होली 2022/ होली क्यों मनाई जाती है/ Holi Festival 2022


🌹होली 🌹



वसन्त ऋतु का आगमन अर्थात जब शीत ऋतु हमे अलविदा कहने की पूर्ण तैयारी कर चुकी होती है और ग्रीष्म ऋतु अपनी तपन से लोगों में नई ऊर्जा भरने को उत्सुक होती है अर्थात गुनगुनी ठण्ड और गुनगुनी धूप के बीच के  वसंत ऋतु में  आता है एक ऐसा त्यौहार जो सबको अपने रंग में रंग जाता है बच्चे, बूढ़े, स्त्री,  पुरुष,पशु, पक्षी सब ही इस त्यौहार के रंग में रंग जाते है। धरती से लेकर आकाश तक अपने विभिन्न रंग से अद्भुत छटा बिखेरता है। इस त्यौहार को हम सब कहते है होली, रंगों का त्यौहार होली। 

होली कब मनाई जाती है :-

होली का त्यौहार वसंत ऋतु में  फाल्गुन मास की पूर्णिमा  को पूरे हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है यह त्यौहार सिर्फ  भारत में ही मनाया जाता है ऐसा नहीं। भारत के आलावा इसे नेपाल में भी मनाया जाता है साथ ही दुनिया के किसी भी कोने में जहाँ भारत मूल के निवासी रहते है वो सब भी इस त्यौहार को पूरे हर्ष, उल्लास  से मानते है।

होली 2023 कब है :- 

इस वर्ष यह त्यौहार 08 मार्च 2023, फाल्गुन मास, पूर्णिमा को पड़ेगा। मुख्य रूप से होली दो दिन मनाई जाती है, जिसमे पहले दिन रात्रि में मुहूर्त के अनुसार  होलिका दहन होता अर्थात होली जलाई जाती  है और दूसरे दिन होली खेली जाती है जिसे धुलेंडी कहते है।

होली का त्यौहार मार्च में आता है।  इस  त्यौहार के आठ दिन पहले से होलाष्टक शुरू हो जाता है। होलाष्टक  के इन आठ दिनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है।   इसके बाद नवें दिन होली को जलाया जाता है। लकड़ियों को इकठ्ठा करके होली बनाई जाती है इसमे बीच में झण्डा लगाया जाता है जिसे प्रहलाद का  प्रतीक मानते है। और इसे जलने नहीं दिया जाता है । होली जलने से पहले होली की पूजा की जाती है। जो भी पकवान बनाये जाते है उनका भोग लगाया जाता है। तत्पश्चात होली की परिक्रमा लगाई जाती है। जलती हुई होली में गेंहू की बालियां, होले आदि सेंके जाते है एवं प्रसाद रूप में ग्रहण किये जाते  है। इसके दूसरे दिन अर्थात धुलेंडी के दिन सुबह से ही शुरू हो जाती है रंगो के त्यौहार होली की हुड़दंग। लोग एक दूसरे को रंग लगाते मिठाइयां खिलाते है। वैसे देखा जाये तो यह त्यौहार बच्चों के  लिए विशेष उल्लास लेकर आता।

होली क्यों मनाई जाती है :-

हमारे देश में जितने भी त्यौहार मनाये जाते है उन सबके पीछे कोई न कोई घटनायें या कथायें अवश्य होती है। होली मनाने से सबंधित भी कई कथाएँ मानी जाती है। पर सबसे प्रचलित कथा है भगवान विष्णु के परम  भक्त प्रह्लाद से जुडी एक कथा।

पौराणिक कथानुसार एक राजा था हिरण्यकश्यप। हिरण्यकश्यप ने ब्रह्माजी की तपस्या की, तपस्या से प्रसन्न हो जब ब्रह्माजी ने हिरण्यकश्यप को वरदान मांगने के लिए कहा तो राजा ने वरदान मांगा, "की मेरी मृत्यु  न देव से हो न दानव से, न दिन में हो न रात में, न घर के अंदर हो न बहार, न धरती पर हो न आकाश में"।

इस वरदान को प्राप्त कर हिरण्यकश्यप, दंभी और अत्यंत  निरंकुश एवं अत्याचारी हो गया था। उसने सबको मजबूर किया की सब उसे ही भगवान् माने।

लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र भक्त प्रहलाद भगवान् विष्णु के परम् भक्त थे। भक्त प्रहलाद हर वक्त भगवान् विष्णु के नाम का जाप करते रहते थे। ये बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल पसंद नहीं थी। वे चाहता था की उनका पुत्र प्रह्लाद भगवान् विष्णु को नहीं बल्कि उसे भगवान् माने, परंतु जब बार बार समझाने पर भी प्रह्लाद ने भगवान् विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी तब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने का मन बना लिया।

