महाशिवरात्रि 2023 : जानिए महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है| महाशिवरात्रि से सबंधित कथाएं
❄ महाशिवरात्रि ❄
❄ जिनके सर पर चन्द्र सुशोभित,
गले में सर्प की माला।।
जटा से अविरल गंगा बहती,
कंठ में विष का प्याला।।
वो है अनादि, त्रिनेत्रधारी,
हम सबका भोले बाबा ।। ❄
वो है अनादि, त्रिनेत्रधारी,
हम सबका भोले बाबा ।। ❄
देवों के देव महादेव, शिव शंकर, भोले भंडारी, महाकाल, सृष्टि के संहारकर्ता जैसे अनेकों अनेक नाम से जानें, जाने वाले भगवान शिव, जिनका न आदि है न अंत, जो अजन्मे कहे जाते है। ऐसे भगवान् शिव की आराधना का दिन है महाशिवरात्रि। ये हिंदुओं के अनेकों त्यौहारों में से एक प्रमुख त्यौहार है।
वैसे देखा जाये तो साल में 12 शिवरात्रि आती है, अर्थात हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि कहा जाता है, लेकिन सिर्फ फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा जाता है।
ऐसी मान्यता है की भगवान् शिव सबसे भोले भगवान् है, इन्हे प्रसन्न करना बहुत ही आसान है। इसलिए भगवान शिव, भोले भंडारी कहे जाते है। इनकी पूजा भी बहुत ही आसान है। भगवान् भोले भंडारी को जल, दूध आदि पंचामृत से अभिषेक करे, या सिर्फ एक लौटा जल चढ़ा दे, क्योकि हम सभी ये जानते है की भगवान् शिव ने सृष्टि को बचाने हेतु अपने कंठ में विष धारण कर रखा है, इसलिए जल चढ़ाने से उन्हें ठंडक मिलती है, साथ ही भगवान् शिव को बिलपत्र बहुत पसंद है। इसलिए महाशिवरात्रि के दिन बिलपत्र, आक का फूल, धतूरा आदि भगवान् शिव को चढ़ाकर सच्चे मन से प्रभु की आराधन करें तो वे अवश्य ही प्रसन्न होते है।
2023 में महाशिवरात्रि कब है :-
*इस वर्ष 18 फरवरी 2023, फाल्गुन मास, कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जायेगा।*
महाशिवरात्रि के दिन सभी शिव भक्त सुबह सुबह स्नान आदि करके मंदिर में भगवान शिव की पूजा अर्चना करते है एवं दिनभर का उपवास रखते है।
अब हम यह जानते है की, महाशिवरात्रि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ही क्यों मनाई जाती है :-
महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है इससे सबंधित कई कथाएं हमे पुराणों में मिलती है। उनमे से कुछ कथाओं या घटनाओं का वर्णन हम यहाँ करेगे।
1) भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह :- यह सर्वविदित है की महाशिवरात्रि के दिन ही माता पार्वती एवं शिवजी का विवाह हुआ था। पुराणों के अनुसार जब माता सती ने माता पार्वती के रूप में राजा हिमालय के घर में जन्म लिया तब उन्होंने प्रतिज्ञा ली की वो सिर्फ भगवान् शिव से ही विवाह करेंगी। भगवान् शिव को प्रसन्न करने हेतु उन्होंने घोर तपस्या की। जब माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हो भगवान् शिव उनके सामने प्रकट हुए तो भगवान शिव ने माता पार्वती से अपनी इच्छा प्रकट करने के लिए कहा। तब माता पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा प्रकट की, जिसे भगवान् शिव ने स्वीकार्य किया। परंतु जब भगवान शिव बारात लेकर माँ पार्वती के द्वार पहुंचे और माता पार्वती की माँ ने बारात का स्वरूप देखा तो उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह भगवान शिव से करने से इंकार कर दिया । क्योंकि भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म लपेटे भूत, प्रेत, पिशाचों के संग बारात लेकर माता पार्वती के द्वार पहुंचे थे। तब माता पार्वती ने भगवान् शिव से प्रार्थना की, कि हे प्रभु कृपा कर आप अपना स्वरूप बदल कर एक सुन्दर वर का रूप धारण करे एवं अपनी बारात को भी सुन्दर और सुसज्जित करने की कृपा करे। भगवान ने माता पार्वती की प्रार्थना स्वीकार कर ली और अपना और अपनी बारात का स्वरूप बदल लिया। उसके बाद माता पार्वती एवं भगवान् शिव का विवाह हुआ।
3) कालकूट नामक विष को ग्रहण किया :- पुराणों के अनुसार जब समुद्र मंथन हुआ था, तब इस मंथन में बहुत कुछ निकला था। जिसमे से एक कालकूट नामक विष भी था। इस विष का पान करने का सामर्थ्य किसी भी देव या दानव में नहीं था। तब सभी ने भगवान् शिव की अराधना की और भगवान् शिव ने इस विष को अपने कंठ में धारण किया। और नीलकंठ कहलाये। इसलिए भी महाशिवरात्रि मनाई जाती है।
4) भगवान शिव का विशालकाय अग्निपुंज रूप में प्रकट होना:- शिवपुराण के अनुसार एक बार भगवान् विष्णुजी एवं भगवान् ब्रह्माजी में इस बात को लेकर लड़ाई हो गई कि उनमे से बड़ा कौन है। लेकिन उनकी इस समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा था। तब भगवान विष्णु और भगवान् ब्रह्माजी के समक्ष एक विशाल अग्निपुंज प्रकट हुआ। ये अग्निपुंज और कोई नहीं बल्कि भगवान् शिव थे। भगवान् शिव ने कहा की आप दोनों में से जो भी मेरे इस विशालकाय अग्निपुंज का आदि और अंत खोज लेगा वही बड़ा होगा। यह सुन भगवान् विष्णु अग्निपुंज का अंत खोजने वराह रूप ले पाताल में चले गए और भगवान् ब्रह्माजी हंस रूप धर स्वर्ग में आदि का पता लगाने चले गए, परंतु दोनों को न तो उस अग्निपुंज का आदि पता चला और ना ही अंत । तब दोनों भगवान ने भगवान शिव से कहा की हे प्रभु हम न तो आपके इस अग्निपुंज का आदि का पता लगा सके और न ही अंत का। इसलिए भी महाशिवरात्रि मनाई जाती है।
यह सभी घटनाएं फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ही घटित हुई थी। इसलिए इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
ऊँ नमः शिवाय
हर हर महादेव
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