यंत सफल रही।

मगध की भौगोलिक स्थिति

        मगध की भौगोलिक परिस्थियॉं भी इस राज्‍य के विस्‍तार मे सहायक सिद्ध हुई।

     मगध की राजधानी राजगृह एवं पाटलिपुत्र की सीमायें प्राकृतिक रूप से सुरक्षित थी। राजगृह को गिरीब्रज भी कहते थे क्‍योंकि ये चारों ओर से पहाडियों से घिरी  हुई थी। और पाटलिपुत्र नदियों से घिरा हुआ था। इसलिये इस पर बाहरी आक्रमण सम्‍भव नहीं था। अत: यहॉं के राजाओं को राज्‍य विस्‍तार का अवसर मिल गया, जिसका लाभ उन लोगों ने उठाया। 

मगध की आर्थिक सम्‍पन्‍नता

       मगध का राज्‍य गंगा के उपजऊ मैदान में आता था, और यहॉ लोहे के भी प्रचुर मात्रा में खान उपलब्‍ध थे। जो कृषि तथा औजार दोनों में लाभकारी थे। इससे इस राज्‍य में कृषि, द्योग और व्‍यापार की उन्‍नत स्थिति बन गयी थी।

      इसके अलावा राज्‍य को भरपूर कर की प्राप्ति  होती थी, जिससे सेना का गठन कर साम्राज्‍यवादी प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया गया। 

सैनिक संगठन

      मगध में सुदृढ सेना थी, इनके पास हाथी की टुकड़ी थी जो दलदली क्षेत्र में घोडे से अधिक उपयुक्‍त थी। युद्ध के लिये नये अस्‍त्र शस्‍त्रो से मगध की सेना सुसज्जित थी। जिसने मगध के उत्‍कर्ष में प्रमुख भूमिका निभाई।


मगध साम्राज्य में कितने राजवंश थे | मगध में कितने वंश है :-

   मगध के सबसे प्राचीन वंश के संस्‍थापक बृहद्रथ था। इनकी राजधानी गिरिब्रज(राजगृह) थी। महाभारत का शक्तिशाली राजा जरासंध बृहद्रथ का पुत्र था।

    परन्‍तु  मगध में  मुख्‍य रूप चार वंशों के शासन का ही उल्‍लेख मिलता है

1) हर्यक वंश 2)शिशुनाग वंश 3) नंद वंश 4) मौर्य वंश

हर्यक वंश :-

        हर्यक वंश का संस्‍थापक बिम्बिसार था, वह मगध की गद्दी पर 544 ईसा पूर्व में बैठा था। वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था।

       बिम्बिसार ने ब्रह्मदत्त को हराकर अंग राज्‍य को मगध में मिला लिया था।

      बिम्बिसार ने राजगृह का निर्माण कर उसे अपनी राजधानी बनाया था। मगध पर बिम्बिसार ने करीब 52 वर्षो तक शासन किया ।

       महात्‍मा बुद्ध की सेवा में बिम्बिसार ने अपने राजवैध जीवक को भेजा था। अवन्ति के राजा प्रधोत जब पाण्‍डु रोग से ग्रसित थे उस समय  भी बिम्बिसार ने जीवक को उनकी सेवा के लिये भेजा था।

     इतिहास में बिम्बिसार की प्रसिद्धी इसलिये है कि उसने वैवाहिक संबंध स्‍थापित कर अपने साम्राज्‍य का विस्‍तार किया। इन्‍होंने  1) कोशल नरेश प्रसेनजित की बहन महाकोशला से। 2) वैशाली के चेटक की पुत्री चेल्‍लना से और 3) मद्र (आधुनिक पंजाब) की राजकुमारी क्षेमा से विवाह कर मगध के अच्‍छे संबंध स्‍थापित किये।

      विवाह  में उपहार के स्‍वरूप उसे कई क्षेत्र भी इन राजाओं से मिले। कौशल नरेश प्रसेनजित से दहेज के रूप में काशी प्राप्‍त हुआ जो कि आर्थिक रूप से एक अत्‍यंत ही समृद्ध नगर हुआ करता था। दूसरी पत्‍नी राजकुमारी चेलन्‍ना के कारण उसके साम्राज्‍य की उत्‍तरी सीमा सुरक्षित हो गई।

      बिम्बिसार की हत्‍या उसके पुत्र अजातशत्रु ने कर दी थी और वह 493 ईसा पूर्व में मगध की गद्दी पर बैठा। इसलिये इस वंश को पितृहंता वंश भी कहा जाता है।

       अजातशत्रु का उपनाम कुणिक भी था। अजातशत्रु ने 32 वर्षो तक मगध पर शासन किया।

       अजातशत्रु के सुयोग्‍य मंत्री का नाम वर्षकार (वरस्‍कार ) था। इसी की सहायता से अजातशत्रु ने वैशाली पर विजय प्राप्‍त की थी।

       अजातशत्रु की प्रसिद्धी दो नए अस्‍त्र 'रथ मूसल और महा शीला कंटक' नामक अस्‍त्र के प्रयोग के कारण है। इनका प्रयोग उसने वैशाली के विरूद्ध अपने युद्ध मे किया था।

      अजातशत्रु प्रारंभ में जैन धर्म का अनुयायी था। परंतु बुद्धजी के संपर्क में आकर उसने बौद्ध धर्म अपना लिया था।

    अजातशत्रु की हत्‍या उसके पुत्र उदायिन ने 461 ईसा पूर्व में कर दी थी और वह मगध की गद्दी पर बैठा। उदायिन ने गंगा और सोन नदी के संगम पर पाटलीपुत्र की स्‍थापना की, और उसे अपनी राजधानी बनायी।

       उदायिन भी जैनधर्म का अनुयायी था। हर्यक वंश का अंतिम राजा उदायिन का पुत्र ना्गदशक था।

शिशुनाग वंश :-

       उदायिन के पुत्र नागदशक को उसके मंत्री शिशुनाग ने 412 ईसा पूर्व मे अपदस्‍थ करके मगध पर शिशुनाग वंश की स्‍थापना की।

       शिशुनाग ने अपनी राजधानी पाटलीपुत्र से हटाकर वैशाली में स्‍थापित की।

       शिशुनाग का उत्‍तराधिकारी कालाशोक (काकवर्ण) पुन: राजधानी को पाटलीपुत्र ले गया।

       शिशुनाग वंश का अंतिम राजा नंदिवर्धन था।

नंद वंश :-

       नंद वंश का संस्‍थापक महापद्यमनंद था।

       पुराणों में इन्‍हे ‘महापद्यम’ तथा महाबोधिवंश में ‘उग्रसेन’ कहा गया है।

       इन्‍हे महापद्यम, एकरात, सर्व क्षत्रान्‍तक जैसी उपाधियों से विभूषित किया गया है।

       नंद वंश का अंतिम शासक घनानंद था। य‍ह सिकन्‍दर के समकालीन था।

       घनानंद सिकन्‍दर के आक्रमण के समय मगध का सम्राट था। इसे चन्‍द्रगुप्‍त मौर्य ने अपने कूटनीतिक गुरू चाणक्‍य की सहायता से युद्ध में पराजित किया और मगध पर एक नये वंश ‘मौर्य वंश’ की स्‍थापना की। इसके बाद कई शताब्दियों तक मगध भारत का शक्ति केंद्र रहा।

 


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Milan Tomic

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