क्रिसमस - प्रभू यीशु मसीह की कहानी
भाग -2
प्रभु यीशु जगह - जगह घूम कर परमेश्वर के राज्य के बारे में बताने लगे। लोग अब उनके वचनों को सुनते थे। लोग परमेश्वर के राज्य के बारे में उनसे और भी जानना चाहते थे. वे उत्सुक थे की परमेश्वर का राज्य कैसा होगा, कब आएगा।
तब प्रभु यीशु ने कहा, परमेश्वर का राज्य प्रकट रूप से नहीं आता है। कोई भी ये नहीं बता सकता है की ये यहाँ है या वहां है। परमेश्वर का राज्य तुममें है।
उन्होंने कहा, परमेश्वर का राज्य ऐसा है, की एक मनुष्य राई का दाना लेकर अपने खेत में बोता है , फिर वो पौधा बड़ा होकर एक पेड़ बन जाता है, और उस पेड़ पर बहुत से पक्षी अपना घोसला बनाते है और रहते है।
प्रभु की इच्छा है की तुम्हे परमेश्वर का राज्य मिले। इसलिए अपना सब कुछ बेच कर धन गरीबो में बाँट दो। ऐसे बटुए बनाओं जो फटते नहीं, स्वर्ग में धन इकठ्ठा करों जहाँ वो घटता नहीं। क्योकि वहां कोई चोर पहुँचता नहीं।
उन्होंने कहा, अनंत जीवन पाना है तो सभी आज्ञाएं मानो, जैसे - व्यभिचार न करना, हत्याये न करना, किसी पर झूठा आरोप न लगाना , अपने माता- पिता का आदर करना।
यह सुन एक व्यापारी बोला, यह सब तो हम बचपन से मानते आ रहे है।
प्रभु बोले, तब तुम एक और काम करो अपना सब कुछ बेच कर धन गरीबों में बाँट दो , और स्वयं मेरे पीछे हो लो।
तब व्यापारी बोला, परन्तु हम तो बहुत धनवान
है।
प्रभु बोले धनवान का परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना बहुत कठिन है। जबकि ऊँट का सूई के नाके में से निकला सहज है।
धीरे - धीरे प्रभु यीशु के अनुयायी बढ़ने लगे। प्रभु अब जहाँ जाते उनके पीछे भीड़ भी चल पड़ती। एक बार वो भीड़ से अलग होने के लिए अपने शिष्यों के साथ तेजी से आगे बढ़ते हुए बेदसदा पहुंचे। रास्ते में सूनसान और पहाड़ी इलाका था, वो वहां कुछ देर के लिए बैठ गए। भीड़ भी उनके पीछे पीछे आ रही थी। शाम हो चुकी थी। तभी पतरस ने आकर कहा , स्वामी इन लोगो को वापस जाने के लिए कह दे, ताकि वे आस पास के गांवों में जाकर अपने रहने, खाने का इंतजाम कर सके।
यीशु ने देखा, भीड़ में महिलाये, बच्चे , बुजुर्ग सभी थे। तब प्रभु यीशु ने पतरस से कहा, इन लोगों के खाने - पीने का बंदोबस्त तुम करोगें। यह सुन कर उन लोगो ने कहा, लेकिन हमारे पास तो सिर्फ पांच रोटियां और दो मछलियां ही है फिर सबके खाने का बंदोबस्त कैसे होगा।
तब प्रभु यीशु ने भोजन के दोनों पात्रों को अपने हाथ में उठा कर ऊपर आकाश की और किया और प्रार्थना की "हे पिता परमेश्वर, धन्य है आप, जो धरती पर अन्न उपजाते है " यह कहकर दोनों पात्र उन्होंने जमींन पर रख दिए। और वे दोनों पात्र रोटियों और मछलियों से भर गए। देखते - देखते वहां इतने भोजन की व्यवस्था हो गई की वहां उपस्थित सब लोंगो ने भर पेट भोजन किया।
एक बार प्रभु ने अपने शिष्यों से पूछा लोग मेरे बारे में क्या कहते है तब पतरस ने बताया की कई लोग आपको यहुन्ना बपतिस्मा देने वाला कहते है, और कई आपको भविष्यवक्ता कहते है।
तब प्रभु ने पूछा, तुम क्या कहते हो। पतरस आगे बड़े और बोले प्रभु आप परमेश्वर के मसीह है।
