Christmas - 2021 | Yishu Masih Story in hindi | यीशु मसीह की कहानी



क्रिसमस: यीशु मसीह की  कहानी

भाग -1


25  दिसम्बर  (25 December) का दिन पूरी दुनिया में  क्रिसमस के रूप में पूरे हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है।  कड़ाके की सर्द हवाओं के बीच क्रिसमस  लोगो के मन को उत्साह से भर देता है क्योकि इस दिन धरती पर एक उद्धारकर्ता जन्मा था, जो परमेश्वर का पुत्र कहलाया।  नाम था मसीह।

प्रभु येशु मसीह के जन्मदिवस (क्रिसमस) पर लोग घरों को सजाते है  क्रिसमस  ट्री बनाया जाता है साथ ही एक छोटी सी  झांकी भी बनाई जाती है।  लोग चर्च जाते है, प्रार्थना करते है, साथ ही सभी लोग एक - दूसरे को इस महत्तवपूर्ण पर्व क्रिसमस की बधाईयाँ  देते है और मिठाईयाँ   खाते और खिलाते है।

क्रिसमस (Christmas) के त्यौहार के साथ ही 12  दिन का उत्सव क्रिसमसटाइड की शुरुआत होती है।

सांता क्लास - यह क्रिसमस से जुड़े एक बहुत ही मतत्वपूर्ण, पौराणिक तथा काल्पनिक पात्र है, जिन्हे क्रिसमस का पिता भी कहा जाता है। ये  बच्चों के  लिए बहुत सारे उपहार लाते है और इन उपहारों को  बच्चों  को देकर क्रिसमस की ख़ुशी दुगनी कर देते है।

प्रभु यीशु मसीह की कहानी


बहुत समय पहले कुछ भविष्यवक्ताओं ने भविष्यवाणी की थी कि  इस संसार में लोगो के दुखों का अंत करने, उन्हें जीवन जीने का सही मार्ग दिखाने के लिए परमेश्वर अपने पुत्र को धरती पर भेजेंगे।

  • भविष्यवक्ताओं ने कहा था की "परमेश्वर यह घोषणा करेगें की तू मेरा पुत्र है "
  • भविष्यवक्ता यशायह ने भविष्यवाणी की थी कि "मसीह एक कुवांरी माता से जन्म लेगें " 
  • धर्मशास्त्रों के अनुसार , येशु मसीह का  जन्म बेथलेहम में होगा।  येरुशेलम में वो एक राजा के रूप में प्रवेश करेंगे।  
  • धर्मशास्त्र में यह भी कहा गया की प्रभु येशु के  साथियों  में से ही एक साथी  उन्हें धोखा देकर पकड़वाएगा।  
  • येरुशेलम में ही उनकी मृत्यु होगी।  
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मरियम नाम की एक कन्या नासरत शरह में रहती थी।  एक दिन वह अपने घर में  कुछ काम कर रही थी कि तभी उन्हें एक बहुत ही तेज प्रकाश दिखा जिसे देख वो घबरा गई,  तभी उस प्रकाश से आवाज आई,  मरियम।  ( वो एक स्वर्ग दूत थे जो उन्हें परमेश्वर का सन्देश देने आये थे).  उन्होंने कहा,  मरियम आप पर ईश्वर का अनुग्रह हुआ है इसलिए आप एक पुत्र को जन्म देंगी, यह परमेश्वर का पुत्र कहलायेगा।




यह सुनते ही मरियम ने कहा परंतु  यह कैसे  संभव हो सकता है मैं तो एक  अविवाहित कन्या हूँ।

स्वर्गदूत ने कहा परमेश्वर का आपके ऊपर अनुग्रह हुआ है। परमेश्वर ने इस काम के लिए आपको चुना है. उन्होंने आगे बताते हुए कहा की इस पुत्र का जन्म बेथलेहम में होगा।  आप उनका नाम मसीह रखेंगी। इतना कहकर वो चले गए।

