International Women's Day 2022: अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस क्यों मनाया जाता है
अंतर्रष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day) की शुरुआत कैसे हुई:-
सन् 1908 में एक मजदूर आंदोलन हुआ, जिसमे करीब 15 हजार कामकाजी महिलाओं ने न्यूयार्क की सड़कों पर मार्च करते हुए अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाई। उनकी मांग थी की उनकी नौकरी के घंटे कम किए जाए और वेतन बढ़ाया जाए। इसके साथ ही उन्होंने मतदान का अधिकार देने की भी मांग की थी। इसका असर ये हुआ की 1909 में अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने महिला दिवस मनाने की घोषणा कर दी।
सन् 1917 में पहले विश्व युद्ध के दौरान रूस की महिलाओं ने भी अपनी मांगों को लेकर आंदोलन किया। जिसके बाद राजा निकोलस ने महिलाओं को मतदान का अधिकार दिया। इसी कारण से 1975 में यूनाइटेड नेशंस ने 08 मार्च को अंतर्रष्ट्रीय महिला दिवस को मान्यता दी। और तब से ही हर वर्ष 08 मार्च के दिन दुनियाभर में महिलाओं के हौसले उनके जस्बे को सराहने के उद्देश्य से, उनको सम्मानित करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day) मनाया जाने लगा।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2022 थीम :-
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस:-
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, यह वो दिन है जब महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनी उन वीरांगनाओं की गाथाओं को याद किया जाता है जिन पर दुनिया गौरव करती है जो इस समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन गई है। हम सब जानते है की महिलाएं आज किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है। हर क्षेत्र में वो पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर खड़ी है और अपने बुलंद हौसलों से नई नई ऊंचाइयों को छू कर मिसाले कायम कर रही है। लेकिन फिर भी, क्या उन्हे बराबरी का हक मिलता है?
वैसे तो नारी को इस सृष्टि की जननी माना जाता है। फिर उसी नारी को आज भी कमजोर क्यों समझा जाता है जबकि हम सब जानते है की आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर खड़ी है। शायद ही कोई ऐसा कार्यक्षेत्र होगा जहां महिलाओं ने अपना परचम नही लहराया है। इतिहास गवाह की पूर्वकाल में भी जब स्त्रियों को कई बंधनों की बेड़ियों में जकड़ कर रखा जाता था तब भी उन्होंने उन बेड़ियों को तोड़कर अपनी सफलता का मार्ग बनाया था और तब से आज तक वो स्वयं अपनी हिम्मत से अपना मार्ग बनाती आ रही है और बनाती रहेंगी। और उनके इस कर्मठता, लगन, जस्बे को सारी दुनियां सलाम करती है उन पर गर्व करती है।
लेकिन फिर भी, आज भी हमारें समाज में कभी कभी क्यों कुछ ऐसी घटनाएं घट जाती है जो हमारे मन को झकझोड़ देती है? और हमे यह सोचने पर मजबूर कर देती है की क्या सच में हमारे समाज में स्त्रियों को पुरुषों के बराबर का दर्जा मिल गया है या अब भी कुछ कमी है।
- क्यों बेटियों की सुरक्षा को लेकर माता पिता आज भी आशंकित रहते है?
- क्यों एक बेटी के जन्म के बाद से ही आज भी उसके माता पिता को बचपन से ही उसकी शादी और दहेज के लिए पैसें जुटानें की चिंता करनी पड़ती? जबकि माता पिता अपनी बेटी की परवरिश ठीक वैसे ही करते है जैसे बेटों की।
- क्यों आज भी अगर किसी बेटी के साथ कुछ गलत होता है तो दोष उसका ही माना जाता है फिर चाहे दोष किसी ओर का हो?