यह सुन प्रभु बोले, जैसा की धर्मशास्त्र में लिखा है की मेरे लिए ये आवश्यक है की मैं तिरस्कृत किया जाऊँ, अपमानित किया जाऊँ और फिर मार डाला जाऊँ। परन्तु तुम ये किसी से न कहना।
इसके बाद प्रभु यीशु अपने तीन शिष्यों को लेकर जैतून की पहाड़ी पर प्रार्थना करने गए। प्रभु प्रार्थना करने के लिए ऊँची पहाड़ी पर चढ़ गए, तब उनका स्वरूप बदल गया, उनके वस्त्र श्वेत हो गए। तभी वहां पर स्वर्ग से दो भविष्यवक्ता आये और उनसे बाते करने लगे। उन्होंने यीशु से कहा , "आप परमेश्वर का उद्देश्य पूरा करेगें। आप की मृत्यु येरुशलम में होगी।" यह दृश्य दूर बैठे उनके तीनों शिष्यों ने भी देखा।
तीनों शिष्य भागकर प्रभु यीशु के पास आये और पतरस, प्रभु से कुछ कहने लगे , की तभी बादलों ने उन्हें घेर लिया और एक आवाज आई। ये मेरा पुत्र है इसे मैंने चुना है तुम इसकी सुनों।
प्रभु और उनके शिष्य आगे बढ़ते ही जा रहे थे। चलते चलते वे सभी जब थक गए , तब कुछ देर विश्राम करने के लिए के लिए एक नदी किनारे रुक गए। तभी उनके एक शिष्य ने प्रभु से कहा प्रभु आप हमें प्रार्थना करना सिखाएं।
प्रभु ने उन्हें इस तरह प्रार्थना करना सिखाया :-
आगे उन्होंने कहा :-
वह एक बार आराधनालय में अपने वचन सुना रहे थे की तभी एक कूबड़ी औरत जो की पूरी तरह से झुकी हुई थी वहां आकर खड़ी हो गई। तब प्रभु वचन सुनाते हुए नीचे उतरे और उस स्त्री से बोले, हे नारी तुम अपनी बीमारी से मुक्त हुई। यह कहते हुए उन्होंने अपना हाथ उस कूबड़ी औरत की पीठ पर रख दिया, और कुछ ही देर में वह औरत सीधी खड़ी हो गई। यह चमत्कार देख वह औरत और वहां के सभी लोग चकित रह गए। उस औरत ने कहा मैं अठ्ठारह साल से ये तकलीफ झेल रही हूँ और आपने मुझे कुछ ही पल में ठीक कर दिया , आप परमेश्वर की महिमा है।
प्रभु यीशु जानते थे की उनकी मृत्यु येरुशलम में होगी। यही भविष्यवाणी है लेकिन फिर भी वे अपने शिष्यों के साथ बेखौफ येरुशलम की और बढ़ते गए।
तब प्रभु यीशु ने कहा, परमेश्वर का राज्य प्रकट रूप से नहीं आता है। कोई भी ये नहीं बता सकता है की ये यहाँ है या वहां है। परमेश्वर का राज्य तुममें है।
उन्होंने कहा, परमेश्वर का राज्य ऐसा है, की एक मनुष्य राई का दाना लेकर अपने खेत में बोता है , फिर वो पौधा बड़ा होकर एक पेड़ बन जाता है, और उस पेड़ पर बहुत से पक्षी अपना घोसला बनाते है और रहते है।
प्रभु की इच्छा है की तुम्हे परमेश्वर का राज्य मिले। इसलिए अपना सब कुछ बेच कर धन गरीबो में बाँट दो। ऐसे बटुए बनाओं जो फटते नहीं, स्वर्ग में धन इकठ्ठा करों जहाँ वो घटता नहीं। क्योकि वहां कोई चोर पहुँचता नहीं।
उन्होंने कहा, अनंत जीवन पाना है तो सभी आज्ञाएं मानो, जैसे - व्यभिचार न करना, हत्याये न करना, किसी पर झूठा आरोप न लगाना , अपने माता- पिता का आदर करना।
यह सुन एक व्यापारी बोला, यह सब तो हम बचपन से मानते आ रहे है।
प्रभु बोले, तब तुम एक और काम करो अपना सब कुछ बेच कर धन गरीबों में बाँट दो , और स्वयं मेरे पीछे हो लो।
तब व्यापारी बोला, परन्तु हम तो बहुत धनवान
है।
प्रभु बोले धनवान का परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना बहुत कठिन है। जबकि ऊँट का सूई के नाके में से निकला सहज है।
