ब्रह्माण्ड क्या है| ब्रह्माण्ड का अर्थ क्या है | ब्रह्माण्ड किसे कहते है।
ब्रह्माण्ड किसे कहते है| brahmand kise kahate hai :-
- ब्रह्माण्ड- सरल भाषा में समझे तो 'ब्रह्माण्ड सूक्ष्म अणुओं से लेकर महाकाय आकाशगंगाओं अर्थात Galaxies के सम्मिलित रूप को कहा जाता है, अर्थात ब्रह्माण्ड - 'पृथ्वी को घेरने वाले विशाल आकाश और उसमे उपस्थित सभी खागोलीय पिंड (मन्दाकिनी (galaxy), तारे, ग्रह, उपग्रह आदि ) तथा सम्पूर्ण ऊर्जा को ब्रह्माण्ड (Universe) कहा जाता है।',
- अगर हम ब्रह्माण्ड को एक लाइन में परिभाषित करे तो - ब्रह्माण्ड अस्तित्वमान द्रव्य एवं ऊर्जा के सम्मिलित रूप को कहा जाता है।
- ब्रह्माण्ड से संबंधित अध्ययन को 'ब्रह्मांड विज्ञान (cosmology)' कहा जाता है।
- ब्रह्माण्ड के सम्बन्ध में खगोल वैज्ञानिकों का मानना है की ब्रह्माण्ड में सैकड़ो अरब मन्दाकिनी तथा प्रत्येक मन्दाकिनी में करीब एक सौ अरब तारे होते है।
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति:-
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति को लेकर कई सिद्धान्त प्रतिपादित किये गए है जिनमे से कुछ प्रमुख सिद्धान्त निम्न है:-
1. 'महाविस्फोट सिद्धान्त (Big-Bang Theory) :- ऐब जॉर्ज लैमेंतेयर'।
2. 'साम्यावस्था या सतत सृष्टि सिद्धांत या स्थिर अवस्था संकल्पना (Steady State Theory):- थॉमस गोल्ड एवं हर्मन बॉडी'।
3. 'दोलन सिद्धांत (Pulsating Universe Theory):- डॉ एलन सन्डेजा'।
4. 'स्फीति सिद्धान्त (Inflationary theory):- अलेन गुथ'।
महाविस्फोट सिद्धान्त (Big-Bang Theory):-
- 'ऊपर दिए सभी सिद्धांतों में से महाविस्फोट सिद्धान्त (Big-Bang Theory ) ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के संबन्ध में सर्वमान्य सिद्धान्त माना गया है। इसका प्रतिपादन बेल्जियम के खगोलज्ञ ऐब जॉर्ज लैमेंतेयर ने किया था'।
- 'लैमेंतेयर एक वैज्ञानिक होने के साथ साथ रोमन केथोलिक पादरी भी थे। उनका महाविस्फोट सिद्धान्त अल्बर्ट आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षवाद सिद्धांत पर आधारित था। बाद मे रॉबर्ट बेगोनेर ने इस सिद्धान्त की व्याख्या की थी'।
महाविस्फोट सिद्धांतानुसार दो तथ्य प्रस्तुत किये गए :-
2)'अत्यधिक संकेन्द्रण के कारण बिंदु का आकस्मिक विस्फोट हुआ। जिसे महाविस्फोट ब्रह्मांडीय विस्फोट (Big-Bang) कहा गया। इस अचानक हुए विस्फोट से पदार्थो का बिखराव हुआ, जिससे सामान्य पदार्थ निर्मित हुए। इनके अलगाव के कारण काले पदार्थ निर्मित हुए, और इन पदार्थों के समूह से अनेक ब्रह्मांडीय पिंडों का सृजन हुआ'।
