हिंदी कहानी संग्रह - माँ लक्ष्मी/ hindi story


(रमा अक्सर लक्ष्मी माँ की मूर्ति बनाते हुए उनसे बातें करती थी और हमेशा उन्हें अपने घर आने का निमंत्रण देती थी।  पर माँ उसका निमंत्रण इस तरह स्वीकार  लेंगी ये उसने कभी भी सोचा नहीं था।  इसी को कहते सच्ची और भोली भक्ति )




  (जब माँ लक्ष्मी दीपावली के दिन मेरे घर आई )

रमा अपनी बीमार माँ और दो छोटे भाई बहन मुन्नी और पप्पू के साथ टूटे फूटे ईटों के बने एक कमरे के घर में रहती थी जो उसके बाबा ने बनाया था।  बाबा तो रहे नहीं इसलिए परिवार की जिम्मेदारी उसी पर थी।

रमा छोटी मोटी मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालती, कभी मजदूरी का काम मिलता और कभी नहीं। किसी तरह वो अपना परिवार चला रही थी।  पर उसे मूर्तियां बनाने का बहुत शौक था।  हर साल की तरह इस बार भी उसने लक्ष्मी माँ   की बहुत सारी मूर्तियां बनाई।

दीपावली बहुत नजदीक थी।  उसे जल्दी जल्दी सभी मूर्तियों को पूरा करना था तभी तो दीपावली से पहले वो उन मूर्तियों को बाजार में बेचने जा पायेगी।

रमा ओ रमा, माँ की सुबह जब आँख खुली और रमा नहीं दिखी तो माँ ने आवाज लगाई।

हाँ माँ , आई। रमा की आवाज आई।

 अरे आज तू काम पर नहीं जाएगी क्या। माँ ने पूछा।

नहीं माँ आज कोई काम नहीं मिला।  और फिर मुझे लक्ष्मी माँ की मूर्तियां भी तो पूरी करनी है। दीवाली में चार पांच दिन ही बचे है। कल से तो बाजार जाना ही होगा  दीवाली तक , तभी तो मूर्तियां बिक पायेगी।  रमा ने कहा।

पता नहीं,  माँ ने निराशा भरी आवाज में कहा।

माँ तुम इतनी निराश मत हुआ करो।  देखना माँ,  माँ लक्ष्मी हम पर भी अपनी कृपा जरूर करेंगी।  बस तुम भगवान् से प्रार्थना करना की इस बार सारी मूर्तियां बिक जाये, ताकि हम भी दिवाली पर दिए जला सके।

रमा  मूर्तियां पूरी करने में लग गई।  मूर्तियां बनाते समय अक्सर रमा माँ लक्ष्मी से बातें करती थी।

 माँ लक्ष्मी दीवाली आ गई है।  देखों माँ इस बार तो तुम्हें जरूर आना होगा मेंरे घर, पर तुम अगर आ गई तो मै तुम्हें बिठाऊँगी कहाँ।  चलो, बिठाने का बंदोबस्त तो कर लूँगी, पर खिलाऊंगी क्या, क्योंकि जब मुझे मजदूरी मिलती है तभी मैं  कुछ खाने के लिए ला पाती हूँ।  इसलिए जब भी तुम आओगी मुझे पहले ही बता देना तभी तो  तुम्हारे खाने पीने का इंतजाम कर पाऊँगी, ठीक कहा ना मैंने। हँसते हुए रमा फिर से अपने काम में व्यस्त हो जाती है।

हर साल माँ से यही कहती है आज तक तो लक्ष्मी माता ने कभी तेरी सुनी नहीं तो अब क्या सुनेगी।  माँ ने फिर निराशा भरे लहजे में कहा।  माँ की बात सुन कर रमा जोर से हंस पड़ी।

दूसरे दिन रमा सुबह जल्दी उठ कर जल्दी  जल्दी काम निपटाकर बाजार चली गयी।  परन्तु कुछ खास बिक्री नहीं हुई,  रमा कुछ निराश थी।  जितने पैसे मिले उसमे उसने माँ की दवा और कुछ खाने का सामान ले लिया।   माँ के पूछने पर उसने बताया आज बाजार में ज्यादा भीड़ नहीं थी माँ, इसलिए बिक्री नहीं हुई पर तू फिकर मत कर, देखना इस बार सब मूर्तियां बिक जाएगी। वो माँ को निराश नहीं करना चाहती थी।  उसने माँ से कह तो दिया था की सब मूर्तियां बिक जाएगी पर अगर ऐसा नहीं हुआ तो यह सोच वो खुद भी बहुत परेशान थी।


अब रोज सुबह उठ कर वो जल्दी बाजार जाती।  पर उसे निराशा ही हाथ लगती।

आज दीवाली थी रोज की तरह रमा बाजार जाने लगी की तभी माँ ने कहा, रमा आज तो तू पूरी कोशिश करना की कुछ मूर्तियां बिक जाये।  दीवाली के दिन कम से कम  दिए तो जला सके।  माँ तुम निराश मत हो, सब ठीक होगा।  लक्ष्मी माँ पर भरोसा रखों। इतना कहकर रमा बाजार चली गयी।