माँ मरियम  यह सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुई, उन्होंने ईश्वर को धन्यवाद दिया।  

कुछ दिनों बाद  वहां के राजा की आज्ञा से एक घोषणा हुई।  जिसमे कहा गया था कि राजा की आज्ञा से सभी गलील व् यहूदियों  के  लोगो की गिनती होगी।  इसलिए सभी अपना नाम दर्ज करवाएं। 

नाम दर्ज कराने के लिए माँ मरियम अपने मंगेतर  यूसुफ के साथ बेथलेहम पहुंची, परन्तु   भीड़ अत्यधिक होने के कारण  वहां उन्हें ठहरने की कोई जगह नहीं मिली।  तब एक गोशाला में ही उन्हें रात गुजारनी पड़ी।



उसी गोशाला में जहाँ वह उस रात रुके थे, माँ मरियम ने भविष्वाणी के अनुसार  एक पुत्र को जन्म दिया, और उनका नाम रखा मसीह।

जब प्रभु येशु का जन्म हुआ, तब  पास में  ही कुछ  चरवाहे रात में अपनी भेड़ों की देखरेख करने के उद्देश्य से  जाग रहे थे , की तभी  उनके  सामने एक बहुत तेज प्रकाश हुआ।  और एक स्वर्गदूत ने चरवाहों के समक्ष प्रकट हो उन चरवाहों को बताया की आपके शहर में एक उद्धारकर्ता ने जन्म लिया है।

स्वर्गदूत की बात सुनकर  चरवाहे तुरंत उस बच्चे को देखने पहुंचे और यह समाचार उन्होंने सभी को बताया।

वे सभी धन्य थे जिन्होंने बालक के प्रथम दर्शन किये। उस बालक का  अलौकिक तेज, और मनमोहक  रूप सबको चकित कर रहा था।

येशु मसीह के माता-पिता उनके जन्म के बाद  उन्हें लेकर वापस नासरत आ गए।  जब येशु 12 वर्ष के हुए और  फसई  का पर्व  आया,  तब येशु मसीह  अपने  माता-पिता के साथ  येरुशेलम     गए ।  जब उनके माता - पिता वापस लौट  रहे थे तब यीशु मसीह भीड़ में पीछे छूट गए।  कुछ समय बाद जब माता- पिता ने उन्हें अपने साथ नहीं देखा तो वो खबरा गए और उन्हें ढूढ़ने लगे।  बहुत ढूढ़ने के बाद उन्होंने देखा की यीशु मसीह कुछ धर्मशास्त्रियों  के  साथ वार्तालाप कर रहे है।  वे धर्मशास्त्री भी उनकी बातें सुनकर आश्चर्यचकित थे।  उसके बाद वे अपने माता पिता के साथ फिर नासरत आ गए।


 प्रभु येशु ने 30 वर्ष की आयु होने पर लोगों  के बीच जाकर  लोगो के उद्धार का कार्य  शुरू किया।

इसी  तरह एक दिन नासरत में ही नियमानुसार वो आराधनालय गए।  जहाँ उन्हें यशायह भविष्यवक्ता की पुस्तक से एक भाग पढ़कर सुनाने के लिए कहा गया।  यीशु मसीह ने  पढ़ा, जिसमे कहा गया :-

*परमेश्वर की  आत्मा मुझ पर है क्योकि उन्होंने मुझे दीनों को सन्देश सुनाने के लिए   चुना है।  उन्होंने मुझे भेजा है कि मैं  बंदियों को मुक्ति और अंधों को दृष्टी पाने का सन्देश दूँ , सताये हुए लोगो को मुक्त करने, और यह घोषणा करने  के लिए की वो समय आ गया है जब परमेश्वर अपने लोगो को बचाएं। * 
येशु मसीह ने यह लेख पढ़ा और पढ़ने के बाद उन्होंने कहा " आज धर्मशास्त्र का यह लेख पूरा हुआ, जैसा तुमने अभी सुना " .