- 'वैज्ञानिकों का यह मानना है कि यह महाविस्फोट की घटना आज से 13.7 अरब वर्ष पहले हुई थी। और अगर आज से हम देखें तो करीब 4.5 अरब वर्ष पूर्व सौरमण्डल का विकास हुआ था। जिसमे ग्रहों, उपग्रहों का निर्माण हुआ'।
- 'अतः यह कह सकते है की महाविस्फोट ब्रह्मांडीय विस्फोट जिसे हम बिंग बैंग की परिघटना भी कहते है इससे ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई है, और तब से ही लगातार इसमे विस्तार जारी है'।
- 'महाविस्फोट धमाके में अत्यधिक ऊर्जा का उत्सर्जन हुआ, इतनी अधिक ऊर्जा के प्रभाव से ही ब्रह्माण्ड लगातार आज तक फैलता जा रहा है'।
- 'इसके प्रमाण के रूप में आकाशगंगाओं के बीच बढ़ती दूरी का प्रमाण दिया जाता है'
- 'NASA द्वारा 30 जून 2001 को डेविड विलकिंसन के नेतृत्व में बिंग बैंग (Bing Bang) की पुष्टि हेतु मैप परियोजना (Microwave Anisotropy Probe-MAP) को शुरू किया गया'।
- 'मैप एक खोजी उपग्रह है। मैप उपग्रह से जो भी चित्र प्राप्त हुए उन चित्रों से बिंग बैग परिघटना की पुष्टि होती है'।
- 'Sept. 2002 में डेविड विलकिंसन के निधन के बाद उनके सम्मान में 11 Feb. 2003 में मैप उपग्रह का नाम WMAP (Wilkinson Microwave Anisotrophy Probe) रखा गया था'।
- 'NASA ने 11 Feb. 2013 को इस आधार पर ब्रह्मांड की आयु 13.7 अरब वर्ष निर्धारित करने की घोषणा की'।
- '1964 में ब्रिटिश वैज्ञानिक हिग्स ने ब्रह्माण्ड विज्ञान (कॉस्मोलॉजी) समझने के लिए god particles परमाण्विक अवधारणा दी। यह भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्रनाथ बोस के बोसन थ्योरी पर आधारित था'।
- 'ब्रह्मांड के रहस्यों को अच्छे से जानने के लिए यूरोपियन सेंटर फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (CERN) ने जेनेवा में 30 March 2010 को पृथ्वी की सतह से 50 से 175 मी. नीचे 27.36 किमी. लम्बे सुरंग में लार्ज हैड्रन कोलाइडर (LHC) नामक महाप्रयोग सफलतापूर्वक किया'।
- 'इस प्रयोग के अंतर्गत प्रोटॉन बीमों को लगभग प्रकाश की गति से टकराया गया और हिग्स बोसान के निर्माण का प्रयास किया गया'।
- 'माना जाता है की हिग्स बोसान में ही ब्रह्माण्ड के रहस्य छिपे है। क्योंकि इसे बेसिक यूनिट माना जाता है। हिग्स बोसॉन ही god particles के नाम से भी जाने जाते है'।
हिग्स बोसॉन क्या है |higgs boson kya hai:-
- 'हिग्स बोसॉन एक मूल कण है। जिसमें ब्रह्माण्ड के रहस्य छिपे है'।