बाजार रमा के गांव से काफी दूर था।  रमा पैदल ही वहां जाती थी। रमा ने रास्ते में देखा एक बूढ़ी  सी अम्मा एक पेड़ के किनारे बैठी कराह रही थी।  रमा ने पास जाकर देखा अम्मा के पैर में चोट लगी थी और खून भी निकल रहा था।  रमा ने पूछा अम्मा तुमको ये चोट कैसे लगी, कहते हुए उसने अपनी साड़ी के पल्ले को फाड़कर अम्मा के पैर में एक पट्टी बांध दी।

अम्मा ने कराहते हुये कहा अरे बिटिया चलते चलते गिर गई और पैर में चोट लग गई।

तुम्हारा घर कहाँ है चलो में तुम्हे घर तक पहुंचा देती हूँ।  रमा के कहते ही अम्मा ने तुरंत सर हिला कर हामी भर दी।

बस यही पास में ही है। अम्मा ने कहा।   रमा ने अम्मा को सहारा देकर उठाया और सर पर मूर्तियों की टोकरी रख कर अम्मा के घर की और चल दी।  रास्ते में अम्मा ने पूँछा बेटी तुम कहाँ जा रही हो आज तो दीवाली है ना।

मैं  बाजार जा रही हूँ अम्मा, लक्ष्मी माँ की मूर्तियां बेचने। अगर कुछ मूर्तियां बिक गई और थोड़े पैसे मिल गए तो हम भी दिवाली मना लेंगे।  रमा ने बहुत ही धीरे स्वर में कहा।

तू चिंता मत कर बिटिया देखना आज तेरी सब मूर्तियां बिक जाएगी।  भगवान अच्छे लोगों के साथ अच्छा ही करता है।  अम्मा ने कहा।

रमा अम्मा से बाते करते करते बहुत दूर तक आ गई थी।  तभी रमा ने अम्मा से पूछा अम्मा तुम्हारा घर और कितनी दूर है तुम तो कह रही थी यही पास में है पर हम तो बहुत दूर आ गए।

बस आ ही गया,  कहते हुए अम्मा ने एक टूटी फूटी झोपड़ी की और इशारा किया।

रमा ने चौक कर कहा तुम यहाँ अकेली रहती हो अम्मा। इतनी सुनसान जगह और आस पास इतना जंगल।  तुम्हे डर  नहीं लगता।

अम्मा ने हंस कर अपनी कपकपाती आवाज में कहा अरे मै  तो यहाँ बरसों से रह रही हूँ।  तब इतना जंगल नहीं था यहां।

रमा ने अम्मा को बिठाते हुए कहा , अम्मा, अब तुम आराम करों।  और ये माँ की मूर्ति लो आज दीवाली है तो तुम भी पूजा  जरूर करना।  रमा ने माँ लक्ष्मी  की   एक मूर्ति अम्मा को देते हुए कहा।

पर मेरे पास मूर्ति खरीदने के पैसे नहीं है बेटी। अम्मा के इतना कहते ही रमा ने हंस का कहा मुझे पैसे नहीं चाहिए, तुम तो बस माँ की पूजा अच्छे से करना। और ये रोटी लो इसे खा लेना।  अच्छा अब मै भी चलती हूँ , बाजार के लिए देर हो रही है  इतना कह कर रमा बाजार के लिए चल दी।

शाम ढलने लगी थी पर रमा की एक भी मूर्ति अब तक नहीं बिकी थी।  रमा अब बहुत ज्यादा निराश हो गई थी।  (वो सोच रही थी ) अब तो पूजा का समय होने वाला है।  थोड़ी देर में लोगों की भीड़ भी कम हो जाएगी।  और फिर थोड़ी देर में मुझे भी तो घर के लिए निकलना होगा, नहीं तो अँधेरा ज्यादा गहराने लगेगा।

रमा सोच रही थी मै घर जाकर माँ, मुन्नी और , पप्पू को क्या कहूंगी।  वो लोग कितनी आस से मेरा इंतजार कर रहे होंगे।  रमा कुछ देर इसी उधेड़गुन में बैठी रही , और फिर टोकरी सर पर रख कर घर की तरफ बोझिल क़दमों से चल पड़ी।

रास्ता बहुत सुनसान था और अँधेरा भी  ज्यादा हो रहा था, इसलिए रमा ने अपने कदमों की रफ़्तार बहुत तेज कर दी, की तभी उसके बगल से एक कार निकली जो थोड़ी आगे जा कर रुक गई।

रमा गाड़ी को रुकता देख बहुत खबरा गई उसने अपनी चाल और तेज कर ली।  तेजी से चलते हुए वो गाड़ी से जैसे ही आगे निकली उसे एक महिला का स्वर सुनाई दिया।