क्योंकि आज भी हमारे समाज के लोगों की मानसिकता को कुछ ओर बदलने की आवश्यकता है। क्योंकि कुछ लोग आज भी पूरी तरह से यह स्वीकार करने में हिचकते है की बेटियां, महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपने आप को प्रूफ कर चुकी है, लोगों के लिए प्रेरणा बन रही है। ऐसे लोगो को यह समझाने की आवश्यकता है कि नवरात्रि में नौ दिन तक जिन मां शक्ति स्वरूपा की वह उपासना करते है, जिन्हे पूजते है, हर नारी उन्ही मां शक्ति स्वरूपा का अंश है। फिर वो चाहे मां हो, बहन हो, बेटी हो या पत्नी हो। क्योंकि यह सब जानते है कि एक नारी वात्सल्य और प्रेम की प्रतिमूर्ति होती है, वह अपने परिवार के लिए समर्पित होती है। लेकिन मुसीबत पड़ने पर परिवार की ढाल बनकर हर वार अपने ऊपर सहने की क्षमता भी रखती है। क्योंकि नारी कमजोर नही है वह बहुत सशक्त है।
नारी सह्रदय होती है, पुरुषों के मुकाबले अधिक संवेदनशील होती है, मन से कोमल स्वभाव की धनी होती है। और शायद इन्ही गुणों को उनकी कमजोरी समझा जाता है। लेकिन वास्तव में यही उनकी असली शक्ति है। इसलिए इस संसार में सिर्फ नारी ही है जिसे ईश्वर ने माँ का दर्जा दिया है। तभी तो वो एक अबोध शिशु को माँँ के हाथो में सौंप कर निश्चिंत हो जाता है क्योंकि वो जानता है की जिन हाथों में वह अबोध शिशु है वो मेरी इस सृष्टि की सबसे सुंदर, सरल, और निर्मल कृति "नारी", एक माँ है जिसके हाथों में वो पूर्ण सुरक्षित है। लेकिन इसका अर्थ ये नही है की वो सशक्त नहीं है।
हमारी आबादी का आधा हिस्सा महिलाएं है इसलिए उन्हें हर जगह बराबरी का हक और सम्मान मिलना ही चाहिए। क्योंकि वो उनका अधिकार है। सरकार भी महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सदैव प्रयासरत रहती है।
इसीलिए महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ही भारत सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही। जिससे हर महिला अपने पैरों पर खड़ी हो सके, और सशक्त बन सके। और इसलिए भारत सरकार ने महिलाओं के प्रयासों को सराहने के लिए उन्हें सम्मानित करने की दिशा में एक पहल की है "नारी शक्ति पुरस्कार" से सम्मानित करके।
नारी शक्ति पुरस्कार 2022:-
भारत सरकार द्वारा नारी शक्ति का सम्मान करने एवं उन्हे प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ही हर वर्ष 08 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं को "नारी शक्ति पुरस्कार" से सम्मानित किया जाता है। यह पुरस्कार महिलाओं को उनके द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में किए गए सराहनीय कार्यों के लिए दिया जाता है।
वर्ष 2022 में भी 08 मार्च, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day) पर राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद द्वारा विभिन्न क्षेत्र में अनुकरणीय, उत्कृष्ट कार्य करने के लिए 29 महिलाओं को नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार 2020 और 2021 के लिए प्रदान किया गया है।
नारी शक्ति पुरस्कार :-
- ऊषाबेन दिनेशभाई वसावा, गुजरात (जैविक किसान और जनजातीय स्वयंसेवी)
- नासीरा अख्तर, जम्मू एवं कश्मीर, (नवोन्मेषी पर्यावरण संरक्षण)
- अनिता गुप्ता, बिहार (सामाजिक उद्यमशीलता)
- संध्या धर, जम्मू एवं कश्मीर (समाजसेवी)
- निवृत्ति राय, कर्नाटक (कंट्री हेड, इंटेल इंडिया)
- टिफेनी ब्रार,केरल (समाजसेवी, दृष्टिबाधितों के लिए कार्य किया )
- मीरा ठाकुर, पंजाब (सिक्की ग्रास कलाकार)
- पद्मा यांगचान, लद्दाख (लद्दाख क्षेत्र में भूलीबिसरी पाककला और वस्त्र को दुबारा जीवित किया)
- सायली नंदकिशोर अगवाने, महाराष्ट्र (डाउन सिंड्रोम से पीड़ित कथक नृत्यांगना)
- वनिता जगदेव बोराडे, महाराष्ट्र (संपो को बचाने वाली पहली महिला)
- जोधाइया बाई बैगा, मध्यप्रदेश (जनजातीय बैगा चित्रकार)
- जया मुथू, तेजम्मा ,तमिलनाडु (कलाकार टोडा कढाई)
- इला लोध (मरणोपरांत), त्रिपुरा (प्रसूति विज्ञानी और स्त्री रोग विशेषज्ञ)
- तागे रीता ताखे, अरुणाचल प्रदेश (उद्यमी)
- आरती राणा, उत्तरप्रदेश (हथकरघा बुनकर और शिक्षक)
- सथुपति प्रसन्ना श्री, आंध्रप्रदेश (भाषा विज्ञानी)
- मधुलिका रामटेक, छत्तीसगढ़ (समाजसेवी)
- निरंजनाबेन मुकुलभाई कालार्थी, गुजरात (लेखिका और शिक्षाशास्त्री)
- पूजा शर्मा, हरियाणा (किसान एवं उद्यमी
- कमल कुम्भार, महाराष्ट्र (सामाजिक उद्यमी)
- अंशुल मल्होत्रा, हिमाचल प्रदेश, (बुनकर)
- शोभा गस्ति, कर्नाटक (समाजसेवी देवदासी प्रथा उन्मूलन के लिए कार्य)
- राधिका मेनन, केरल (कप्तान मर्चेंट नेवी)
- बतूल बेगम, राजस्थान (मांड और भजन लोक गायक)
- श्रुति महापात्रा, ओडिशा (दिव्यांगजन अधिकार कार्यकर्ता)
- नीरजा माधव, उत्तरप्रदेश (हिंदी लेखिका-ट्रांसजेडरो और तिब्बती शरणार्थियों के लिए कार्य)
- तारा रंगास्वामी, तमिलनाडु (मनोचिकित्सक और शोधकर्ता)
- नीना गुप्ता, पश्चिम बंगाल, गणितज्ञ।
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