भक्त प्रह्लाद को खत्म करने के लिए हिरण्यकश्यप ने कई प्रयास किये पर हर बार भगवान् विष्णु ने अपने भक्त  की रक्षा की और प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ।

हिरण्यकश्यप की एक बहन थी, होलिका। जिसे अग्नि देव से यह वरदान  प्राप्त् था की वो आग में कभी नहीं जलेंगी। हिरण्यकश्यप के प्रह्लाद को मारने के जब सभी प्रयास विफल हो गए तब उसने होलिका को बुलाया और उससे कहा की तुम्हे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त है इसलिए मैं चाहता हूँ की तुम प्रह्लाद को अपने साथ लेकर अग्नि में  बैठो, ताकि उसका  जीवन समाप्त हो जाये। होलिका ने अपने भाई की बात सहर्ष स्वीकार कर ली। क्योंकि वो जानती थी की उसे आग से कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा।

होलिका भक्त प्रह्लाद को गोदी में लेकर अग्नि में बैठ गई। लेकिन यह सच है की जब कोई अपनी शक्तियों का दुरूपयोग करता है तो उसकी शक्ति क्षीण हो जाती है। ठीक ऐसा ही कुछ होलिका के साथ भी हुआ। जब वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठी तो वो आग से जलने लगी और प्रह्लाद को जरा भी आंच नहीं आई। जाको रखे साईया मार सके न कोई। जिसके रक्षक स्वयं नारायण हो उसे भला कौन मार सकता है । और इस तरह होलिका जल कर भस्म हो गई और प्रह्लाद बच गए। तब से ही होली का त्यौहार मनाया जाने लगा। यह त्यौहार असत्य पर सत्य की जीत, बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है और इस ख़ुशी को एक उत्सव के रूप में रंग, गुलाल उड़ाकर, एक दूसरे पर रंग डालकर मनाया जाता है। 



लेकिन क्या हिरण्यकश्यप इस घटना के बाद शांत बैठ गया। नहीं, वो अपनी बहन की मृत्यु का दोषी प्रह्लाद को मानने लगा। उसका यह मानना था की प्रह्लाद के पास कुछ मायावी शक्तियां है जिसकी वजह से  उसकी बहन वरदान होने के बावजूद आग में जलकर भस्म हो गई। इसलिए क्रोधित हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को  कारगार में बंद कर और अधिक कष्ट देना प्रारम्भ का दिया। एक बार जब गुस्से में हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद से पूछा की बताओं तुम्हारा भगवान् कहाँ कहाँ है तब प्रह्लाद ने उत्तर दिया की  वो तो हर जगह व्याप्त है। यह सुनते ही हिरण्यकश्यप ने एक लाल तमतमाते गर्म खम्बे की और इशारा करते  हुए कहा की क्या इस खम्बे में भी है तुम्हारा भगवान। प्रह्लाद ने कहा हाँ। इतना सुनते ही हिरण्यकश्यप ने  कहा तो ठीक है इस गर्म खम्बे को कसकर पकड़ कर खड़े हो जाओं और बुलाओ अपने भगवान् को।

प्रह्लाद उस गर्म  खम्बे को पकड़कर खड़े हो गए। वे लगातार भगवान विष्णु का स्मरण कर रहे थे। जैसे ही प्रह्लाद ने खंम्बा पकड़ा,  गर्म लाल खम्बा अन्य खम्बों की तरह ही एक साधारण खम्बा बन गया, प्रह्लाद उस खम्बे को पकड़ कर श्री हरी विष्णु के नाम का लगातार जाप करने लगे। और कुछ ही क्षण में  उसी खम्बे से भगवान् विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए। इस अवतार में प्रभु का सर सिंह का और शरीर नर का था।

जब भगवान् नरसिंह प्रकट हुए उस समय संध्याकाल का वक्त था, भगवान नरसिंह, हिरण्यकश्यप  को चौखट तक ले गए उसे अपनी गोद में लिटाया  और अपने नाखूनों से उसका उदर चीर कर उसकी जीवन लीला समाप्त कर दी।

