हिंदी कहानी - सच्ची भक्ति /Hindi Kahani - Sachchi Bhakti


कहानी - सच्ची भक्ति 


(लीलावती का पूजा पाठ से दूर दूर तक कोई रिश्ता न था। फिर आखिर ऐसा क्या हुआ की भगवान् राम को माता सीता और भ्राता लक्ष्मण सहित लीलावती के समक्ष प्रकट होना पड़ा। जानने के लिए पढे पूरी कहानी)



एक छोटा सा गांव था जो बहुत ही शांत और साधारण सा था। उसी गांव में एक ब्राह्मण रामस्वरूप अपनी पत्नी के साथ रहते थे।  रामस्वरूपजी भगवान श्री राम के परम् भक्त थे । दिनभर उनके मुंह से सियाराम ही निकलता था। रामस्वरूप बहुत  ही सरल और सीधे स्वभाव के व्यक्ति थे । पर उनके घर की माली हालत ठीक नहीं थी। घर का गुजारा किसी तरह चल रहा था। परंतु रामस्वरूपजी के चेहरे पर जरा भी  शिकन नहीं थी।  उनकी भगवान् के प्रति आस्था  में कभी कोई कमी नहीं आती थी।  इसलिए  सब लोंग  उनको पण्डित रामभक्त कहकर ही पुकारते थे ।🙏🙏

गांव में एक बहुत ही पुराना, खँडहर सा और बहुत ही  छोटा सा राम मंदिर था।⛺ पंडित रामस्वरूप उसी मंदिर के पुजारी थे। मंदिर के बगल में ही एक छोटा सा ईटों का बना कमरा था वही वो रहते थे । 🏡

दूसरी और उनकी पत्नी उनके बिल्कुल उलट बहुत ही गुस्से वाली थी । नाम था लीलावती ।  बात बात पर गुस्सा करना उनका स्वभाव था। भगवान् की पूजा पाठ से लीलावती का  दूर दूर तक का रिश्ता  नही था । यहां तक की वो कभी मंदिर में झांकती तक नहीं थी।

पंडित रामस्वरूप रोज सुबह सुबह सूर्योदय से पहले ही उठ जाते और स्नान करके घंटों पूरी भक्ति भाव और श्रद्धा से  भगवान् की  पूजा करते, और फिर पत्नी से भगवान् के भोग की थाली लगाने को कहते। यह उनकी रोज की दिनचर्या थी।

लीलावती रोज केवल भगवान् के लिए भोग बनाकर दे देती थी। इसके आलावा वो कभी मंदिर में कदम भी नहीं रखती। उसे ये भी नहीं पता था की पंडित रामस्वरूप रोज किस प्रकार भगवान् की पूजा करते है।  उसे इन सब बातो में कोई दिलचस्पी नहीं थी । वो तो दिनभर घर के कामों में ही व्यस्त रहती थी।

आज भी रोज की तरह रामस्वरूप ने घंटों तक पूजा की और फिर अपनी पत्नी को आवाज लगाई।

लीलावती ओ लीलावती, अरे भगवान् के भोग की थाली तो लगा दो। कितनी देर हो रही है भगवान कबसे भूखे बैठे ।

आई, तभी लीलावती की आवाज आई।

थोड़ी देर बाद ही लीलावती ने एक थाली मंदिर के  बहार से ही सरका दी , और बोली  लो  खिला दो अपने भगवान को खाना ।  इतना कहकर बड़बड़ाते हुए चली गई ।

तभी रामस्वरूप की नजर थाली पर पड़ी। थाली में सिर्फ गुड़ और रोटी ही रखी थी, यह देख उन्हें समझते देर न लगी की आज खाने के लिए कुछ नहीं बचा है। पंडितजी ने भगवान से हाथ जोड़कर माफी मांगी और जो रुखा सूखा भोजन था उसी का भोग लगा दिया।

रामस्वरूप पूजा करने के बाद जब बहार आये तो लीलावती आँगन का झाड़ू लगा रही थी साथ ही कुछ बड़बड़ा रही थी।

अरे लीलावती सुबह सुबह क्यों बड़बड़ा रही हों। कभी कभी भगवान का भी नाम ले लिया करों , थोडा पुण्य मिलेगा। रामस्वरूप पंडित ने हँसते हुए लीलावती से कहा ।