- यह माना जाता है की किसी भी एलीमेंट्री पार्टिकल्स या कण में अपना कोई भार या द्रव्यमान (mass) नहीं होता है। और जिस भी चीज में अपना द्रव्यमान या mass नहीं होगा वह वेक्यूम में लाईट की स्पीड से ट्रैवल करेंगे। जैसे-फोटॉन। अगर किसी भी कण में भार या द्रव्यमान नहीं होता, तो तारे, आकाशगंगाये, नहीं होते।
- तब ब्रिटिश वैज्ञानिक पिटर हिग्स ने अपनी एक नई थ्योरी दी, जिसमे उन्होने हिग्स फील्ड और हिग्स बोसॉन की उपस्थिति बताई। इस थ्योरी के अनुसार हर खाली जगह में एक फील्ड मौजूद होती है, जिसे उन्होंने हिग्स फील्ड का नाम दिया। इस फील्ड में जो कण या पार्टिकल्स पाये जाते है उन्हें हिग्स बोसॉन कहा गया।
- पिटर हिग्स का यह मानना था की सभी एलीमेंट्री पार्टिकल्स मासलेस (द्रव्यमानरहित) होते है और इन पार्टिकल्स को हिग्स फील्ड ही mass प्रदान करता है।
- जैसे की हम जानते है की ब्रह्माण्ड में कई तरह की फील्ड मौजूद होती है जिन्हे हम देख नहीं सकते है जैसे की इलेक्ट्रिक फील्ड, ग्रेविटेशनल फील्ड। इन फील्ड में एनर्जी देने से पार्टिकल्स बनते है। ठीक उसी तरह हिग्स फील्ड होते है। जिसमे एनर्जी देने से हिग्स बोसॉन बनते है। और जब पार्टिकल्स में उनका भार या द्रव्यमान होगा तब ही वे एक दूसरे से मिलते है।
- 'ब्रह्माण्ड के रहस्यो को जानने के लिए ही CERN ने लार्ज हैड्रन कोलाइडर (LHC) नामक महाप्रयोग सफलतापूर्वक किया। इस प्रयोग में प्रोटॉन बीमों को लगभग प्रकाश की गति से टकराया गया तथा हिग्स बोसॉन के निर्माण का प्रयास किया गया'।
- 'CERN ने 04 जुलाई, 2012 को हिग्स बोसॉन से मिलता-जुलता सब एटोमिक पार्टिकल्स की खोज करने में सफलता हासिल की है। जिससे ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जानने के लिए महत्तवपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है'।
मन्दाकिनी (Galaxy) किसे कहते है:-
- "अरबों तारों के एक विशाल समूह को मन्दाकिनी कहते है। तारे मंदाकिनियों के साथ बंधे रहते है। इसके लिए गुरुत्वाकर्षण बल जिम्मेदार होता है। ब्रह्माण्ड में करीब सौ अरब मन्दाकिनीयाँ और प्रत्येक मन्दाकिनी में औसतन 100 अरब तारे होते है। इसके अतिरिक्त हर मन्दाकिनी में गैसे एवं धूल के कण मौजूद होते है। इस तरह मन्दाकिनी का करीब 98% भाग तारों से एवं 2% भाग गैसों एवं धूल से बना होता है"।
- "मन्दाकिनी की विशालता के कारण इसे प्रायद्वीप ब्रह्माण्ड कहा जाता है "।
मन्दाकिनी का आकृति के आधार पर वर्गीकरण |Classification of Galaxy:-
- 'आकृति के आधार पर गैलेक्सी को तीन भागों में बाँटा गया है':-
- सर्पिल (Spiral).
- दीर्घवृत्तीय (Elliptical).
- अनियमित (Irregular).
