अनन्त चतुर्दशी 2021:-
अनन्त चतुर्दशी या जिसे हम अनन्त चौदस भी कहते है। इस दिन का हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्तव माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनन्त रूप की पूजा की जाती। साथ ही इसी दिन गणेश भगवान जो की गणेश चतुर्थी से 10 दिन के लिए विराजमान होते है। अनन्त चौदस के दिन ही उनको विसर्जित किया जाता।
वर्ष 2021 में अनन्त चतुर्दशी कब है यह जान लेते है। 19 सितम्बर 2021, भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी मनाई जायेगी।
अनन्त चतुर्दशी क्यों मनाई जाती है/ अनन्त चतुर्दशी का महत्तव (Anant chaturdashi kyo manayi jati hai/ Anant chaturdashi ka mahatav)
अनन्त चतुर्दसी के दिन मुख्य रूप से भगवान विष्णु के अनन्त रूप की पूजा अर्चना करने का अत्यधिक महत्तव है साथ ही यमुना देवी एवं शेषनाग की भी पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यतानुसार भगवान विष्णु ने 14 लोको का निर्माण किया था जिनमे ब्रह्मलोक, भुवलोक, भूलोक, जनलोक, स्वलोक, महालोक, तपोलोक, अतल, वितल, तलातल, रसातल, महातल, पाताल, आदि थे। अनन्त चतुर्दशी के दिन इन 14 लोक के प्रतिक के रूप में ही धागें में 14 गांठ लगाई जाती है, और पूजा करने के बाद 14 गाँठ वाला अनन्त सूत्र हाथ में बाँधा जाता है। ऐसी मान्यता है कि अनन्त चतुर्दशी के दिन भगवान के चरणों में समर्पित कर 14 गांठ वाला सूत्र कलाई पर बाँधने से सभी कष्ट दूर हो जाते है।
पौराणिक मान्यतानुसार जब पांडव् अपना सबकुछ हार कर 12 वर्ष का अज्ञातवास काट रहे थे, तब भगवान कृष्ण ने उन्हें अनन्त भगवान की पूजा करने के लिए कहा था, पांडवों ने ये व्रत पूरे विधि विधान से किया जिसके फलस्वरूप अनन्त देव की कृपा से पांडवों ने महाभारत में विजय प्राप्त की और उनकों उनका खोया हुआ राजपाट, वैभव, सम्मान सबकुछ वापस मिल गया। माना जाता है इस व्रत की शुरुआत तभी से हुई है।
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा:-
पौराणिक मान्यतानुसार भगवान कृष्ण ने पांडवों को अनन्त चतुर्दशी की कथा सुनाई। कथानुसार प्राचीनकाल में सुमन्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था उनकी पत्नी का नाम दीक्षा था। उनकी एक पुत्री थी सुशीला जो अत्यंत सुन्दर, धर्मपरायण, संस्कारी थी। सुशीला की माँ जल्द ही चलबसी, तब सुशीला के पिता सुमन्त ब्राह्मण ने कर्कशा नाम की एक स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया।
जब सुशीला बड़ी हुई तब पिता ने उसका विवाह कौंडिल्य नाम के एक ऋषि से कर दिया। जब विवाह के बाद कौंडिल्य अपनी पत्नी को लेकर अपने आश्रम की और जा रहे थे तब रास्ते में ही संध्या होने के कारण वे वही रुक गए और नदी तट पर संध्यावंदन करने लगे। वही पर उनकी पत्नी ने देखा की कुछ महिलाये एकत्रित हो कर पूजा कर रही है। तब सुशीला ने उनके पास जाकर पूछा आप किनकी पूजा कर रही हैं तब उन स्त्रियों ने उन्हें बताया की वे अनन्त भगवान् की पूजा कर रही है पूजा के बाद 14 गांठ लगाकर अनंत सूत्र भगवान के चरणों में लगाकर कलाई में बाँधा जाता है जिससे सभी कष्टों का अंत होता है। अनंतचतुर्दशि व्रत की महिमा के बारे में जानकर सुशीला ने भी व्रत का अनुष्ठान किया और अनन्त सूत्र बांधकर वापस कौंडिल्य के समक्ष आ गयी। ऋषि कौंडिल्य ने पत्नी के हाथ में वह सूत्र देखा तो उसके बारे में पूछा। तब सुशीला ने व्रत की महिमा का गुणगान अपने पति के समक्ष किया। यह सब सुनकर ऋषि कौंडिल्य बोले की वह यह सब नहीं मानते और धागा निकालकर आग में डाल दिया। उसी के बाद वे दरिद्र और दुखी रहने लगे। एक दिन दुखी होकर कौंडिल्य ऋषि ने पत्नी से इस दरिद्रता का कारण पूछा तो उन्होंने बताया की अनन्त सूत्र का अपमान करने के कारण ही हमारी ये दुर्दशा हो रही है। तब कौंडिल्य ऋषि उस अनन्त सूत्र को पुनः प्राप्त करने के लिए वन में गए, परंतु उन्हें वह सूत्र प्राप्त नहीं हुआ। कौंडिल्य ऋषि को बहुत पश्चाताप हो रहा था। आखिरकार वन में भटकते भटकते एक दिन कौंडिल्य ऋषि मूर्छित हो कर गिर गए। तब भगवान विष्णु उनके समक्ष प्रकट हुए और कहा की तुमने अनन्त सूत्र का अपमान कर मेरा तिरस्कार किया, लेकिन अब तुम पश्चात् कर रहे हो, अतः मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुम अनन्त चतुर्दशी का व्रत करों तुम्हारे सभी कष्ट दूर हो जायेंगे। ऋषि कौंडिल्य और उनकी पत्नी ने भगवान के वचन अनुसार 14 वर्ष तक अंन्तदेव का व्रत पूरे विधि विधान से किया। जिससे उनके सभी कष्ट दूर हो गए।
गणेश विसर्जन :-
गणेश चतुर्थी के दिन प्रथम पूज्य गणपति जी घर घर में 10 दिनों के लिए विराजते है। जगह जगह भगवान की झांकियां बनाई जाती। हालांकि इस वर्ष भी कोरोनाकाल के चलते कुछ सतर्कता के साथ यह त्यौहार पूरे विधि विधान से मनाया जा रहा है।
10 दिनों के बाद अंन्तचतुर्दशि के दिन भगवान गणपतिजी को विसर्जित किया जाता है। विसर्जन से पहले भगवान की मूर्ति पटे पर रख कर रोली, सिंदूर, हल्दी, अक्षत से पूजा कर आरती की जाती है मोदक का प्रसाद चढ़ाया जाता है पुष्प अर्पित किये जाते है। और फिर " गणपति बाप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ" के जय घोष के साथ भगवान को विसर्जित किया जाता है।
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