Happy Diwali | दीवाली क्यों मनाई जाती है | why diwali is celebrated


Tealight Holder / Decorative


 


Happy Diwali 2021





**दीपावली  प्रकाशोत्सव  पर्व **




दीवाली क्यों मनाई जाती है / why diwali is celebrated in india


सारे जग को दीपो से प्रकाशित करने वाला प्रकाशोत्सव है दीपावली!

भगवान श्री  रामसीता  के चौदह वर्ष वनवास काटने और रावण वध  के बाद अयोध्या लौटने का नाम है दिपावली!


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जब श्री राम चौदह वर्ष के बाद अयोध्या लौटे तो सारी अयोध्या ख़ुशी से झूम उठी।  सारे नर नारी, तीनों माताये, भ्राता भरत और शत्रुघ्न, सभी गुरुजन प्रभु श्री राम की एक झलक पाने के लिए अतिउत्साही थे।  प्रभु के स्वागत में अयोध्या को खूब सजाया गया, और अयोध्या को दीपों से सजाकर उत्सव मनाया गया।  जिसे हम  दीपावली कहते है। 


इस दिन की सुंदरता, स्वछता,  हर्ष और उल्लास को देख कर माँ लक्ष्मी भी अपने आप को रोक नहीं पाती है और पृथ्वी पर विचरण कर अपने बच्चों पर खूब आशीष बरसाती है!

दीपावली के पावन पर्व पर माँ लक्ष्मी की पूरी श्रद्धा- भक्ति के साथ पूजा- अर्चना की जातीहै!


दीपावली कब मनाई जाती है/when diwali is celebrated :-

दीपावली, हिंदुओं  द्वारा मनाया जाने वाला सबसे प्रमुख त्यौहार है। दीपावली  कार्तिक  मास के अमावस को मनाई जाती है क्योकि इसी दिन भगवान राम रावण का वध करके अयोध्या वापस लौटे  थे। तब से इसी दिन दीपावली का त्यौहार मनाये जाने की परम्परा है। इस वर्ष 24 अक्टूबर 2022 को दीपावली का त्यौहार मनाया जायेगा। 

वास्तव में दीपों से सुसज्जित  दीपावली का त्यौहार पांच दिन का होता है।
  • पहला पर्व  - धनतेरस।
  • दूसरा पर्व  - रूपचौदस।
  • तीसरा पर्व - दीपावली।
  • चौथा पर्व - गोवर्धन पूजा। 
  • पांचवा पर्व -  भाईदूज। 

 जिसका विस्तृत में वर्णन हम नीचे करेंगे। 

पर पहले  हम यह जान लेते है की जब भगवान श्री राम अयोध्या लौटे तो अयोध्या में उनका स्वागत कैसे हुआ। 



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रामायण की चौपाई अनुसार श्री राम के अयोध्या आगमन का वर्णन:-


चौपाई 

🌷अवधपुरी प्रभु आवत जानी। भई सकल सोभा कै  खानी।।
बहइ सुहावन त्रिबिध समीरा भइ सरजू अति निर्मल नीरा ।।🌷

अर्थ  
⚫ जब अवधपुरी वासियों को यह बात पता चली  की हमारे प्रभु  श्री राम 14 साल के वनवास के बाद वापस आ रहे है, तो वे सभी ख़ुशी से झूम उठे और अवधपुरी सम्पूर्ण  शोभाओं की खान हो गई। तीनों प्रकार की सुन्दर वायु बहने लगी। सरयूजी का जल अत्यंत निर्मल हो गया।⚫

दोहा 

🌷बहुतक चढ़ी अटारिन्ह निरखहिं गगन बिमान।
देखि मधुर सुर हर्षित करहि सुमंगल गान।।🌷

अर्थ 
⚫ प्रभु श्री राम के दर्शनों को लालायित स्त्रियाँ अटारियों पर चढ़कर आकाश में विमान देख रही है और उसे देखकर हर्षित होकर मीठे स्वर से सुन्दर मंगल गीत गा रही है। ⚫


********
**प्रभु श्री राम का अयोध्या हुआ आगमन स्वागत में दीप जलाते है। 
सारी नगरी हुई जगमग-जगमग सब मंगल गीत ये गाते है। 
प्रभु आये है प्रभु आये है श्री राम अयोध्या आये है।**

**इतना  सुन्दर  दृश्य देखकर सभी  देव - मुनि हर्षाते है 
भर-भर अंजुली सुगन्धित पुष्प अम्बर से बरासते है। 
धरती - आकाश ख़ुशी से झूमते, पक्षी भी चहचहाते है। 
नदियां कल-कल, झरने झर-झर कर यही मंगल गान सुनाते है। 
प्रभु आये है प्रभु आये है श्री राम अयोध्या आये है।**
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दोहा 

🌷सुमन बृष्टि नभ संकुल भवन चले सुखकंद। 
चढ़ी अटारिन्ह देखहिं  नगर नारी  नर बृंद।।🌷