- 'सभी ज्ञात मन्दाकिनियों में से 80 % सर्पिल (Spiral), 17% दीर्घवृत्तीय (Elliptical), 3% अनियमित (Irregular) आकार वाली मन्दाकिनियां पाई गई है'।
दुग्धमेखला |Milkyway:-
- 'पृथ्वी की अपनी एक गैलेक्सी है जिसे दुग्धमेखला (Milky Way) या आकाशगंगा कहते है'।
- गैलीलियो ने सबसे पहले इस गैलैक्सी/मंदाकनी को देखा था। इस गैलेक्सी का 80% भाग sprial अर्थात सर्पीला है'।
- 'Milkyway/आकाशगंगा में ही सौर मण्डल स्थित है। आकाशगंगा सर्पिल या sprial galaxy है। इसके चपटे चक्र का व्यास लगभग एक लाख प्रकाशवर्ष और मोटाई एक हजार प्रकाशवर्ष है। इसमें करीब 1 खरब या इससे भी अधिक तारे हो सकते है'।
- सर्पिल आकार वाली मन्दाकिनियां दूसरी मन्दाकिनियों से काफी बड़ी होती है।
- 'आकाशगंगा का एक बड़ा केंद्र होता है उससे कई वक्र भुजाये निकलती है। ये अपने केंद्र के चारों ओर धीरे धीरे घूमती रहती है। आकाशगंगा की इन्ही भुजाओं में से एक भुजा ओरायन सिग्नस भुजा में सौर मण्डल स्थित है'।
- 'सौर मण्डल आकाशगंगा के बाहरी हिस्से में स्थित है और उसके केंद्र की परिक्रमा करता है एक परिक्रमा को पूरा करने में इसे लगभग 22.5 से 25 करोड़ वर्ष लग जाते है'।
- 'आकाश गंगा (Milky Way) की सबसे पास वाली मन्दाकिनी/गैलेक्सी को देवयानी (Andromeda) नाम दिया गया है। एंड्रोमेडा का आकर भी सर्पिल है और इसमे करीब 10 ख़रब तारे हो सकते है। Andromeda हमारी पड़ोसी गैलेक्सी है'।
देवयानी/Andromeda |
- 'ड्वार्फ गैलेक्सी नवीनतम ज्ञात गैलेक्सी/मन्दाकिनी है'।
- 'आकाशगंगा के सबसे शीतल एवं चमकीले तारों के समूह को ऑरियन नेबुला कहते है'।
तारामण्डल |Constellation :-
- 'जब हम धरति से आकाश की ओर निहारते है तो हमे आकाश में तारों के कई समूह दिखाई देते है , जिनमें से कोई समूह किसी विशेष आकृति का दिखाई देता है। तारों के इन समूहों को ही तारामण्डल कहते है तथा इनकी आकृति के आधार पर इनका नामकरण किया गया है' । प्रमुख तारामण्डल निम्न प्रकार से है:-
- वृहत् सप्तऋषि मण्डल (Ursa major).
- लघु सप्तऋषि मण्डल(Ursa minor)
- मृग (Orion).
- सिग्नस (Cygnus).
- हाइड्रा (Hydra).
- 'कुल 89 तारामण्डल है आकाश मे। सेन्टारस तारामण्डल सबसे बड़ा तारामण्डल है। इसमे 94 तारे है एवं हाइड्रा में कम से कम 68 तारे है'।
- 'वृहत् सप्तऋषि मण्डल (Ursa major) में बहुत सारे तारे है। परन्तु इसमें से सात तारे अत्यधिक चमकदार है। जिन्हें आसनी से देखा जा सकता है। 'इन तारों से बना तारामण्डल सामान्यतया "वृहत सप्तऋषि" या "बिग डिपर" कहलाता है'।
Ursa major |
- 'लघु सप्तऋषि मण्डल(Ursa minor) में भी वृहत सप्तऋषि मण्डल की तरह ही सात तारे अत्यधिक चमक वाले होते है।'उत्तरी गोलार्द्ध में वृहत सप्तऋषि एवं लघु सप्तऋषि तारामंडलों को बसन्त ऋतु में देखा जा सकता है'।
- 'मृग (Orion) तारामण्डल, इसे शीत ऋतु में देखा जा सकता है। मृग तारा मण्डल सर्वाधिक बड़े तारामण्डलों में से एक है'।
