Shri krushna janmashtami |
जन्माष्टमी 2022
2022 में कृष्ण जन्माष्टमी कब है/ Janmashtami 2022 date.
जन्माष्टमी 2022, भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को दिनांक 19 अगस्त 2022 को मनाई जायेगी। जन्माष्टमी का त्योहार भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का त्यौहार है।
जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है / Janmashatami kyo manai jati hai:-
श्री कृष्ण जन्माष्टमी, भगवान् के प्राकट्य का दिन, जब घर घर मे छोटे से पालने में बालमुकुंदजी (लड्डूगोपाल) को बैठाकर झुला झुलाया जाता है और प्रसाद के रूप में पंजीरी बांटी जाती है। नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की, हाथी, घोडा, पालकी जय कन्हैया लाल की के जय घोष के साथ घरों में, मन्दिरों में,भगवान् कृष्ण का जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
रक्षाबन्धन का त्यौहार जो की जन्माष्टमी से ठीक आठ दिन पहले आता है, यह त्यौहार राखी से लेकर कृष्ण जन्माष्टमी तक मनाया जा सकता है। जैसे अगर कोई राखी के दिन राखी नहीं बंधवा सका या अगर बहन दूर है और रक्षाबन्धन पर भाई को राखी नहीं बांध पाई तो जन्माष्टमी तक बहने अपने भाई को राखी बांध सकती है।
प्रभु श्री कृष्ण का जन्म कब हुआ था:-
यह सर्वविदित है की जब जब धरती पर पाप बढ़ता है तब तब भगवान् को धरती को पाप मुक्त करने के लिए जन्म लेना ही पड़ता है। इसी तरह जब कंस नामक आततायी के आंतक से धरती कांप उठी, जनमानस त्राहि त्राहि कर उठी तब भगवान विष्णु ने भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्य रात्रि में रोहणी नक्षत्र में भगवान कृष्ण के रूप में माता देवकी और वासुदेव के यहाँ जन्म लिया। कृष्ण के रूप में धरती पर जन्म के इसी दिन को जन्माष्टमी के रूप में बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है।
जन्माष्टमी के दिन मंदिरों को रौशनी से सजाया जाता है झांकियां बनाई जाती है। भगवान के लिए विशेषरूप से सुसज्जित पालने बनाये जाते है। जिसमे भगवान् कृष्ण के बालरूप लड्डू गोपाल को बैठाया जाता है। जगह जगह कृष्ण लीलाये दिखाई जाती है। मंदिरों में दूर दूर से श्रुद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और मध्यरात्रि को ढोल, मंजीरों, और भगवान के भजनों के बीच भगवान् कृष्ण की पूजा अर्चना होती है और भगवान् को पालने में बैठाकर झूला झुला कर भगवान् का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
जन्माष्टमी के त्यौहार पर कई जगहों पर छोटे छोटे बच्चों को भी कृष्ण रूप में सजाया जाता है। आज के दिन मन्दिरों में या स्कूलों में बच्चों के लिए कई कम्पीटीशन भी रखें जाते है , जिनमे माता पिता अपने बच्चों को कृष्ण के भिन्न भिन्न मोहक रूपों में सजाकर कृष्णजन्माष्टमी का त्यौहार मानते है।
जन्माष्टमी की कथा :-