अर्थ
⚫ प्रभु के आने पर आकाश फूलों की  वृष्टि से छा गया, एवं प्रभु श्री राम आनन्दित भाव से  अपने महल को चले, । नगर के स्त्री -पुरुषों के समूह अटारियों पर चढ़कर उनके दर्शन कर रहे हैं।⚫

चौपाई 

🌷कंचन कलस बिचित्र सँवारे।सबहिं धरे सजि निज निज द्वारे।।
बंदनवार पताका केतू। सबन्हि बनाये मंगल हेतू।।🌷

अर्थ
 ⚫ विचित्र रीति से अलंकृत सोने के कलशों को सब लोगों ने अपने अपने दरवाजे पर सजाकर रख लिया है। सब लोगों ने मंगल के लिए अपने अपने घरों में ध्वजा बंदनवार, और पताकाएं भी  लगाई   है। ⚫

🌷बीथीं , सकल  सुगंध सिंचाई। गजमनि रची बहु चौक पुराई। 
नाना भाँति सुमंगल साजे। हरषि नगर निसान बहु बाजे।।🌷

अर्थ
⚫ हर एक गली सुगन्धित द्रवों से  सिचाई गई।  गजमुक्ताओं से रचकर बहुत सी चौकें पुराई  गई। अनेकों प्रकार के सुन्दर मंगल साज सजाये गए और हर्षपूर्वक नगर में बहुत से डंके बजने लगे⚫ 

पाँच दिनों का है यह त्यौहार :-


वास्तव में दीपों से सुसज्जित  दीपावली का त्यौहार पाँच दिन का होता है और ये धनतेरस से शुरू हो जाता है!


  • पहला पर्व  - धनतेरस।
  • दूसरा पर्व  - रूपचौदस।
  • तीसरा पर्व - दीपावली।
  • चौथा पर्व - गोवर्धन पूजा। 
  • पांचवा पर्व -  भाईदूज। 

धनतेरस :- 

धनतेरस के दिन भगवान् धन्वतरिजी की पूजा अर्चना की जाती है. क्योंकि भगवान धवंतरिजी आयुर्वेद के जनक माने जाते है और ये देवताओं के वैध है, जो हमसब को स्वस्थ्य और निरोगी काया एवं स्वस्थ्य जीवन का आशीर्वाद देते है।


धन्वन्तरि भगवान की पूजा धनतेरस पर ही क्यों  :-


पौराणिक मान्यतानुसार धनतेरस के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वन्तरि सोने के कलश के साथ प्रकट हुए थे। अर्थात धनतेरस धन्वन्तरि  भगवान् का जन्मदिवस है. इसलिए   धनतेरस के दिन पूरी श्रद्धा के साथ धन्वतरि भगवान की पूजा  की जाती है। 

धनतेरस के दिन बर्तन तो ख़रीदा ही जाता है पर सोना-चांदी खरीदने का भी बहुत अधिक महत्तव है।  इसलिए धनतेरस के दिन नया बर्तन, सोना-चांदी अवशय ही ख़रीदा जाता है और फिर तेरह दिए लगाकर भगवान धन्वंतरिजी और अपनी सामर्थ्य अनुसार लाये गए बर्तन या सोना, चाँदी की पूजा की जाती है और भगवान् से आरोग्य जीवन की कामना करते है।





धनतेरस के दूसरे दिन या कह सकते है की दीपावली से एक दिन पहले रूपचौदस की पूजा की जाती है. इसलिए इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है।


रूपचौदस:-  

रूपचौदस को नरक चौदस, काली चतुर्दशी और छोटी दीपावली  भी कहा जाता है.


नरक चौदस से जुडी कथा:-


पौराणिक कथानुसार रूपचौदस को  नरक चौदस इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस दिन श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक असुर का अंत किया था और सोलह हजार एक सौ आठ कन्याओं को नरकासुर की कैद से मुक्त कराया था।  इसलिए इस दिन को नरक चौदस भी कहते है।
पौराणिक कथानुसार  नरकासुर के वध के पश्चात् भगवान् श्री कृष्ण ने अपने शरीर पर तेल लगाया और फिर उबटन लगाकर स्नान किया था।  इसलिए यह मान्यता है की इस दिन जो प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठकर तेल, उबटन आदि लगाकर स्नान करता है, उसके रूप में निखार आता है। और उसके सारे पाप नष्ट हो जाते है।
रूपचौदस के दिन अर्थात छोटी दीपावली पर शाम के वक्त दीपदान भी किया जाता है जो यमराज जी के लिए होता है।