लेकिन जब ये बात वहां उपस्थित लोग ने सुनी तो वो भडक उठे। भीड़ से आवाजे आने लगी इसका मतलब परमेश्वर का वचन सत्य हुआ।

येशु ने कहा हाँ।

लोगो ने पूछा क्या तुम ही मसीह हो।

येशु ने कहा हाँ।

लेकिन लोंग  उन्हें मसीह  मानने के लिए तैयार नहीं थे। लोगों ने उन्हें धक्का देकर आराधनालय से बहार कर दिया।  और उनके साथ मारपीट करने लगे , तब किसी तरह से वो वहां से बचकर निकल पाए।

इसके बाद वे गलील के नगर कफ़रनहु पहुंचे।
वहां उन्होंने एक नाविक जिसका नाम शिमोन था उससे  पूछा,  "शिमोन , क्या मैं  तुम्हारी नाव में बैठ सकता हूँ "

"अवश्य स्वामी " शिमोन ने उत्तर दिया।

तब येशु शिमोन की नाव में बैठ गए।  उन्होंने शिमोन से कहा अपनी  नाव उस गहरे पानी में ले चलो और अपना जाल मछलियों को पकड़ने के लिए डालो।

यह सुनते ही शिमोन ने कहा स्वामी हमने रातभर वहां जाल डाला परन्तु एक भी मछली नहीं पकड़ी।


शिमोन की बात  सुनकर  येशु मसीह मुस्कराये और शिमोन की और हाथ बढ़ाया, शिमोन भी मुस्कराया और जाल डालने के लिए तैयार हो गया।  जाल डालने के कुछ समय पश्चात ही शिमोन के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, क्योंकि जाल में ढ़ेर सारी मछलियां आ गई थी।  यह देख उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।  वो आश्चर्यचकित था। ख़ुशी से वो प्रभु यीशु मसीह की और देखता रहा , लेकिन कुछ देर बाद ही उसके चहरे पर तनाव की लकीरे आ गई , वो प्रभु से बोला,  स्वामी आप मेरे पास से चले जाइये मैं पापी हूँ।

यह सुनते ही मसीह शिमोन से बोले तुम घबराओं  मत , आज से मैं तुम्हे यह कार्य सौपता हूँ, की अब से  तुम ही मेरे पास लोगो को मेरे वचन सुनने के लिए लाओगे।  (यही शिमोन बाद में प्रभु येशू का प्रिय शिष्य बना, जिसे येशु ने पतरस नाम दिया ).

उसके बाद लोग उनके पास उनके वचन सुनने आने लगे।  उन्होंने लोगो से कहा :-
प्रभु  वचन :- 
मेरे पास आओ मेरे वचन सुनों, मेरी मानो और तुम जीवन पाओं, प्रभु को खोजो जब तक वो मिल सके , उन्हें पुकारों जब वे तुम्हारे पास है, दुष्ट अपनी दुष्टता और अधर्मी अपने बुरे विचार छोड़कर परमेश्वर के पास आयें , वे उन पर दया करेगें, उन्हें पूर्ण क्षमादान देंगे।  तुम आनंदित रहोगे, तुम्हे शांति मिलेगी।  