धीरे - धीरे प्रभु यीशु के अनुयायी बढ़ने लगे। प्रभु अब जहाँ जाते उनके पीछे भीड़ भी चल पड़ती। एक बार वो भीड़ से अलग होने के लिए अपने शिष्यों के साथ तेजी से आगे बढ़ते हुए बेदसदा पहुंचे। रास्ते में सूनसान और पहाड़ी इलाका था, वो वहां कुछ देर के लिए बैठ गए। भीड़ भी उनके पीछे पीछे आ रही थी। शाम हो चुकी थी। तभी पतरस ने आकर कहा , स्वामी इन लोगो को वापस जाने के लिए कह दे, ताकि वे आस पास के गांवों में जाकर अपने रहने, खाने का इंतजाम कर सके।
यीशु ने देखा, भीड़ में महिलाये, बच्चे , बुजुर्ग सभी थे। तब प्रभु यीशु ने पतरस से कहा, इन लोगों के खाने - पीने का बंदोबस्त तुम करोगें। यह सुन कर उन लोगो ने कहा, लेकिन हमारे पास तो सिर्फ पांच रोटियां और दो मछलियां ही है फिर सबके खाने का बंदोबस्त कैसे होगा।
तब प्रभु यीशु ने भोजन के दोनों पात्रों को अपने हाथ में उठा कर ऊपर आकाश की और किया और प्रार्थना की "हे पिता परमेश्वर, धन्य है आप, जो धरती पर अन्न उपजाते है " यह कहकर दोनों पात्र उन्होंने जमींन पर रख दिए। और वे दोनों पात्र रोटियों और मछलियों से भर गए। देखते - देखते वहां इतने भोजन की व्यवस्था हो गई की वहां उपस्थित सब लोंगो ने भर पेट भोजन किया।
एक बार प्रभु ने अपने शिष्यों से पूछा लोग मेरे बारे में क्या कहते है तब पतरस ने बताया की कई लोग आपको यहुन्ना बपतिस्मा देने वाला कहते है, और कई आपको भविष्यवक्ता कहते है।
तब प्रभु ने पूछा, तुम क्या कहते हो। पतरस आगे बड़े और बोले प्रभु आप परमेश्वर के मसीह है।
यह सुन प्रभु बोले, जैसा की धर्मशास्त्र में लिखा है की मेरे लिए ये आवश्यक है की मैं तिरस्कृत किया जाऊँ, अपमानित किया जाऊँ और फिर मार डाला जाऊँ। परन्तु तुम ये किसी से न कहना।
इसके बाद प्रभु यीशु अपने तीन शिष्यों को लेकर जैतून की पहाड़ी पर प्रार्थना करने गए। प्रभु प्रार्थना करने के लिए ऊँची पहाड़ी पर चढ़ गए, तब उनका स्वरूप बदल गया, उनके वस्त्र श्वेत हो गए। तभी वहां पर स्वर्ग से दो भविष्यवक्ता आये और उनसे बाते करने लगे। उन्होंने यीशु से कहा , "आप परमेश्वर का उद्देश्य पूरा करेगें। आप की मृत्यु येरुशलम में होगी।" यह दृश्य दूर बैठे उनके तीनों शिष्यों ने भी देखा।
तीनों शिष्य भागकर प्रभु यीशु के पास आये और पतरस, प्रभु से कुछ कहने लगे , की तभी बादलों ने उन्हें घेर लिया और एक आवाज आई। ये मेरा पुत्र है इसे मैंने चुना है तुम इसकी सुनों।
प्रभु और उनके शिष्य आगे बढ़ते ही जा रहे थे। चलते चलते वे सभी जब थक गए , तब कुछ देर विश्राम करने के लिए के लिए एक नदी किनारे रुक गए। तभी उनके एक शिष्य ने प्रभु से कहा प्रभु आप हमें प्रार्थना करना सिखाएं।
प्रभु ने उन्हें इस तरह प्रार्थना करना सिखाया :-
तुम इस तरह प्रार्थना करों - हे हमारे पिता, आप जो स्वर्ग में है आप का नाम पवित्र माना जाएँ, आपका राज्य आये , आपकी इच्छा जैसे स्वर्ग में वैसे ही पृथ्वी पर भी पूरी हो। हमारी प्रतिदिन की रोटी आज हमें दे, हमारे अपराधों को क्षमा करे , जैसे हमने अपने अपराधियों को क्षमा किया है , हमे परीक्षा में न पड़ने दे, परन्तु हमे बुराई से बचाये।
आगे उन्होंने कहा :-
मांगों तो तुम्हे दिया जाएगा, ढूंढो तो तुम पाओगें, खटखटाओ तो तुम्हारे लिए द्वार खोला जायेगा। क्योंकि, जो मांगता है उसे दिया जाता है , जो ढूंढ़ता है वो पता है, और जो खटखटाता है उसके लिए द्वार खोला जाता है।