- 'मृग (Orion) तारामण्डल में भी सात चमकीले तारे होते है। इन सात चमकीले तारों में से चार तारे एक चतुर्भुज की आकृति बनाते हुए प्रतीत होते है'।
- 'इस चतुर्भुज के एक कोने में सबसे विशाल तारों में से एक तारा जिसे बीटलगीज के नाम से जाना जाता, स्थित होता है'।
- 'इस चतुर्भुज के दूसरे कोने पर 'रिगेल' नामक एक चमकदार तारा स्थित होता है। इसके अलावा मृग तारामण्डल के बचे हुए अन्य तीन प्रमुख तारे एक सरल रेखा में स्थित है'।
Orion/मृग |
- रंग के आधार पर तारे 3 प्रकार के होते है:-
- 'तारों के रंगों का निर्धारण उसके पृष्ठ ताप द्वारा निर्धारित होता है। 'जिन तारों का पृष्ठ ताप अपेक्षाकृत निम्न होता है वे लाल रंग के तारे होते है'।
- 'जो तारे उच्च पृष्ठ ताप वाले होते है वे सफेद रंग के होते है एवं,
- 'जिन तारों का पृष्ठ ताप अत्यधिक उच्च होता है वह नीले रंग के तारे होते है'।
- सूर्य भी एक तारा है।
- 'प्रॉक्जिमा सैंटारी यह पृथ्वी का सूर्य के बाद सबसे निकट का तारा है। पृथ्वी से प्रॉक्जिमा सैंटारी की दूरी 4.22 प्रकाश वर्ष है'।
- 'रात्रि में आकाश में सभी तारे 'पूर्व से पश्चिम' की और चलते हुए प्रतीत होते है केवल ध्रुव तारे को छोड़कर। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पृथ्वी अपनी धूरी पर 'पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती है।' अतः हम यह कह सकते है की 'आकाश में तारों की आभासी गति पृथ्वी के अपनी धूरी पर घूर्णन के कारण होती है।'
- 'जबकि ध्रुव तारे की हम बात करे तो 'ध्रुव तारा उत्तरी ध्रुव के ठीक ऊपर स्थिर होता है, और समय के साथ अपनी स्थिति नहीं बदलता है क्योंकि यह पृथ्वी के घूर्णन की धूरी (अक्ष ) पर स्थित होता है।'
- 'ध्रुव तारा उर्सा माइनर या लिटिल बियर तारा समूह का सदस्य है।'
आदि तारे का निर्माण किस प्रकार होता है|formation of a protostar:-
- 'तारे का जीवन चक्र आकाशगंगा (Galaxy) में हाइड्रोजन तथा हीलियम गैस के संघनन से प्रारंभ होता है, जो अंत में घने बादलो का रूप धारण कर लेते है। इन बादलों को ऊर्ट बादल (Oort clouds) कहा जाता है'।
- 'ऊर्ट बादलों का तापमान -173℃ होता है। अब जैसे जैसे इन बादलों का आकार बढ़ता जाता है, इन गैसों के अणुओं के बीच गुरुत्वाकर्षण बल भी बढ़ता जाता है'।
- 'जब बादलों का आकर काफी बड़ा हो जाता है, तब इनके अणुओं के बीच का गुरुत्वाकर्षण बल भी बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। और तब यह स्वयं के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण सिकुड़ता चला जाता है, यह सिकुडता हुआ घना गैस पिंड ही आदि तारा (Protostar) कहलाता है। आदि तारा प्रकाश उत्सर्जित नहीं करता है'।
आदि तारे से तारे का निर्माण कैसे होता है| Formation of star from protostar :-
- 'आदि तारा अत्यधिक सघन गैसीय द्रव्यमान है, जो विशाल गुरुत्वाकर्षण बल के कारण आगे भी संकुचित होते रहता है'।
- 'जैसे ही आदितारा आगे और संकुचित होना आरंभ करता है, गैस के बादलो में उपस्थित जो हाइड्रोजन परमाणु होते हुआ वो और ज्यादा जल्दी जल्दी परस्पर टकराने लगते है'।