लीलावती लगभग चिल्लाते हुए बोली तुम ही ले लो पुण्य, हमे नही चाहिये। रोज घंटो पूजा पाठ करते हो, तो कौनसा भगवान ने तुम्हें तर दिया ।  घर में खाने को दाना नहीं है, जो था वो भी तुम्हारे भगवान् को खिला दीया । अब खाली हवा खाकर अपना पेट भर लो।

इतना सुनते ही रामस्वरूप बोले,  लीलावती तुम चिंता मत करों भगवान् पर भरोसा रखों। तुम देखना वो हमे भूखा नहीं रहने देगा।

पंडितजी और उनकी पत्नी के बीच इस तरह की नोक-झोक रोज होती। इसी तरह उनके दिन कट रहे थे।

एक बार पंडित रामस्वरूप को किसी जरूरी काम से तीन-चार दिन के लिए दूसरे गांव जाना था । पंडितजी बहुत ही परेशान और चिंतित थे की आखिर उनकी अनुपस्थिति में उनके भगवान् का ख्याल कौन रखेगा। परन्तु जाना भी जरुरी था।

दूसरे दिन पंडित रामस्वरू ने पत्नी से कहा, देखों लीलावती मुझे जरूरी काम से दूसरे गांव तीन चार दिन के लिए जाना पड़ रहा है । इस बीच तुम्हे ही मेरे भगवान् का ख्याल रखना होगा।

उन्होंने पत्नी को यह भी बताया की उन्हें रोज कैसे भगवान का ख्याल रखना है।

तुम रोज सुबह सबसे पहले भगवान्  को उठाना, उन्हें स्नान कराकर भोग लगाना, और  रात्रि होने पर उन्हें सुला देना।

लीलावती बीच में ही टोकते हुए बोली। हाँ हाँ मुझे सब  पता है। अब जाओं देर हो जाएगी।

दूसरे दिन लीलावती सुबह सुबह उठकर काम करने लगी की तभी उसे याद आया की उसे तो भगवान् को भी उठाना है। वो मंदिर के अंदर गयी और बोली उठो रामजी भोर हो गई है, जल्दी उठ जाओं कहकर वो वापस अपने काम में लग गई ।

कुछ देर बाद वो फिर मंदिर में गई उसने देखा भगवान् तो अभी भी वही की वही खड़े है । वो फिर बोली अरे रामजी सुनाई नहीं देता है क्या, उठों भोर हो गई है। मुझे और भी बहुतसारा काम करना है । लेकिन फिर भी उसने भगवान् में कोई हलचल नहीं देखी। अब तक लीलावती गुस्से में लाल हो चुकी थी उसने भगवान् से कहा में आखरीबार पूछ रही हूँ तुम उठते हो या नहीं। लेकिन भगवान अब भी मौन खड़े रहे ।

अब तो लीलावती का गुस्सा सातवे आसमान पर चढ़ गया था, वो गुस्से में बहार गई और झाड़ू उठा लाई । भगवान् को झाड़ू दिखाते हुए बोली उठ रहे हो की नहीं, नहीं तो इसी झाड़ू से तुम्हारी। इतना सुनते ही भगवान राम, सीता माता और लक्ष्मण जी तीनों हाथ जोड़े लीलावती के सामने प्रकट हो गए।

उन तीनों को देखकर लीलावती बोली आ गई न अकल ठिकाने पर,  इसलिए कहते है लातों के भूत बातों से नहीं मानते।

तभी श्री राम हाथ जोड़कर बोले माता हमारे लिए क्या आज्ञा  है।

जाओ, कुए पे जाओं  और स्नान कर लो। तब तक  मैं भोजन तैयार कर लेती हूँ। और सुनों अपने वस्त्र भी धो लेना, मेरे पास बहुत काम है ।

जो आज्ञा माता। कहते हुए श्री राम, माता सीता और लक्ष्मणजी तीनो कुए की और चल दिए ।

कुछ समय बाद वे वापस आये, तब तक लीलावती खाना बना चुकी थी और उन तीनों का इंतजार कर रही थी। भगवान् के  आते ही लीलावती ने उन तीनों को भोजन करा दिया। और बोली जाओं अब मंदिर में बैठ जाओं। इसके बाद वो अपना बाकी का काम निपटाने लगी।

रात हुई तो वो मंदिर में फिर गई और बोली। अरे रात्रि हो गई है। सो जाओ, कब तक खड़े रहोगें।

दूसरे दिन भी वह सुबह जब उठाने गई और भगवान एक - दो बार उठाने से नहीं उठे तो वो फिर झाड़ू लेकर आ गई । झाड़ू देखते ही तीनों भगवान प्रकट हो गए, और लीलावती के सामने हाथ जोड़ कर खड़े हो गए।  लीलावती ने फिर उन्हें स्नान के लिए कुए पर भेजा और भोजन कराकर अपने बाकि के काम निपटाने में लग गई।

