भाग -3
सिंधु सभ्यता की नगर योजना का वर्णन एवं विशेषताए :-
1) हड़प्पा:-
- पुरातत्वविदों द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता में सबसे पहले हड़प्पा नामक स्थल की खोज की गई थी। इसलिए सिंधु सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाताहै ।
- इसकी खोज का श्रेय दयाराम साहनी को जाता है। जिन्होंने इसकी खोज सन् 1921 में की थी। ये पाकिस्तान के मोंटगोमरी जिला (पंजाब प्रान्त ) में रावी नदी के किनारे स्थित है।
- हड़प्पा की जो मोहरे मिली उन पर एक श्रृंगी पशु का अंकन मिलता है।
- हड़प्पा से पत्थर की पुजारी की मूर्ति भी मिली है।
- तांबे की मानव मूर्ति भी मिली है।
- कांस्य दर्पण मिला है।
- हड़प्पा में शवों को दफनाने की परंम्परा थी।
2) मोहनजोदड़ों :-
- मोहनजोदड़ों का क्षेत्रफल सिंधु सभ्यता के खोजे गए स्थलों में से सबसे बड़ा था।
- मोहनजोदड़ो की खोज राखलदास बनर्जी ने सन् 1922 में की थी।
- मोहनजोदड़ो पाकिस्तान में सिंध प्रान्त के लरकाना जिले में स्थित है।
- यह नगर सिंधु नदी के दाहिने साईट (Right Site) में स्थित था।
- मोहनजोदड़ो से विशाल अन्नागार प्राप्त हुआ है। जो की सिंधु सभ्यता/ सैंधव सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है।
- मोहनजोदड़ो से प्राप्त वृहत स्नानागार उस समय का एक प्रमुख स्मारक है, जिसके मध्य स्थित स्नानकुण्ड की लंबाई 11.88 मीटर, एवं चौड़ाई 7.01 मीटर एवं गहराई 2.43 मीटर है। फर्श पक्की ईटों का बना है।
- मोहनजोदड़ों से एक नर्तकी की कांसे की मूर्ति मिली है।
- मोहनजोदड़ो से एक शील (मुहर) प्राप्त हुई है। जिस पर तीन मुख वाले देवता (पशुपति नाथ ) की मूर्ति मिली है और देवता की मूर्ति के चारों और हाथी, गैंडा, चीता एवं भैसा विराजमान है।
- मोहनजोदड़ों से पुरोहित आवास प्राप्त हुआ है । स्नानघर के उत्तरपूर्व में स्वस्तिक का चिन्ह भी मिला है।
3) चन्हूदड़ों:-
- चन्हूदड़ों की खोज गोपाल मजूमदार ने सन् 1931 में की थी।
- चन्हूदड़ों में किसी भी प्रकार का दुर्गीकरण नहीं था।
- चन्हूदड़ों से कंघी, लिपस्टिक, आभूषण, ऐसी कुछ साज सज्जा की वस्तुए प्राप्त हुए।
- चन्हूदड़ों में सिंधु संस्कृति एवं झूकर - झांकर संस्कृति पायी जाती थी।
- चन्हूदड़ों से आभूषणों के साक्ष्य भी मिले है।
- चन्हूदड़ों में मनके बनाने का कारखाना था।
- बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पंजे का छाप मिला है।
- एक सिक्के पर 3 घड़ियाल एवं 2 मछलियों के चित्र है।
- वक्राकार ईटों का प्रयोग होता था।
4) लोथल :-
- लोथल की खोज रंगनाथ राव द्वारा सन् 1955 एवं 1962 में की गई थी।
- लोथल, गुजरात के अहमदाबाद जिले में भोगवा नदी के किनारे स्थित है।
- लोथल एवं सुतकोतदा सिंधु सभ्यता/ हड़प्पा सभ्यता के गोदिवाड़ा (बंदरगाह ) थे।
- लोथल में मनके बनाने का कारखाना था।
- लोथल से अग्निकुंड भी प्राप्त हुआ है।
- सिंधु सभ्यता में घरों के विन्यास के लिए ग्रिड पद्धति अपनाई जाती थी, और सभी दरवाजे खिड़की सड़क की और न खुलकर पीछे की और खुलते थे।लेकिन सिर्फ लोथल ही एक ऐसा नगर था जहां के दरवाजे मुख्य सड़क की और खुलते थे।
लोथल |
- लोथल से चावल के प्रथम साक्ष्य मिले थे। लोथल एवं रंगपुर से चावल के दाने मिलने से धान की खेती होने के प्रमाण मिलते है।