मथुरा का राजा कंस अत्यंत आततायी था। उसने अपने पिता महाराज उग्रसेन को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया था एवं स्वयं गद्दी पर बैठ गया था। कंस की एक बहन थी देवकी। वह अपनी बहन से बहुत प्रेम करता था। कंस ने अपनी बहन का विवाह वासुदेवजी के साथ बड़ी ही धूमधाम से कर दिया। विवाह पश्चात जब कंस अपनी बहन देवकी और वासुदेवजी को अपने रथ में बैठाकर आदरपूर्वक छोड़ने जा रहा था, की रास्ते में आकाशवाणी हुई की जिस बहन को इतने आदर और प्रेम से तुम विदा कर रहे हो उसकी आठवी संतान तुम्हारा नाश कर देंगी, देवकी की आठवी संतान ही तुम्हारा काल होगी।
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यह सुनकर कंस को अपने कानों पर विश्वास नही हुआ वह सोचने लगा भला मुझे कौन मार सकता है लेकिन फिर भी आकाशवाणी हुई है तो उसने निश्चय किया की वो अपनी बहन देवकी को ही ख़त्म कर देगा। उसने यह सोचकर तलवार उठा ली परंतु तभी वासुदेवजी ने कंस से कहा की आप देवकी को न मारे वो आपकी छोटी बहन है छोटी बहन पुत्री के समान होती है मैं आपको वचन देता हूँ की देवकी के संतान होते ही मैं आपको सौंप दूंगा। वासुदेवजी के बहुत विश्वाश दिलाने पर कंस ने कुमार वासुदेव की बात पर विश्वास कर उन दोनों को कारागार में डाल दिया।
इसके बाद वासुदेवजी ने अपने वचनुसार एक एक कर अपनी सातों संतान को कंस को सौप दिया। और कंस ने सातो को जन्म लेते ही मार दिया।
एक दिन वासुदेवजी और देवकीजी के समक्ष कारागार में तेज प्रकाश हुआ और भगवान् विष्णु ने प्रकट हो कर उन दोनों को दर्शन दिए और उन्हें बताया की आपकी आठवी संतान के रूप में मैं आपके यहाँ जन्म लूंगा। आप मुझे गोकुल में नन्दबाबा के यहां पहुंचा देना एवं उनके यहां एक पुत्री का जन्म हुआ है उन्हें लाकर कंस को सौप देना। इतना कहकर भगवान् अंतर्ध्यान हो गए।
भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि, रोहाणी नक्षत्र में आख़िरकार वह समय भी आ गया जब भगवान विष्णु ने भगवान् कृष्ण के रूप में जन्म लिया।
यह सुनकर कंस को अपने कानों पर विश्वास नही हुआ वह सोचने लगा भला मुझे कौन मार सकता है लेकिन फिर भी आकाशवाणी हुई है तो उसने निश्चय किया की वो अपनी बहन देवकी को ही ख़त्म कर देगा। उसने यह सोचकर तलवार उठा ली परंतु तभी वासुदेवजी ने कंस से कहा की आप देवकी को न मारे वो आपकी छोटी बहन है छोटी बहन पुत्री के समान होती है मैं आपको वचन देता हूँ की देवकी के संतान होते ही मैं आपको सौंप दूंगा। वासुदेवजी के बहुत विश्वाश दिलाने पर कंस ने कुमार वासुदेव की बात पर विश्वास कर उन दोनों को कारागार में डाल दिया।
इसके बाद वासुदेवजी ने अपने वचनुसार एक एक कर अपनी सातों संतान को कंस को सौप दिया। और कंस ने सातो को जन्म लेते ही मार दिया।
एक दिन वासुदेवजी और देवकीजी के समक्ष कारागार में तेज प्रकाश हुआ और भगवान् विष्णु ने प्रकट हो कर उन दोनों को दर्शन दिए और उन्हें बताया की आपकी आठवी संतान के रूप में मैं आपके यहाँ जन्म लूंगा। आप मुझे गोकुल में नन्दबाबा के यहां पहुंचा देना एवं उनके यहां एक पुत्री का जन्म हुआ है उन्हें लाकर कंस को सौप देना। इतना कहकर भगवान् अंतर्ध्यान हो गए।
भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि, रोहाणी नक्षत्र में आख़िरकार वह समय भी आ गया जब भगवान विष्णु ने भगवान् कृष्ण के रूप में जन्म लिया।