मैं कहता हूँ अपने प्राणों की चिंता मत करों, कि हम क्या खायेगें , न ही अपने शरीर की, कि हम क्या पहनेगें। क्योंकि, प्राण भोजन से बढ़कर है, और शरीर वस्त्र से बढ़कर। पक्षियों को देखों, वो न तो बोते, ना ही काटते है , और ना ही उनके भंडार है लेकिन फिर भी परमेश्वर उन्हें खिलाता है। तुम तो पक्षियों की तुलना में कही अधिक बड़े हो। तुममें से कौन चिंता करके अपनी आयु बड़ा सकता है। जब तुम ये छोटा सा काम नहीं कर सकते हो तो बाकि की चिंताए क्यों करते हो। यदि परमेश्वर मैदान को घास से सजाते है, जो आज है कल जल जाएगी, तो वो अवश्य ही तुमको भी वस्त्र पहनाएंगे। बस तुम अपना विश्वास बनाये रखना।
वह एक बार आराधनालय में अपने वचन सुना रहे थे की तभी एक कूबड़ी औरत जो की पूरी तरह से झुकी हुई थी वहां आकर खड़ी हो गई। तब प्रभु वचन सुनाते हुए नीचे उतरे और उस स्त्री से बोले, हे नारी तुम अपनी बीमारी से मुक्त हुई। यह कहते हुए उन्होंने अपना हाथ उस कूबड़ी औरत की पीठ पर रख दिया, और कुछ ही देर में वह औरत सीधी खड़ी हो गई। यह चमत्कार देख वह औरत और वहां के सभी लोग चकित रह गए। उस औरत ने कहा मैं अठ्ठारह साल से ये तकलीफ झेल रही हूँ और आपने मुझे कुछ ही पल में ठीक कर दिया , आप परमेश्वर की महिमा है।
प्रभु यीशु जानते थे की उनकी मृत्यु येरुशलम में होगी। यही भविष्यवाणी है लेकिन फिर भी वे अपने शिष्यों के साथ बेखौफ येरुशलम की और बढ़ते गए।
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Christmas 2020/ Yishu Masih Story-Part-3
जब वे येरुशलम की और जा रहे थे तब उनके साथ भीड़ भी चल रही थी। रास्ते के किनारे एक भिखारी बैठा था, जो की अँधा था । उसे जब इतने लोगो की आहट सुनाई दी तो उसने पूछा यहाँ क्या हो रहा है, कौन जा रहा है, सुनों भाई यहाँ क्या हो रहा है। कोई मुझे भी बताओं। तभी एक व्यक्ति बोला यीशु मसीह यहाँ से जा रहे है। इतना सुनते ही वो व्यक्ति जोर से चिल्लाया येशु, प्रभु येशु मेरी मदद करों।
उस भिखारी की पुकार सुनकर प्रभु रुक गए। तब एक व्यक्ति उस भिखारी को सहारा देकर प्रभु के पास लेकर आया। भिखारी ने प्रभु यीशु से कहा, प्रभु मेरी सहायता कीजिये।
प्रभु ने कहा बताओं में तुम्हारे लिए क्या करू। भिखारी ने तुरंत कहा मैं फिर से देखना चाहता हूँ। तब प्रभु यीशु ने उसकी दोनों आँखों पर हाथ रखा और बोले लो देखो। और उस भिखारी को सब कुछ दिखाई देने लगा। वह बहुत खुश होकर चिल्ला रहा था, मै फिर से देख सकता, मैं प्रभु की कृपा से फिर से देख सकता हूँ।
येरुशलम जाते समय लोगो की भीड़ उनके साथ साथ चल रही थी, वे सभी यीशु को अपना राजा मान चुके थे। उनसे परमेश्वर के राज्य के बारे में जानने के लिए उत्सुक थे। उनकी जय जयकर कर रहे थे। और प्रभु यह जानते हुए भी की वही पर उनकी मृत्यु होगी, दृढ़निश्चय के साथ आगे बढ़ रहे थे । वे जानते थे की येरुशलम में उन्हें दूसरी जाती के लोगों को सौंपा जायेगा, जो उनका मजाक बनाएंगे, उनका अपमान करेगें , उन्हें कोड़ो से मारेगें और फिर चारों और से घेराबन्दी कर उन्हें यही दफन कर देगें। परन्तु तीसरे दिन वे मृतकों में से जी उठेगें। यह बात वो अपने शिष्यों को कई बार बता भी चुके थे। और उनसे कहते थे की तुम परमेश्वर से प्रार्थना करना की वे तुम्हारा विश्वास बनाये रखे। वे तुम्हे परीक्षा में न डालें।