- 'इस तरह हाइड्रोजन परमाणु की ये टक्कर आदि तारे के तापमान को और अधिक बड़ा देते है'।
- 'आदि तारे के संकुचन की प्रक्रिया लाखों वर्षो तक चलती रहती है जिसके दौरान आदि तारे में आंतरिक ताप, आरंभ में मात्र -173℃ से लगभग 10power7℃ तक बढ़ता है'।
- 'अत्यधिक उच्च ताप पर हाइड्रोजन की नाभिकिय संलयन की अभिक्रिया होने लगती है। इस प्रक्रिया में चार छोटे हाइड्रोजन नाभिक संलयित (Nuclear fusion ) होकर बड़े हीलियम नाभिक बनाते है और ऊष्मा तथा प्रकाश के रूप में ऊर्जा की विशाल मात्रा उत्पन्न होती है'।
- 'हाइड्रोजन के संलयन (Fusion)से हीलियम बनने के दौरान उत्पन्न ऊर्जा आदि तारा को चमक प्रदान करता है और वह तारा बन जाता है'।
तारे के जीवन का अंतिम चरण |final stages of a Star's life:-
- 'तारा अपने जीवन के अंतिम चरण के पहले भाग में, लाल (रक्त) दानव प्रावस्था (Red giant phase) में प्रवेश करता है, इसके बाद उसका भविष्य उसके प्रारंभिक द्रव्यमान पर निर्भर करता है'। यहां दो स्थितियां उत्पन्न होती है:-
- (i) 'पहली स्थिति में यदि तारे का द्रव्यमान, सूर्य के द्रव्यमान के तुल्य होता है। तो रक्त दानव तारा अपने प्रसारित बाह्य आवरण को खो देता है और उसका क्रोड सिकुड़ करके वामन तारा (white dwarf star) बनाता है जो आखिर में अंतरिक्ष में पदार्थ के सघन पिंड के रूप में नष्ट हो जाता है'।
- (ii) 'यदि तारे का प्रारंम्भिक द्रव्यमान, सूर्य के द्रव्यमान से काफी अधिक होता है तो उसमे बना रक्त दानव तारा, अधिनव तारे (Supernova star) के रूप में विस्फोट करता है और इस विस्फोटित अधिनव तारे का क्रोड संकुचित होकर न्यूट्रान तारा (Neutron star) अथवा कृष्ण छिद्र (Black hole) बन जाता है।
रक्त दानव प्रावस्था (Red Gaint Phase):-
- 'शुरुआत में तारों में मुख्य रूप से हाइड्रोजन होती है। जैसे जैसे समय बीतता है, हैड्रोजन केंद्र से बाहर की ओर, हीलियम में परिवर्तित हो जाती है। जब तारे के केंद्र में स्थित सम्पूर्ण हाइड्रोज, हीलियम में परिवर्तित हो जायेगी, तो क्रोड में संलयन की अभिक्रया बन्द हो जायेगी।
- 'संलयन(Fusion) अभिक्रिया के बन्द हो जाने के कारण तारे के भीतर का दाब कम हो जायेगा, और क्रोड अपने निजी गुरुत्व के तहत संकुचित होने लगेगा। लेकिन तारे के बाहरी आवरण में कुछ हाइड्रोजन बची रहती है जो संलयन अभिक्रिया कर ऊर्जा विमुक्त करती रहेगी'।
- 'इन सभी परिवर्तनों के कारण तारे में समग्र सन्तुलन बिगड़ जाता है। उसे पुनः व्यवस्थित करने के उद्देश्य से, तारे को उसके बाहरी क्षेत्र में प्रसार करना पड़ता है जबकि गुरुत्वाकर्षण बलों के प्रभाव के कारण उसके क्रोड में संकुचन होता है'।
- 'अतः सामान्य तारे से रक्त दानव तारे में परिवर्तन में तारे का क्रोड सिकुड़ता है। जबकि बाहरी आवरण में अत्यधिक प्रसार होता है। यह रक्त दानव तारा कहलाता है। क्योकिं यह रंग में लाल और आकार में दानव की तरह होते है' ।