 जब प्रभु यीशु आगे जाने के लिए बड़े ,  तब वहां आस पास बहुत भीड़ भी इकठ्ठा हो गई थी।  सभी उनके दर्शन करना चाहते  थे।  तभी भीड़ से एक आदमी चिल्लाय प्रभु यीशु मेरी बेटी को बचा लो वो मरने वाली है।  वो सिर्फ 12 वर्ष की है।  प्रभु मेरी बेटी को बचालो, बचा लो।   तभी एक आदमी ने आकर कहा की तुम्हरी बेटी नहीं रही, तुम गुरूजी को जाने दो उन्हें मत रोकों। यह खबर सुनकर वह बुरी तरह रोने लगा
तभी यीशु मसीह ने उस आदमी से  कहा , तुम घबराओं नहीं तुम्हारी बेटी को कुछ नहीं होगा और वो उस आदमी के साथ उसके घर की तरफ चल दिए।  घर पहुंचने पर प्रभु येशु ने देखा एक 12-13 वर्ष की बच्ची बिल्कुल शांत पलंग पर लेटी है।  जिसके शरीर में अब कोई हरकत नहीं थी। यीशु मसीह ने उसे देखा और उस बच्ची के  माता- पिता से बोले तुम मत रोओ, वो तो सिर्फ सो रही है , मरी नहीं है।  यीशु उसके पास बैठ गए और बोले  उठो बेटी,  येशु की आवाज़  सुनते ही वो लड़की उठ बैठी और प्रभु की और एकटक देखती रही। तब यीशु पलंग से उठ कर खड़े हो गए।  वो लड़की भी उठ कर खड़ी हो गई।  उन्होंने उस लड़की की माँ से कहा इसे कुछ खिलाओ। उन्होंने ये भी कहा, यहाँ अभी जो कुछ भी हुआ वो बहार किसी से न कहना। और वहां से चले गए।

 अपने शिष्यो के साथ प्रभु येशु जगह-जगह घूमकर लोगों के बीच अपने वचन सुनाते और उन्हें सही राह दिखाते। एक बार इसी तरह घूमते घूमते वो एक पहाड़ी पर गए और उस पहाड़ी पर सारी रात प्रार्थना करते रहे अगले दिन उन्होंने अपने 12 शिष्यों को चुना और उन्हें प्रेरित कहा।  उन्ही शिष्यों में से एक था शिमोन जिसे उन्होंने पतरस का नाम दिया। जो प्रभु येशु के साथ शुरू से रहा और उनका प्रिय शिष्य बना। पर इन्ही शिष्यों मे से एक था,   यहूदा स्किरयोगी। उनका यही साथी  बाद में विश्वासघाती निकला और यीशु को पकड़वाया।

प्रभु यीशु अपने शिष्यों के साथ आगे बढ़ते जा रहे थे।  जहां उन्हें कई तरह के लोग मिले। जहां  कुछ बहुत परेशान  तो कुछ लोभी, कुछ बहुत गरीब तो कुछ अमीर।  उन्हें देख प्रभु ने उन्हें कहा :-



प्रभु वचन

 धन्य हो तुम  - जो तुम दीन कहलाते हो , क्योंकि परमेश्वर का राज तुम्हारे लिए है।  
"धन्य हो तुम "- जो तुम भूखे हो , क्योकि तुम  सब तृप्त किये जाओगे।  धन्य हो तुम - जो धिक्कारे जाओं, तुम्हे लोग अपमानित करे और मेरे कारण  बुरा कहे।  जब ऐसा हो तो तुम आनंदित होना, क्योकि तुम्हारे लिए स्वर्ग में बड़ा प्रतिफल है।  

 

उन्होंने कहा :-

  • शत्रुओं से प्रेम करों। 
  • घृणा  करने वालों का भला करों। 
  • बुरा करने वालो के लिये प्रार्थना करो। 
  • मसीह ने ये भी शिक्षा दी,  की यदि कोई तुम्हे एक गाल पर थप्पड़ मारे तो तुम तुरंत उसके सामने दूसरा गाल भी कर दो।  
  • किसी मांगने वाले को मना  मत करो। 
  • कोई तुम्हरी वस्तु लेले तो वापस मत मांगों। 
  •  जैसा व्यवहार तुम दूसरो से  चाहते हो। वैसा ही व्यवहार तुम दूसरों के साथ करो ।
  • यदि तुम अपनों से प्रेम रखने वालों से प्रेम रखोगें तो तुम्हे आशीष क्यों मिलेगा , क्योकि पापी भी ऐसा ही करते है। अर्थात सबके प्रति प्रेम भाव रखों।  
  • स्वयं की भलाई करने  वाले की भलाई करोगे तो तुम्हे क्यों आशीष मिलेगा , क्योकि पापी भी ऐसा ही करते है।  अर्थात सबकी भलाई करों।  
  • तब तुम परमपिता परमेश्वर की संतान  कहलाओगे।  
  • वे लोग जो  दुष्ट है और वे जो कभी किसी का आभार नही मानते, उन पर भी कृपा करता है। 
  • दूसरो पर दोष मत लगाओ, आरोप मत लगाओ तो तुम पर भी नहीं लगेगा।  
  • क्षमा करों तो तुम्हे भी क्षमा मिलेगी।  