- लोथल से घोड़े के अस्थिपंजर भी मिले है।
- लोथल में सती प्रथा थी इसका प्रमाण यहाँ से मिले 3 युगलशवधाम है।
5) कालीबंगा :-
- कालीबंगन को काले रंग की चूड़िया भी कहते है।
- कालीबंगन की खोज राजस्थान के हनुमानगढ़ी जिले में घग्घर नदी के किनारे सन् 1953 में की गयी थी। इसके खोजकर्ता अमलानन्द घोष थे।
- कालीबंगन् से हल से जुते खेत एवं नक्काशीदार ईटों का साक्ष्य प्राप्त हुए है ।
- कालीबंगन से भी अग्निकुंड प्राप्त हुए है। इससे पहले हमने देखा था की लोथल में भी इसके साक्ष्य मिले थे।
- कालीबंगन, सुरकोतदा और लोथल से सेंधवकालीन घोड़े के अस्थिपंजर मिले है।
- सिंधु सभ्यता में नगर नियोजन को दो भागों में बाँटा गया था। पूर्वी हिस्सा एवं पश्चिमी हिस्सा। पूर्वी हिस्से में सामान्य लोग रहते थे। और पश्चिम हिस्सा ऊपर होता था और उसमे दुर्ग या किले बनाये गए थे। परंतु कालीबंगन में जो निचला हिस्सा था उसमे भी दुर्गीकरण पाया गया था।
- कालीबंगन में भी लोथल के समान युग्म समाधियाँ प्राप्त हुई
- कालीबंगन में लिंग पूजा की जाती थी
6) बनमाली :-
- बनमाली की खोज सन् 1974 में रविन्द्र सिंह विष्ट ने की थी। ये हरियाणा के हिसार जिले के रंगोई नदी के किनारे स्थित था।
- बनमाली से मिट्टी का हल प्राप्त हुआ है।
- यहां पर जल निकासी का आभाव था।
- पुरातत्वविदों द्वारा धौलावीरा की खोज बहुत बाद में हुई है। इसकी खुदाई सन् 1960 में शुरू हुई थी और 1990 तक चली। यह नगर गुजरात के कच्छ जिले में स्थित था। इसके खोजकर्ता रविन्द्र सिंह विष्ट है।
- वैसे तो सिंधु सभ्यता का नगर नियोजन दो भागों में विभक्त पाया गया है। परंतु धौलावीरा एक ऐसा नगर था जिसका नगर नियोजन तीन भागों में विभक्त है।
धौलावीरा |
- धौलावीरा नगर के तीन भाग इस प्रकार है :- 1) ऊपरी हिस्सा 2) मध्य हिस्सा 3) निचला हिस्सा ।
- ऊपरी हिस्सा में किला था। इसमे सत्तारूढ़, राजपरिवार निवास करते थे। मध्य हिस्सा और निचले हिस्से में सामान्य लोग रहते थे।
- धौलावीरा में विशाल जलाशयों की एक श्रृंखला पायी गयी है। इससे यह पता चलता है की उस समय भी लोगों को जीवन के लिए पानी का क्या महत्तव है पता था, और इन विशाल जलाशयों में पानी इकठ्ठा करके इसलिए रखा जाता होगा ताकि वर्षा के पानी पर निर्भरता न रहना पड़े।
- धौलावीरा शहर चारों और से चार दिवारी से घिरा हुआ था।
- धौलावीरा का शहर नियोजन, ग्रिड पैटर्न में विभजित था। यहाँ की सड़के एक दूसरे को समकोण में काटती थी।
- यहां की इमारते सूखी मिट्टी की ईटों, पत्थरों और लकड़ी के बने थे।
- यहां के कस्बे त्रिभुजाकर थे । एवं वास्तुकला के सिद्धान्तों का भी उपयोग किया गया था।
- धौलावीरा में एक लकड़ी के गेट (उत्तरी महाद्वार) पर सबसे बड़ा हड़प्पा अभिलेख प्राप्त हुआ है जिसे पढ़ा नहीं जा सका।
- धौलावीरा को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। यह भारत का 40वा विश्व धरोहर स्थल है।
धौलावीरा |
8) राखीगढ़ी :-
- राखीगढ़ी की खोज हरियाणा के हिसार जिले में घग्घर नदी के तट पर हुई है।
- राखीगढ़ी नगर, भारत में सिंधु घाटी सभ्यता का पाया जाने वाला सबसे बड़ा स्थल है।
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