सरदार वल्लभभाई पटेल 2019



एक लौह पुरुष


सरदार वल्लभभाई पटेल  की   144 वी जयंती  :-



* 31 अक्टूबर 2019 को सरदार वल्लभभाई पटेल की 144 वी जयंती है
 * जिसे  2014  से "राष्ट्रीय एकता दिवस" के रूप में मनाया जा रहा है और इस दिन सरदार वल्लभभाई पटेल के सम्मान में जगह-जगह विभिन्न कार्यक्रमों को आयोजित किया  जाता है।

 "रन फॉर यूनिटी"   के तहत  इस वर्ष  31 अक्टूबर के दिन देश को एक रखने और आगे बढ़ाने के उद्देश्य से सात सौं  जिले के लाखों लोगों  ने एक साथ दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम  से दौड़ लगाई। इसके आलावा देश के हर कोने से भी इस दौड़ का आयोजन किया गया।

मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम से "रन फॉर यूनिटी " को गृहमंत्री श्री अमित शाह ने  हरी झंडी दिखाई। इस अवसर पर  देशभर में सभी सुरक्षा दलो ने भी अपना शौर्य दिखाया।

स्टेच्यू ऑफ यूनिटी :-

सरदार वल्लभभाई पटेल के सम्मान में  31 अक्टूबर वर्ष 2013 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी (जो उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे) ने स्टेच्यू ऑफ यूनिटी स्मारक की आधारशिला रखी थी। और 31 अक्टूबर वर्ष 2018 में सरदार पटेल की जयंती के दिन ही इस मूर्ति का अनावरण कर
 एक कर्तव्यनिष्ठ, देश के प्रति समर्पित, देश के बिखरे मोतियों को समेट कर एक धागे में पिरोकर एक अखंड भारत बनाने वाले स्वतंत्रता सेनानी सरदार वल्लभभाई पटेल के ऊँचे कद के सामान ही गगनचुम्बी स्मारक स्टेचू ऑफ यूनिटी को देश को समर्पित कर दिया।



स्टेच्यू ऑफ यूनिटी 


स्टेच्यू ऑफ यूनिटी की कुछ विशेष बाते :-

  • इस मूर्ति का निर्माण कार्य श्री  राम वनजी सुतार की देख रेख में हुआ है।  ये महाराष्ट्र के सुप्रसिद्ध मूर्तिकार है इन्हे 1999 में पद्मश्री से नवाजा गया था,  पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया है, एवं वर्ष 2018 में टैगोर कल्चरल अवार्ड से भी सम्मानित किया गया है। 
  • मूर्ति के निर्माण के लिए देश के कोने कोने से गाँवो के किसानो से उनके पुराने लोहे के औजार जो ख़राब हो गए थे दान में लिए गए।  इस कार्य के लिए उनके नाम से ही एक ट्रस्ट जिसका नाम है (सरदार वल्लभभाई राष्ट्रीय एकता ट्रस्ट ) बनाया गया था।  
  • यह स्मारक सरदार सरोवर बांध से 3.2 किमी की दूरी पर साधू बेट नामक स्थान  पर स्थित है। साधु बेट,  नर्मदा नदी पर स्थित एक टापू है।  यह  गुजरात में भरुच के समीप स्थित  नर्मदा जिले  में स्थित है।  
  • यह मूर्ति विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति है।  इसकी ऊंचाई 182 मीटर (597 फिट ) है। 
  • आमेरिका की स्टेचू ऑफ लिबर्टी की ऊंचाई 93 मीटर है।  अर्थात स्टेचू ऑफ़ यूनिटी की ऊंचाई इससे दोगुनी है।  
  • इस मूर्ति की ऊंचाई इतनी अधिक है की इसे सात किलोमीटर दूर से भी देखा जा साकता है।  
  • मूर्ति तक पूल और वोट की सहायता से पहुंचा जा सकता है।  
  • मूर्ति में दो लिफ्ट लगाई गई  है ताकि मूर्ति की छाती तक पहुंच कर सरदार सरोवर बांध देख सके।  
  •  मूर्ति के स्ट्रक्चर के निर्माण में इस तरह की टेक्नॉलजी का प्रयोग किया गया है ताकि वो 6.5  तीव्रता तक भूकंम्प के झटके सहन कर सके।  
  • यह मूर्ति,  680 किमी० प्रति घंटे की रफ़्तार से चलने वाली हवा में भी स्थिर खड़ी रह सकती है।  
  • मूर्ति के नीचे एक म्यूजियम भी तैयार किया गया है जहां पर सरदार वल्लभभाई पटेल की स्मृति से जुड़ी कई चीजे रखी गई है।  जिन्हे आम जनता देख सकती है।  
  • मूर्ति के निर्माण में कुल  चार प्रकार के धातुओं का प्रयोग किया गया है,  जिसमे 85% तांबे की मात्रा है,  ताकि मूर्ति में जंग न लग सके। 
  • मूर्ति का ठेका (L&T) लार्सन एन्ड टूर्बो को दिया गया था।  मूर्ति निर्माण में लगभग 44 महीने का समय लगा, और इसकी लागत लगभग 3 हजार करोड़ रु. आई है।

सरदार वल्लभभाई पटेल वो स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में सदैव ही अग्रणी भूमिका निभाई,  और स्वतंत्रता के बाद अपनी कूटनीति और बुद्धिमत्ता के बल पर राष्ट्र को एकीकृत करने में अहम भूमिका निभाई थी। इसलिए उन्हें लौहपुरुष कहा जाता है।