पंडित रामस्वरूप के आने तक वो रोज इसी तरह  भगवान् की देखभाल करती रही।

पंडित रामस्वरूपजी जब घर आये तो आते ही उन्होंने पत्नी से पूछा । लीलावती तुमने मेरे भगवान् का  ख्याल ठीक तरह से रखा की नहीं ।

लीलावती बोली, हाँ हाँ ठीक से रखा, चाहों तो अपने भगवान् से  ही पूछ लेना ।

अच्छा तो बताओं कैसे रखा ख्याल। पण्डित रामस्वरूप बोले।

लीलावती ने उन्हें बताया। रोज सुबह तुम्हारे रामजी को उठाती थी, पहले  दिन उठा उठा के थक गई पर वो तीनों उठने का नाम ही नहीं ले रहे थे, फिर मैं झाड़ू लेकर गई । जब मैंने झाड़ू दिखाकर डराया तब कही जाकर उठे। 

इतना सुनते ही रामस्वरूप चिल्ला पड़े, लीलावती ये तुम क्या कह रही हो, तुमने भगवान को झाड़ू से डराया। 😰😨

तो क्या करती वो मेरी बात ही नहीं मान रहे थे। 

यह सुनते ही पंडित रामस्वरूप सिर पकड़ कर बैठ गए। 😰😱

लीलावती ने आगे बताया, उठाने के बाद उन्हें  स्नान करने के लिए कुए पर भेजती थी। उसके बाद भोजन करा देती थी, और रात्रि होने पर सुला देती थी। इतना काम  ही तो बोला था ना ।

पंडित रामस्वरूप लीलावती की बातें सुनकर अवाक् रह गए। 😵😵 वह सोच रहे थे, लीलावती ये क्या बोले जा रही है। ये पागल तो नहीं हो गई।😱

उन्होंने लीलावती से पूछा, लीलावती तुम्हारी तबियत तो ठीक है न। ये तुम क्या बोले जा रही हो।

मेरी तबियत को क्या होना है। मैं बिलकुल ठीक ठाक हूँ। लीलावती गुस्से से बड़बड़ाई। 😮

पंडितजी को अपनी पत्नी की बातो पर जरा भी विश्वास नही हो रहा था। वो तुरंत उस जगह गए जहाँ भगवान विराजे थे। पंडित ने  देखा की भगवान्  की मूर्तियां तो वैसे की वैसे ही रखी हुई थी ।

पंडित दौडकर उस कुए पर गए  जहाँ लीलावती ने तीनों  भगवान् को स्नान करने भेजा था । जब वो कुए पर पहुंचे तो उनके  आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा । वहां रखी टूटी फूटी बाल्टी सोने की बन चुकी थी । बगल में भगवान के वस्त्र रखे थे वो भी सोने के ठेर में बदल चुके थे । फिर  रामस्वरूप भागे भागे उन बर्तनों के पास पहुचे जिसमे भगवान् ने भोजन किया था सभी बर्तन जिसमे भगवान् ने भोजन किया था सोने के बर्तनों में बदल चुके थे । अब तक रामस्वरूप को यकीन हो चूका था की  लीलावती सही कह रही थी ।

पंडित रामस्वरूप ने दौडकर भगवान के चरण पकड़ लिए और रोने लगे। प्रभु मैं आपकी रोज घंटों पूजा करता हूं पर आज तक आपने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए । लेकिन लीलावती के एक बार ही सच्चे मन से आपको पुकारने पर आप स्वयं माता सीता, लक्ष्मणजी सहित मेरी कुटिया में पधारे। मैं धन्य हो गया भगवान् । मैं धन्य हो गया।

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इसलिए कहते है भगवान सदैव निःस्वार्थ और सच्ची भक्ति की ही आशा रखते है, लीलावती भगवान् की भक्त नहीं थी अपितु उसने जो कुछ भी किया निःस्वार्थ भाव से किया, क्योकि उसके पति उसे भगवान् का ख्याल रखने को कह गए थे और वो वही  कर रही थी। जो भगवान्  को  भा गया, और वो उसके  समक्ष प्रकट हो गए।  

अतः भगवान् को केवल सच्चे और निःस्वार्थ भाव से पुकारो तो वे अपने भक्त की पुकार अवश्य ही सुनेंगें है 















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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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