सभी लोग प्रभु के वचनों को ध्यानपूर्वक  सुन रहे थे। कुछ धर्मशास्त्री भी वहां खड़े  थे, उनमे से एक ने प्रभु यीशु को और करीब से जानने के लिए अपने घर पर भोजन करने के लिए आमंत्रित किया।  प्रभु यीशु उनके घर अपने शिष्यों के साथ पहुंचे, वहां कुछ और लोग भी  मौजूद थे जो प्रभु येशु के वचन सुनना चाहते थे ,  अभी वहां मौजूद सभी लोग भोजन करने बैठे ही थे की तभी एक स्त्री वहां आई, जिसे लोग अच्छी स्त्री नहीं मानते थे।  उसे वहां देखते ही  वहां उपस्थित धर्मशास्त्रियों के चेहरे का रंग उड़ गया।  वे लोग परेशान थे की ये स्त्री यहाँ  क्यों आई है।  

 प्रभु यीशु  को देखते ही वो स्त्री दौड़कर आई और रोने लगी, उसके आंसू लगातार प्रभु के पैरों  पर गिर रहे थे। प्रभु के पैर गीले होते देख ,उसने  अपने बालो से पैरों को पोंछा  और फिर उनके पैरों पर इत्र लगाया।  

वहां बैठे सभी धर्मशास्त्री  यह सब देख  कर सोच रहे थे की यह स्त्री आखिर क्या कर रही है।  वो मसीह के पैरों  को हाथ लगा रही है, छू रही है और मसीह  उस स्त्री को अपने पैरों को  छूने दे रहे है।

इसका अर्थ तो यही है की वो नहीं जानते की ये स्त्री कौन है और कैसा जीवन जीती है।  अगर ये सच में मसीह होते तो वे ये बात आसानी से जान
पाते की ये स्त्री कैसी  है।

प्रभु यीशु समझ गए की वे क्या सोच रहे है और वे उस धर्मशास्त्री से बोले मैं  जनता हूँ की ये स्त्री कौन है और कैसा जीवन जीती है।  उन्होंने कहा - "एक  महाजन के दो कर्जदार थे।  एक पर 500 रू. और दूसरे पर 50 रू. का कर्जा था,  पर  दोनों ही कर्जदार कर्ज चुकाने में असमर्थ  थे।  महाजन ने उन दोनों का कर्ज माफ  कर दिया।  उस महाजन से कौन ज्यादा प्रेम करेगा। "

धर्मशास्त्री ने कहा जिसका ज्यादा कर्ज माफ हुआ।

तब यीशु ने कहा,  इस स्त्री को देखों, मैं तुम्हारे घर आया  परन्तु तुमने  मुझे पैर धोने के लिए पानी नहीं दिया,  पर इस स्त्री ने अपने आंसुओं से मेरे पैर धोये है।  पैर को अपने बालों से पोछा है,  और पैरों पर इत्र लगाया। तब फिर इस स्त्री का प्रेम अत्यधिक है जो यह दर्शाता है की इसके पाप क्षमा हुए।

प्रभु यीशु ने उस स्त्री से कहा तुम शांति से जाओं, तुम्हारे सभी पाप क्षमा हुए। परमेश्वर पर तुम्हारे विश्वास ने तुम्हे बचा लिया, और वो स्त्री वहां से रोते हुए चली गई।



   Contd....2

ये भी  पढे:-
Christmas / Yishu Masih Story-Part-2 

















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Milan Tomic

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