रूपचौदस के अगले दिन मनाई जाती है दीपावली  :-


भगवान श्री राम, माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ चौदह वर्ष का वनवास काटकर और रावण पर विजय प्राप्त कर जब अयोध्या वापस लौटे  तब अयोध्यावासियों ने अपने भगवान के स्वागत में सारी अयोध्या को खूब सजाया, घरों के आगे सुन्दर रंगोली बनाई गयी, कलश को सजाकर घरों के सामने रखे गए, सारी नगरी को दीपों से प्रकाशमान किया गया।  और तब से लेकर आजतक यह त्यौहार पुरे हर्ष उल्लास के साथ हर साल मनाया जा रहा है ।  इसलिए इस दिन को हम सब दीपावली के रूप में मनाते है।


माता लक्ष्मी की पूजा क्यों की जाती है:-


ये माना जाता है की  समुद्र मंथन में इसी दिन माता लक्ष्मी प्रकट हुई थी।  इसलिए दीपावली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना कर सुख समृद्धि की कामना की जाती।




गोवर्धन पूजा:- 

दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है।  इसे अन्नकूट की पूजा भी कहते है, क्योंकि इस दिन तरह तरह के पकवान बनाकर अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।


गोवर्धन पूजा कथा :- 


पौराणिक कथा अनुसार बहुत समय पहले की बात है एक दिन बृज में बहुत सारे पकवान बनाये जा रहे थे, सभी बृजवासी पूरे जोर शोर से पूजा की तैयारियों में लगे हुए थे।  कृष्ण भगवान् यह सब देख  यशोदा मैया के पास जाते है, और उत्सुकतावश माँ से पूछते है मैया ये किस पूजा की तैयारी हो रही है, इतने सारे पकवान क्यों बनाये जा रहे है।  मैया ने मुस्कराकर जवाब दिया। आज अन्नकूट पूजा है लल्ला। आज इंद्र देव की पूजा कर अन्नकूट का भोग लगाया जाएगा।  श्री कृष्ण ने मासूमियत से पूछा इंद्र देव की पूजा, पर क्यों मैया ?
क्योंकि इंद्र देव वर्षा करते है।  वर्षा होगी तभी तो हमारी धरती हरी- भरी रहेगी।  जिससे हमारी गायों को खूब चारा खाने के लिए मिल सकेगा और वो ज्यादा दूध दे सकेंगी।  अरे मैया इसके लिए तो गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाना चाहिए। वही तो हमे हरी भरी घास, फल, फूल, ओषधियाँ देते है।
इस तरह श्री कृष्ण भगवान् ने सभी को समझा बुझाकर गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू करवाई। लेकिन इससे इंद्र देव नाराज हो गए और उन्होंने बहुत तेज वर्षा आरम्भ कर दी जो लगातार सात दिनों तक चली।  तब भगवान् श्री कृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर सारे बृजवासी, गायों आदि सभी की प्राणों की रक्षा की।
तभी से गोवर्धन पूजा प्रारम्भ हुई।  इस दिन गोबर से प्रतिक के रूप में  गोवर्धन पर्वत बनाकर पूजा की जाती है साथ ही गायों को रंगों से सजाकर उनकी भी पूजा की जाती है।


भाई दूज :- 

गोवर्धन पूजा के अगले दिन भाईदूज मनाया जाता है।  यह भाई बहन का त्यौहार है। इस दिन बहने अपने भाई को नारियल देकर टीका करती है और मिठाई  या कुछ मीठी चीज खिलाती है और भगवान् से अपने भाई की लम्बी आयु की कामना करती है तथा भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन देता है।
भाईदूज के दिन ही  दवात कलम  या यम द्वितीया की  पूजा भी होती है।

भाईदूज के दिन ही  दवात कलम  या यम द्वितीया की  पूजा भी होती है।


भाईदूज से जुडी कथा :-


पौराणिक कथानुसार यमराजजी की एक बहन थी यमुना देवी। देवी यमुना ने अपने भाई यमराजजी कों भोजन पर आमंत्रित किया। यमराजजी अत्यधिक व्यस्त होने के बावजूद जब एक दिन अपनी बहन के घर पहुंचे तो वे उन्हें देख कर अत्यधिक प्रसन्न हुई। उन्होंने भाई के लिए तरह तरह के पकवान बनाये। उन्हें आदरपूर्वक बिठाकर भोजन करवाया।  तब यमराजजी ने प्रसन्न होकर बहन से वर मांगने को कहा।  देवी यमुना ने कहा आप हर वर्ष इसी दिन मेरे घर आकर भोजन करेगें, यही मेरी इच्छा है, और इस दिन जो भी बहन अपने भाई को आदरपूर्वक टिका करके भोजन कराएगी और भाई अपनी बहन के आथित्य को सहर्ष स्वीकार करेगा उसको आपका भय नहीं रहेगा।  यह सुन यमराजजी ने तथास्तु कहा। तभी से इस दिन को भाईदूज के रूप में मनाया जाता है।


इस तरह पांच दिन तक चलने वाले प्रकाशोत्सव पर्व "दीपावली त्यौहार" पूरे विधि विधान से संपन्न होता  है।




******शुभ दीपावली ******













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Milan Tomic

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