यरूशलेम पहुंचने पर उन्होंने देखा की वो स्थान अब व्यापर का केंद्र बन चुका है। यह देख कर उन्हें बहुत दुखः हुआ। वे बहुत क्रोधित हुए और बोले, यह लिखा है की मेरा घर प्रार्थना का घर होगा, परन्तु तुम लोगो ने उसे व्यापार का खोह बना दिया। यह कहते हुए उन्होंने वहां रखे व्यापारियों के सामान को फेक दिया। भेड़ - बकरियों को कैद से आजाद कर दिया। पक्षियों के पिंजरे खोल दिए, ताकि वे कैद से आजाद हो जाये। इन सबसे वहां के लोगों में उनका विरोध बढ़ने लगा। पर इन सब के बावजूद यहूदियों में उनके अनुयायिओं की संख्या भी बढ़ती जा रही थी। यह सब देख कर वहां के राजनीतिज्ञों और कुछ धर्मशास्त्रियों में भी उनका विरोध बढ़ने लगा। क्योंकि लोग उन्हें अपना राजा मानाने लगे थे। जिससे उनकों भय था की यदि उनके अनुयायी दिन- प्रतिदिन इसी तरह बढ़ते गए तो हमारा क्या होगा।
एक बार सब चुंगी दे रहे थे कि तभी एक वृद्ध महिला ने दों सिक्के रखे। तब उसे ज्यादा चुंगी देने के लिए कहा गया। यह सब प्रभु देख रहे थे। तब वो बोले "मैं कहता हूँ इस वृद्ध स्त्री ने सबसे ज्यादा दिया है, क्योंकि सबने अपनी कमाई का आधा हिस्सा ही दिया है जबकि उस वृद्ध महिला ने उसकी जो कुछ कमाई थी वो सब यहाँ दे दिया है "
तभी कुछ धर्मशास्त्रियों ने उनसे पूछा, आप यह सब किस अधिकार से बोल रहे हो। तब प्रभु ने भी उनसे पूछा , तुम बताओ यहुन्ना को बपतिस्मा देने का अधिकार परमेश्वर से मिला है या लोगों से। यह सुनकर धर्मशास्त्री चुप हो गए। और कुछ देर बाद बोले, हमें नहीं पता। तब प्रभु ने कहा तो मैं भी नही बताता की ये सब मैं क्यों करता हूँ। (यहुन्ना लोगों को पानी से बपतिस्मा देते थे , यह अधिकार उन्हें परमेश्वर से मिला था। परन्तु उन्हें बंदी बना लिया गया था। (बपतिस्मा - सार्वजनिक रूप से अपने पापों का प्रायश्चित करना ) )
तब वहां खड़े लोगो और धर्मशास्त्रियो से उन्होंने कहा " एक बार एक व्यक्ति ने अंगूर की बारी लगाई और उसे कुछ ठेकेदारों को देखरेख के लिए दे दिया। जब अंगूर इकठ्ठा करने का समय आया तो उसने अपना एक सेवक भेजा ताकि उसे उसका हिस्सा मिल सके, लेकिन ठेकेदारों ने उसे मार- पीट कर भगा दिया, तब मालिक ने दूसरे सेवक को भेजा, ठेकेदारों ने उसे आया देख उसे भी खूब पीटा और भगा दिया। तब मालिक ने तीसरे सेवक को भेजा लेकिन ठेकेदारों ने उसके साथ भी वही किया। मालिक परेशान हो गया की अब उसे उसका हिस्सा कैसे मिलेगा, उसे क्या करना चाहिए, और तब उसने अपने प्रिय पुत्र को भेजा। उसने सोचा की वे उसका पुत्र है इसलिये वे उसका आदर अवश्य ही करेगें।
जब मालिक का पुत्र पहूंचा तो ठेकेदारों ने उसे आता देख सोचा अरे यह तो मालिक का बेटा है , अगर हम इसे मार डालेगें तो सारी जायदाद हमारी हो जाएगी। उन लोगों ने योजना बनाई और मालिक के बेटे को मार डाला।
अब मालिक क्या करेंगा। मालिक को बहुत गुस्सा आया और उसने उन ठेकेदारों को मार डाला और अंगूर की बारी दूसरे को दे दी " .