भगवान् के जन्म लेते ही कारागार के सारे द्वार खुलने लगे। सभी पहरेदार गहरी निद्रा में सो गए। तब भगवान विष्णु की आज्ञानुसार वासुदेवजी भगवान् कृष्ण को लेकर गोकुल की और चल दिए। बीच में यमुना नदी पड़ी। वासुदेवजी ने भगवान कृष्ण को टोकरी में लिटा दिया और टोकरी सर पर रखकर यमुना नदी पार करने लगे। तभी घनघोर वर्षा होने लगी। (यह माना जाता की इसलिये जन्माष्टमी के दिन हर वर्ष बारिश अवश्य होती है।) यमुना नदी का पानी ऊपर की और बढ़ने लगा। परंतु वासुदेव श्री कृष्ण को लेकर निरंतर चलते रहे।
यमुना नदी का पानी ऊपर की और बढ़ता ही जा रहा था क्योकि माँ यमुना भगवान् कृष्ण के चरण स्पर्श करना चाहती थी। तभी भगवान् कृष्ण ने अपने पैर टोकरी से बहार निकाल दिए ताकि यमुना देवी उनके चरण स्पर्श का सके। चरण स्पर्श करते ही यमुना नदी का पानी नीचे उतर गया और वासुदेवजी को रास्ता दे दिया।
वासुदेवजी गोकुल पहुंचे वहां यशोदा मैया सो रही थी। वासुदेवजी ने भगवान् कृष्ण को उनके बगल में सुला दिया और वहां जन्मी कन्या को लेकर वापस कारागार में आ गए। वासुदेवजी ने अपने वचन अनुसार उस कन्या को कंस के हाथ सौंप दिया। कंस ने जैसे ही उस कन्या को मारना चाहा वह आकाश में उड़ गयी क्योंकि वो माया देवी थी जो भगवान् विष्णु की आज्ञानुसार ही प्रकट हुई थी। उन्होंने कंस को बताया की जिस बालक की तुझे प्रतीक्षा है वह गोकुल पहुंच गया है। मैं तो केवल भगवान् विष्णु की माया हूँ मुर्ख। तेरे काल ने इस धरती पर जन्म ले लिया है।
उधर गोकुल वासियों को जब यह पता चला की नंदबाबा के घर बालक का जन्म हुआ है तो वे सभी नंदबाबा को बधाई देने पहुंच गए। तब मैया यशोदा ने खड़ा धनिया पीस कर उसमे शक्कर मिलाकर पंजीरी बनाई और सबको प्रसाद के रूप में बांटी। इसलिए जन्माष्टमी पर पंजीरी का प्रसाद अवश्य बनाया जाता है।
कंस ने भगवान् कृष्ण के जन्म होने की बात जानकर कई मायावीय राक्षसों को गोकुल भेजा ताकि वो भगवान् कृष्ण का अंत कर सके परन्तु उसे हर बार निराश ही मिली।
आख़िरकार कंस का अंत समय भी आ गया। भगवान् कृष्ण ने मथुरा जाकर कंस का अंत किया और इस धरती को एकबार फिर से पापमुक्त किया।
वासुदेवजी गोकुल पहुंचे वहां यशोदा मैया सो रही थी। वासुदेवजी ने भगवान् कृष्ण को उनके बगल में सुला दिया और वहां जन्मी कन्या को लेकर वापस कारागार में आ गए। वासुदेवजी ने अपने वचन अनुसार उस कन्या को कंस के हाथ सौंप दिया। कंस ने जैसे ही उस कन्या को मारना चाहा वह आकाश में उड़ गयी क्योंकि वो माया देवी थी जो भगवान् विष्णु की आज्ञानुसार ही प्रकट हुई थी। उन्होंने कंस को बताया की जिस बालक की तुझे प्रतीक्षा है वह गोकुल पहुंच गया है। मैं तो केवल भगवान् विष्णु की माया हूँ मुर्ख। तेरे काल ने इस धरती पर जन्म ले लिया है।
उधर गोकुल वासियों को जब यह पता चला की नंदबाबा के घर बालक का जन्म हुआ है तो वे सभी नंदबाबा को बधाई देने पहुंच गए। तब मैया यशोदा ने खड़ा धनिया पीस कर उसमे शक्कर मिलाकर पंजीरी बनाई और सबको प्रसाद के रूप में बांटी। इसलिए जन्माष्टमी पर पंजीरी का प्रसाद अवश्य बनाया जाता है।
कंस ने भगवान् कृष्ण के जन्म होने की बात जानकर कई मायावीय राक्षसों को गोकुल भेजा ताकि वो भगवान् कृष्ण का अंत कर सके परन्तु उसे हर बार निराश ही मिली।