श्वेत वामन तारे का निर्माण (Formation of white dwarf star):-
- 'जब रक्त दानव तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के तुल्य होगा, तो वह अपना प्रसारित बाह्य आवरण खो देगा, केवल उसका क्रोड बचा रहेगा'।
- 'यह हीलियम क्रोड गुरुत्वाकर्षण के कारण धीरे-धीरे संकुचित होकर द्रव्य के अत्यधिक सघन पिंड में संकुचित होगा'।
- हिलीयम क्रोड के अत्यधिक संकुचन के कारण क्रोड का ताप अत्यधिक बढ़ जायेगा। और नाभिकीय संलयन(Nuclear fusion ) अभिक्रिया का एक अन्य सेट प्रारंभ हो जायेगा। जिसमे हीलिय भारी तत्वों जैसे कार्बन में परिवर्तित होगा। और ऊर्जा की अत्यधिक विशाल मात्रा निर्मुक्त होगी।
- 'इस प्रकार के क्रोड के सम्पूर्ण हिलयम थोड़े ही समय में कार्बन में परिवर्तित हो जायेगी और तब पुनः संलयन अभिक्रियाये पुर्णतः रुक जायेगी।
- ' जैसे ही तारे के भीतर उतपन्न हो रही ऊर्जा बन्द हो जायेगी, तारे का क्रोड उसके अपने भार के कारण सिकुड़ने लगेगा। और वह श्वेत वामन तारा (White dwarf star) बन जायेगा'।
- 'श्वेत वामन तारा एक मृत तारा होता है, क्योकिं यह संलयन प्रक्रिया द्वारा कोई नवीन ऊर्जा नहीं उत्पन्न करता है'।
- 'श्वेत वामन तारा , जब अपनी संचित सम्पूर्ण ऊर्जा खो देता है, तो वह चमकना बन्द कर देगा। इसके बाद श्वेत वामन तारा कृष्ण वामन तारा (Black dwarf ) हो जायेगा और अंतरिक्ष में पदार्थ के सघन पिंड के रूप में विलीन हो जायेगा'।
अधिनव तारे तथा न्यूट्रान तारे का निर्माण| Formation Supernova star and Neutron star :-
- 'यदि किसी तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से बहुत अधिक हो तो रक्त दानव प्रवस्था के क्रम में इaaसके हिलीयम के क्रोड के संकुचन से विमुक्त नाभिकीय ऊर्जा बाहरी आवरण में तेज दमक के साथ विस्फोट उतपन्न कर देती है'।
- 'यह विस्फोट आकाश को कई दिनों तक प्रकाशित करता है'।
- 'यह विस्फोटक तारा, अधिनव तारा (Suprnova Star) कहलाता है'।
- 'Supernova विस्फोट के बाद भी क्रोड का संकुचन होता रहता है। और वह न्यूट्रान तारा बन जाता है'।
कृष्ण छिद्र |Black Hole:-
- 'न्यूट्रॉन तारे का भविष्य भी उसके द्रव्यमान पर निर्भर करता है'।
- 'अनुमान के अनुसार भारी न्यूट्रॉन तारों का संकुचन अनिश्चित काल तक हो सकता है'।
- 'इसी क्रम में जब m द्रव्यमान का एक न्यूट्रॉन तारा संकुचित होकर त्रिज्या r=2Gm/c power 2 (जहाँ c प्रकाश की चाल तथा G गुरुत्वाकर्षण नियतांक है) प्राप्त कर ले तब वह कृष्ण छिद्र (Black Hole) बन जाता है'।
- 'सर्वप्रथम मिचेल (Mitchell) ने कृष्ण छिद्र के अस्तित्व की कल्पना की थी'।
- 'कृष्ण छिद्र अपने पृष्ठ से किसी चीज का, यहां तक की प्रकाश का भी पलायन नहीं होने देते है। कारण यह है की कृष छिद्रो में अत्यधिक आकर्षण बल होता है'।
- ' कृष्ण छिद्र से प्रकाश भी पलायन नहीं कर सकता है। इसलिए कृष्ण छिद्र अदृश्य होते है, वे देखे नहीं जा सकते है'।
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