इतना कहते हुए प्रभु यीशु उन धर्मशास्त्रियों के पास गए और कहने लगे, इसका क्या अर्थ हुआ।
यही की जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने बेकार समझकर नकार दिया था वही पत्थर सर्वश्रेष्ठ निकला। यदि इस पत्थर पर कोई गिरेगा तो वे चकनाचूर हो जायेगा, और ये पत्थर किसी पर गिरेगा तो वे पीस कर रख देगा। यह कहते हुए उन्होंने उन धर्मशास्त्रियों को परमेश्वर के सन्देश से अवगत कराया।
कुछ दिनों बाद फसई का पर्व आया। इस पर्व के लिए भोजन का बंदोबस्त करने लिए उन्होंने अपने कुछ शिष्यों को भेजा। जब प्रभु अपने शिष्यों के साथ भोजन करने बैठे तब वे बोले, मैं चाहता था की दुखः भोगने से पहले मैं ये भोजन तुम्हारे साथ करूं। परन्तु मैं ये तब तक नहीं करूंगा जब तक परमेश्वर का राज्य नहीं आ जाता। उन्होंने अंगूर के रस का प्याला अपने शिष्यों को दिया और कहा इसे आपस में बाँट लो। और फिर रोटी के दो टुकड़े कर उन्हें भी ऐसे ही बाँट दिया और कहा मेरी याद में ऐसा ही किया करों।
उन्होंने आगे कहा - अब वह समय आ गया है जब मेरे बारे में की गई हर भविष्यवाणी पूरी होगी। मुझे पकड़वाने वाला यही मेरे साथ बैठा है।
इतना सुनते ही सब आश्चर्यचकित थे की वह कौन हो सकता है। उन्होंने पूछा , प्रभु वो कौन है।
प्रभु बोले , मेरे लिए तो जैसा भविष्यवक्ताओं ने लिखा है कि मुझे दूसरी जाती के लोगो के हाथों सौंपा जायेगा। मुझे अपमानित , जलील कर कोड़े बरसायें जायेंगे , और मुझे मार ड़ाला जायेगा। तभी पतरस बोले गुरूजी मैं आपके साथ ही रहुँगा। मैं आपके साथ मरने के लिए भी तैयार हूँ। तभी प्रभु ने कहा सुनों पतरस, मैं कहता हूँ कि कल मुर्गे की बांग के पहले तुम तीन बार इंकार करोगें कि तुम मुझे नहीं जानते हों। यह सुन पतरस हैरान था, वो सोच रहा था की ये कैसे हो सकता है
प्रभु बोले, शैतान तुम सबकी परीक्षा लेना चाहता है, वो तुम्हे उसी प्रकार अलग करना चाहता है जैसे गेहूं को भूसी से अलग किया जाता है। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करूँगा की तुम सबका विश्वाश न डगमगाए। परमेश्वर तुम्हे परीक्षा में न डालें।
जब वे येरुशलम की और जा रहे थे तब उनके साथ भीड़ भी चल रही थी। रास्ते के किनारे एक भिखारी बैठा था, जो की अँधा था । उसे जब इतने लोगो की आहट सुनाई दी तो उसने पूछा यहाँ क्या हो रहा है, कौन जा रहा है, सुनों भाई यहाँ क्या हो रहा है। कोई मुझे भी बताओं। तभी एक व्यक्ति बोला यीशु मसीह यहाँ से जा रहे है। इतना सुनते ही वो व्यक्ति जोर से चिल्लाया येशु, प्रभु येशु मेरी मदद करों।
उस भिखारी की पुकार सुनकर प्रभु रुक गए। तब एक व्यक्ति उस भिखारी को सहारा देकर प्रभु के पास लेकर आया। भिखारी ने प्रभु यीशु से कहा, प्रभु मेरी सहायता कीजिये।