अरे रुको।  रमा थोड़ी ठिठक गई, लेकिन फिर से चल पड़ी।  तभी उसे महिला की फिर से आवाज आई।  अरे बेटी रुकों, तुम्हारी टोकरी में क्या है।  इतना सुनते ही रमा रुक गई उसने मुड़ कर देखा गाड़ी में एक महिला लाल साड़ी पहने सर ढाक  कर बैठी थी।

महिला ने फिर से पूछा तुम्हारी टोकरी में क्या है।
माँ लक्ष्मी की मूर्ति है।  रमा ने कहा।

तभी महिला ने एक मूर्ति दिखा कर कहा इस तरह की मूर्ति है क्या।

रमा मूर्ति देख चौकी यह मूर्ति आपके पास कहा से आई।

तभी महिला ने कहा मैंने एक अम्मा से खरीदी है पर उन के पास एक ही मूर्ति थी।  मुझे ज्यादा चाहिए।  क्या तुम्हारे पास ऐसी मूर्ति और है।

यह सुनते ही रमा ने खुश हो कर कहा हाँ हाँ मेरे पास ऐसी ही मूर्तियां है ये देखिये (मूर्ति दिखते हुए ) . आपको कितनी चाहिए।

मुझे सारी मूर्तियां चाहिए।  महिला ने कहा।

सारी मूर्तियां,  पर ये तो सौ मूर्तियां है इतनी मूर्तियों का आप क्या करोगी। रमा ने महिला को हैरत से देखते हुए पूछा।

मैंने कुछ मानता ली थी, इसलिए मुझे सारी  मुर्तिया चाहिए।  तो तुम सारी मुर्तिया दोगी न मुझे।  महिला ने कहा।

हाँ हाँ ले लीजिये, कहते हुए रमा ने टोकरी गाड़ी में रख दी। बदले में महिला ने रमा के हाथों में नोटों की गड्डी रख दी।

इतने सारे पैसे देखकर रमा ने महिला से कहा अरे मेमसाब मेरी मूर्तियों के तो सिर्फ दोसौ  रूपये ही होते है, आपने मुझे बहुत ज्यादा पैसे दे दिए है।

कोई बात नहीं ये तुम्हारी मेहनत के ही पैसे है रख लो।  महिला ने रमा से कहा और गाड़ी में बैठ गई।

नहीं नहीं मेमसाब मैं इतने पैसे नहीं ले सकती हूँ, आप सिर्फ मेरी मूर्तियों के ही पैसे दीजिये।  रमा यही कहती रही और गाड़ी वहां से चली गयी।

रमा भी अपने क़दमों को तेजी से बढ़ाते हुए घर की और चल पड़ी।  पर वो खुश थी की उसकी सारी मूर्तियां बिक गई है।

घर पहुंचते ही रमा हैरान रह गई। उसने देखा घर के बहार पप्पू - मुन्नी नए कपडे पहनकर फटाके चला रहे थे।  घर के एक कोने में माँ बैठी थी वो भी नयी साड़ी  पहने बहुत ही खुश लग रही थी।  घर के बहार बहुत से दिए जगमगा राजे थे।

रमा समझ ही नहीं पारही थी की ये चमत्कार कैसे हो गया।  वो दौड़कर माँ के पास गई।

माँ ये सब कैसे।  रमा की बात सुनकर माँ हँसते हुए बोली हाँ बेटे ये तो मुझे भी समझ नहीं आ रहा है।  कुछ देर पहले एक बड़ी सी गाड़ी में एक लाल साड़ी  पहने महिला आयी थी।  वो ही हम सब के लिए नए कपडे और मिठाइयां, पटाके लाई।  और खुद अपने हाथों से ये सारे दिए लगा कर गई है। मैंने  उनसे  पूछा तो उन्होंने बताया की उन्होंने कोई मानता ली थी, जो पूरी हो गई है।  इसलिए वो  कुछ घरों में ये सब सामान बाँट रही है ।


रमा, माँ की बात सुनते ही समझ गई ये कोई और नहीं बल्कि माँ लक्ष्मी स्वयं थी, जो आज सुबह से ही मुझे बार बार दर्शन दे रही थी।  और फिर रमा ने माँ को सुबह से शाम तक की सारी घटनाये सुनाई।

माँ ने सारी बातें सुनकर कहा रमा तूने लक्ष्मी माँ पर सदैव अटूट विशवास रखा और हमेशा उन्हें सच्चे मन से पुकारा,  तभी तो माँ ने तेरी सुन ली और आज हमारे घर आकर हम सब पर अपनी कृपा बरसा कर  गई।


( कहा जाता है की भगवान् को यदि हम सच्चे मन  से पुकारते है तो वो अवश्य ही हमारी पुकार सुनते है।  अगर उन्हें सच्ची श्रद्धा से फूल की जगह पंखुरी चढ़ाये तो वो अवश्य ही उसे स्वीकार करते है । )
























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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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