आख़िरकार कंस का अंत समय भी आ गया। भगवान् कृष्ण ने मथुरा जाकर कंस का अंत किया और इस धरती को एकबार फिर से पापमुक्त किया।
जन्मोत्सव एवं पूजा विधि :-
कृष्ण जन्माष्टमी हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला बहुत ही महत्तवपूर्ण त्यौहार है। इस दिन पूरे देश में जन्माष्टमी की बड़ी धूम रहती है। देश, विदेश से श्रद्धालु जन्माष्टमी मनाने के लिए एकत्रित होते है।
जन्माष्टमी के दिन सभी नित्यकर्मों से निवर्त हो कर स्नान कर व्रत का संकल्प लेते है। इस दिन संभव होतो तो दोनों वक्त फलाहार करना चाहिए। (फलाहार में सभी प्रकार के मौसमी फल, साबूदाने की खिचड़ी, मूंगफली दाने, राजगिरे का हलवा, मोरधान इत्यादि ले सकते है या कोई भी फलहारी चीज खा सकते है। व्रत में सेंदा नमक का ही प्रयोग किया जाता है सादा नमक का प्रयोग नहीं किया जाता है)।
अगर दोनों वक्त फलाहार करना संभव न हो तो एक वक्त रात के समय भगवान् का जन्मोत्सव मनाने के बाद भोजन कर सकते है। जन्माष्टमी का व्रत करना, और ना करना यह श्रद्धालु की परिस्थिति पर निर्भर है। बस भगवान् की पूजा मन से करना चाहिए। ईश्वर सच्ची भक्ति ही चाहते है।
इस दिन घरों में छोटी छोटी झांकियां, पालने, सजाये जाते है वैसे तो बाजार में जन्माष्टमी के समय छोटे छोटे झूले, पालने आसानी से मिल जाते है। पर अगर चाहें तो घर में भी छोटे से सिंहासन में डोरी बांधकर झूला बनाकर उसे सुसज्जित कर बालगोपाल के लिए एक सुन्दर झूला बनाया जा सकता है, वही मंदिरों में जन्माष्टमी की धूम देखते ही बनती है। भगवान् के जन्मोत्सव के लिए बहुत ही सुंदर झांकियाँ बनाई जाती है। रासलीलाओं का आयोजन किया जाता है। मंदिरों को रोशनी से जगमगाया जाता है।
भगवान् की पूजा:- भगवान् की पूजा के लिए चौक पूर कर चौकी पर लाल वस्त्र बिछाया जाता है जिस पर भगवान् की मूर्ति, चित्र आदि स्थापित किये जाते है भगवान की पूजा के लिए दूध, दही, शहद, घी, शक्कर का पंचामृत बनाया जाता है। मध्यरात्रि को ठीक 12 बजे भगवान् को पंचामृत से अभिषेक कर, सुन्दर नए वस्त्र पहनाये जाते है। और पालने में बिठाया जाता है। रोली, सिंदूर, अक्षत आदि से पूजा की जाती और मिठाई, फल, नैवेध, माखनमिश्रि, पंजीरी का भोग लगाया जाता है। पुष्प अर्पित किये जाते है झूला झुलाया जाता है एवं आरती कर प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
जन्माष्टमी में पंजीरी को विशेष रूप से प्रसाद के रूप चढ़ाया जाता है पंजीरी को खड़े धने को पीसकर बनाया जाता है
पंजीरी कैसे बनाये : खड़े धने को पीसकर पाउडर बना लेते है। फिर इस पाउडर को शुद्ध घी में थोड़ी देर भून लेते है इसके बाद इसमे शक्कर को पीसकर मिलाते है। कुछ ड्राय फ्रूट्स जैसे बादाम, पिस्ता, काजू, किशमिश को भी शुद्ध घी में भून कर या बिना भुने भी डाल सकते है। ऊपर से थोडा किसा नारियल डालकर भोग लगाते है।
Shri krishan |
भगवान् कृष्ण को मक्खन अति प्रिय है। वे अपने बाल्यकाल में अपने सखाओं की टोली सहित मक्खन खाने के लिए गोपियो की मटकियां फोड़ा करते थे। इसलिए जन्माष्टमी पर जगह जगह दही हांड़ी फोड़ने का कायर्क्रम आयोजित किया जाता है जिसकी तैयारियां कई दिन पूर्व से ही शुरू हो जाती है ।
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