प्रभु ने कहा बताओं में तुम्हारे लिए क्या करू। भिखारी ने तुरंत कहा मैं फिर से देखना चाहता हूँ। तब प्रभु यीशु ने उसकी दोनों आँखों पर हाथ रखा और बोले लो देखो। और उस भिखारी को सब कुछ दिखाई देने लगा। वह बहुत खुश होकर चिल्ला रहा था, मै फिर से देख सकता, मैं प्रभु की कृपा से फिर से देख सकता हूँ।
येरुशलम जाते समय लोगो की भीड़ उनके साथ साथ चल रही थी, वे सभी यीशु को अपना राजा मान चुके थे। उनसे परमेश्वर के राज्य के बारे में जानने के लिए उत्सुक थे। उनकी जय जयकर कर रहे थे। और प्रभु यह जानते हुए भी की वही पर उनकी मृत्यु होगी, दृढ़निश्चय के साथ आगे बढ़ रहे थे । वे जानते थे की येरुशलम में उन्हें दूसरी जाती के लोगों को सौंपा जायेगा, जो उनका मजाक बनाएंगे, उनका अपमान करेगें , उन्हें कोड़ो से मारेगें और फिर चारों और से घेराबन्दी कर उन्हें यही दफन कर देगें। परन्तु तीसरे दिन वे मृतकों में से जी उठेगें। यह बात वो अपने शिष्यों को कई बार बता भी चुके थे। और उनसे कहते थे की तुम परमेश्वर से प्रार्थना करना की वे तुम्हारा विश्वास बनाये रखे। वे तुम्हे परीक्षा में न डालें।
यरूशलेम पहुंचने पर उन्होंने देखा की वो स्थान अब व्यापर का केंद्र बन चुका है। यह देख कर उन्हें बहुत दुखः हुआ। वे बहुत क्रोधित हुए और बोले, यह लिखा है की मेरा घर प्रार्थना का घर होगा, परन्तु तुम लोगो ने उसे व्यापार का खोह बना दिया। यह कहते हुए उन्होंने वहां रखे व्यापारियों के सामान को फेक दिया। भेड़ - बकरियों को कैद से आजाद कर दिया। पक्षियों के पिंजरे खोल दिए, ताकि वे कैद से आजाद हो जाये। इन सबसे वहां के लोगों में उनका विरोध बढ़ने लगा। पर इन सब के बावजूद यहूदियों में उनके अनुयायिओं की संख्या भी बढ़ती जा रही थी। यह सब देख कर वहां के राजनीतिज्ञों और कुछ धर्मशास्त्रियों में भी उनका विरोध बढ़ने लगा। क्योंकि लोग उन्हें अपना राजा मानाने लगे थे। जिससे उनकों भय था की यदि उनके अनुयायी दिन- प्रतिदिन इसी तरह बढ़ते गए तो हमारा क्या होगा।
एक बार सब चुंगी दे रहे थे कि तभी एक वृद्ध महिला ने दों सिक्के रखे। तब उसे ज्यादा चुंगी देने के लिए कहा गया। यह सब प्रभु देख रहे थे। तब वो बोले "मैं कहता हूँ इस वृद्ध स्त्री ने सबसे ज्यादा दिया है, क्योंकि सबने अपनी कमाई का आधा हिस्सा ही दिया है जबकि उस वृद्ध महिला ने उसकी जो कुछ कमाई थी वो सब यहाँ दे दिया है "
तभी कुछ धर्मशास्त्रियों ने उनसे पूछा, आप यह सब किस अधिकार से बोल रहे हो। तब प्रभु ने भी उनसे पूछा , तुम बताओ यहुन्ना को बपतिस्मा देने का अधिकार परमेश्वर से मिला है या लोगों से। यह सुनकर धर्मशास्त्री चुप हो गए। और कुछ देर बाद बोले, हमें नहीं पता। तब प्रभु ने कहा तो मैं भी नही बताता की ये सब मैं क्यों करता हूँ। (यहुन्ना लोगों को पानी से बपतिस्मा देते थे , यह अधिकार उन्हें परमेश्वर से मिला था। परन्तु उन्हें बंदी बना लिया गया था। (बपतिस्मा - सार्वजनिक रूप से अपने पापों का प्रायश्चित करना ) )