नरसिंह अवतार भगवान विष्णु अपने भक्त को कष्ट में देखकर इतने क्रोधित थे की हिरण्यकश्यप की मृत्यु के पश्चात् भी उनका क्रोध शांत नहीं हो रहा था।
भगवान का क्रोध देखकर सभी भगवानों ने उनसे प्रार्थना की, कि हे प्रभु, हिरण्यकश्यप मारा गया, कृपया अपना  क्रोध शांत करे, अन्यथा सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश हो जायेगा। परंतु भगवान् नरसिंह का क्रोध शांत नहीं हो रहा था। तब भक्त प्रह्लाद ने भगवान् से अपने क्रोध को त्यागने एवं विष्णु अवतार में दर्शन देने की प्रार्थना की, तब भगवान् नरसिंह अपना क्रोध त्याग कर विष्णु अवतार में प्रकट हुए और अपने भक्त को दर्शन दिए।

ये है होली मानाने की सबसे प्रचलित कथा।


वैसे तो हमारे  देश में हर जगह होली मनाई जाती है  पर कुछ जगह  इस त्यौहार को अन्य नामों से जाना जाता है। जैसे - बिहार, उत्तर प्रदेश में इसे फाग, फगुआ भी कहते है। महाराष्ट्र में रंग पंचमी कहते और सूखी होली खेलते है। परंतु मथुरा, वृंदावन, में तो होली का रंग की कुछ और होता है। यहाँ लठ्ठमार होली, फूलो की होली, लड्डू होली कई तरह से ये पर्व मनाया जाता है। क्योंकि ये भगवान् श्री कृष्ण की भूमि है तो होली की छटा तो निराली होनी ही है।

ब्रज में तो वसंत पंचमी आते ही होली महोत्सव की तैयारी शुरू हो जाती है।

विश्वप्रसिद्ध  लठ्ठमार  होली :- 

होली की बात हो और बरसाना की लठ्ठमार होली की बात न हो ये तो हो ही  नहीं सकता है। चलिए अब हम कुछ बाते विश्वप्रसिद्ध बरसाना की लठ्ठमार होली की भी जान लेते है।

ऐसा माना जाता है की बरसाना की लठ्ठमार होली की शुरुआत भगवान् कृष्ण ने की थी। भगवान् कृष्ण अपने सखाओं सहित बरसाना में राधाजी और उनकी सखियों के साथ होली खेलने जाया करते  थे और राधाजी और उनकी सखियाँ उनकी ढिढोलियो से तंग आकर उन्हें भगाने के लिए उन पर लठ्ठ बरसाती थी, जिससे बचने के लिए श्री कृष्ण और उनके सखा ढाल या लठ्ठ का उपयोग करते थे। इसी  परंपरा को अपनाते हुए आज भी फाल्गुन मास, शुक्ल पक्ष नवमी के दिन  नंदगांव के पुरुष बरसाना की स्त्रियों के साथ लठ्ठमार  होली खेलने जाते है, बरसाना की स्त्रियां उन पर लठ्ठ बरसाती है और पुरुष  ढालों से अपना बचाव करते है। इसके दूसरे दिन, दशमी को बरसाना के पुरुष नंदगांव की स्त्रियों से होली खेलने  जाते है। और वे भी बदला लेते हुए उन पर लठ्ठ बरसाती है। और उन पर आस पास के लोग रंग फेकते है। ये एक ऐसी लठ्ठमार होली है जिसमे आनन्द, खुशियाँ , उल्लास अपनी चरम सिमा पर होती है और लोग इस पर्व का सालभर बेसब्री से इंतजार करते है।

इसके आलावा बरसाना में ही राधाजी का भव्य श्रीजी मंदिर है जहाँ रंगों के साथ ही लड्डू होली खेली जाती है।

मथुरा में भगवान् श्री कृष्ण का द्वारकाधीश मंदिर है यहाँ भी इस पर्व का भव्य आयोजन किया जाता।

वृन्दावन के  बांके  बिहारी मंदिर में होली के पहले की एकादशी को रंगभरनी एकादशी के रूप में मनाते है। इसमे मंदिर में खुभ रंग उड़ाते है। और इस तरह रंगभरनि एकादशी से पांच दिनों तक चलने वाले  रंगों के त्यौहार की  शुरुआत होती है वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर में  फूलों की होली भी खेली जाती है।

इस तरह फाल्गुन मास की ये पूर्णिमा विभिन्न रंगों  में रंग कर एक अलग ही छटा बिखेरती है।



🌷होली की शुभकामनाएँ 🌷

🌷HAPPY HOLI 🌷










SHARE

Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

  • Image
  • Image
  • Image
  • Image
  • Image
    Blogger Comment
    Facebook Comment