सरदार वल्लभभाई  पटेल के जीवन से जुड़े कुछ बातें :- 

जन्म :- 31 अक्टूबर 1875 नडियाद, गुजरात।

मृत्यु :- 15 दिसम्बर 1950 , बॉम्बे।

पिता :- झवेर भाई पटेल।

माता :- लाडबा देवी।

शिक्षा :- बैरिस्टर की पढ़ाई।

पेशा :- वकालत, बाद में राजनीती।

राजनितिक दल :- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस।

भाई :- सोमभाई, नरसीभाई , विट्ठलभाई तीनों
          बड़े भाई थे।

पत्नी :- झवेराबा।

स्वतंत्रता के बाद - प्रथम उपप्रधानमंत्री और
                            प्रथम गृहमंत्री।

सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था।  परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण करने में उन्हें बहुत वक्त लगा।  22 साल की उम्र में उन्होंने दसवीं पास की। वल्लभ भाई पटेल  कुशाग्र  बुद्धि  के धनि थे इसलिए आगे की पढ़ाई के लिए कालेज जाने के बजाय घर पर ही  जिलाधिकारी की तैयारी की और सबसे अधिक नंबरों से पास हुए।

जब सरदार वल्लभ भाई पटेल 36 साल की आयु के थे तब वे वकालत पढ़ने इंग्लैंड गए। पढ़ाई पूरी करने के बाद वे वापस अहमदाबाद आ गए और वकालत करने लगे।  लेकिन जब उनकी मुलाकात महात्मा गाँधी से हुई तब वे उनके विचारो से अत्याधिक प्रभावित हुये। और राजनितिक आंदोलनों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगे।

खेड़ा सत्याग्रह :-  सन 1918 ई. में गुजरात के खेड़ा जिले में भयंकर सूखे के कारण फसल नष्ट हो गई। किसान कर चुकाने की स्थिति में नहीं थे और अंग्रेज सरकार किसानों को इस भारी कर में  थोडी भी रियायत देने के लिए तैयार नहीं थी।  तब महात्मा गाँधी ने किसानों को सत्याग्रह का रास्ता अपनाने की सलाह दी और इस सत्याग्रह में महात्मा गाँधी के कहने पर सरदार वल्लभभाई पटेल ने विशिष्ठ भूमिका निभाई। उन्होंने गांवों में किसानों को बढ़ा  हुआ कर न देने और बदले में अपनि भूमि जब्त करवाने के लिए तैयार कर लिया, लेकिन अंग्रेजी सरकार के आगे झुकने से मना  किया।  किसानो ने भी उनका साथ दिया और तब बहुत संघर्षों के बाद अंग्रेज सरकार को अपना फैसला बदलना पड़ा।  ये वल्लभभाई पटेल की एक बहुत बड़ी जीत थी।  

लौहपुरुष 


बारदोली  आंदोलन :- बारदोली आंदोलन दो बार किया गया।  पहला आंदोलन सन 1922 में किया गया।  बम्बई सरकार द्वारा लगान में 25% की वृद्धि की गई।  जिसके कारण  किसानो में भारी असंतोष छा गया, नतीजा यह हुआ की किसानो ने आंदोलन कर दिया, परन्तु ये शीघ्र ही समाप्त हो गया।

दूसरी बार 1928 में बरदोली में फिर से किसानो ने  कर के विरुद्ध आंदोलन किया। इस बार वल्लभभाई पटेल ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया और वे सफल हुए। सरकार को विवश होकर किसानो की मांगों  को मानना पड़ा। इस आंदोलन के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को सरदार की उपाधि दी।  और तभी से वल्लभभाई पटेल सरदार वल्लभभाई पटेल कहलाने लगे।

भारत के स्वतंत्रत होने के पश्चात सरदार वल्लभभाई पटेल की अहम भूमिका :-


जब भारत आजाद हुआ तो वो  565 छोटी छोटी रियासतो में बटां  था।  अर्थात जब भारत आजाद हुआ तब वो अखंड भारत नहीं था।  और तब सरदार वल्लभभाई पटेल ने एक अखंड भारत का सपना देखा।  इसे सपने को पूरा करना इतना आसान नहीं था।  क्योकि जब भारत आजाद हुआ था तब अंग्रेजो ने सभी रियासतों को तीन विकल्प दिए , और वो तीन विकल्प थे :-

  • रियासते भारत के साथ मिल  जाये, या 
  • पाकिस्तान के साथ मिल जाये, या 
  • स्वतन्त्र रहे।  

ज्यादातर रियासतों ने स्वतन्त्र रहने की इच्छा जताई।  पर तब सरदार वल्लभभाई पटेल ने वि.पि. मेनन के साथ सभी रियासतों के राजाओं और नवाबो को समझाया की भारत के साथ मिलने में ही उनका फायदा है, उसके बाद 565 में से 562 रियासतों के राजाओ और नवाबों ने अपनी इच्छा से भारत के साथ मिलने की स्वीकृति प्रदान कर दी। 

इसके बाद  केवल ऐसी  3 ही रियासते बची थी जो स्वतन्त्र रहना चाहती थी।  
  • हैदराबाद। 
  • जूनागढ़। 
  • जम्मू और कश्मीर।  
इन्हे काफी समझाया गया लेकिन ये तीनो नहीं माने और तब इन्हे सैन्य कार्यवाही द्वारा भारत में मिला लिया गया।  


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Milan Tomic

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