तब वहां खड़े लोगो और धर्मशास्त्रियो से उन्होंने कहा " एक बार एक व्यक्ति ने अंगूर की बारी लगाई और उसे कुछ ठेकेदारों को देखरेख के लिए दे दिया। जब अंगूर इकठ्ठा करने का समय आया तो उसने अपना एक सेवक भेजा ताकि उसे उसका हिस्सा मिल सके, लेकिन ठेकेदारों ने उसे मार- पीट कर भगा दिया, तब मालिक ने दूसरे सेवक को भेजा, ठेकेदारों ने उसे आया देख उसे भी खूब पीटा और भगा दिया। तब मालिक ने तीसरे सेवक को भेजा लेकिन ठेकेदारों ने उसके साथ भी वही किया। मालिक परेशान हो गया की अब उसे उसका हिस्सा कैसे मिलेगा, उसे क्या करना चाहिए, और तब उसने अपने प्रिय पुत्र को भेजा। उसने सोचा की वे उसका पुत्र है इसलिये वे उसका आदर अवश्य ही करेगें।
जब मालिक का पुत्र पहूंचा तो ठेकेदारों ने उसे आता देख सोचा अरे यह तो मालिक का बेटा है , अगर हम इसे मार डालेगें तो सारी जायदाद हमारी हो जाएगी। उन लोगों ने योजना बनाई और मालिक के बेटे को मार डाला।
अब मालिक क्या करेंगा। मालिक को बहुत गुस्सा आया और उसने उन ठेकेदारों को मार डाला और अंगूर की बारी दूसरे को दे दी " .
इतना कहते हुए प्रभु यीशु उन धर्मशास्त्रियों के पास गए और कहने लगे, इसका क्या अर्थ हुआ।
यही की जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने बेकार समझकर नकार दिया था वही पत्थर सर्वश्रेष्ठ निकला। यदि इस पत्थर पर कोई गिरेगा तो वे चकनाचूर हो जायेगा, और ये पत्थर किसी पर गिरेगा तो वे पीस कर रख देगा। यह कहते हुए उन्होंने उन धर्मशास्त्रियों को परमेश्वर के सन्देश से अवगत कराया।
कुछ दिनों बाद फसई का पर्व आया। इस पर्व के लिए भोजन का बंदोबस्त करने लिए उन्होंने अपने कुछ शिष्यों को भेजा। जब प्रभु अपने शिष्यों के साथ भोजन करने बैठे तब वे बोले, मैं चाहता था की दुखः भोगने से पहले मैं ये भोजन तुम्हारे साथ करूं। परन्तु मैं ये तब तक नहीं करूंगा जब तक परमेश्वर का राज्य नहीं आ जाता। उन्होंने अंगूर के रस का प्याला अपने शिष्यों को दिया और कहा इसे आपस में बाँट लो। और फिर रोटी के दो टुकड़े कर उन्हें भी ऐसे ही बाँट दिया और कहा मेरी याद में ऐसा ही किया करों।
उन्होंने आगे कहा - अब वह समय आ गया है जब मेरे बारे में की गई हर भविष्यवाणी पूरी होगी। मुझे पकड़वाने वाला यही मेरे साथ बैठा है।
इतना सुनते ही सब आश्चर्यचकित थे की वह कौन हो सकता है। उन्होंने पूछा , प्रभु वो कौन है।
प्रभु बोले , मेरे लिए तो जैसा भविष्यवक्ताओं ने लिखा है कि मुझे दूसरी जाती के लोगो के हाथों सौंपा जायेगा। मुझे अपमानित , जलील कर कोड़े बरसायें जायेंगे , और मुझे मार ड़ाला जायेगा। तभी पतरस बोले गुरूजी मैं आपके साथ ही रहुँगा। मैं आपके साथ मरने के लिए भी तैयार हूँ। तभी प्रभु ने कहा सुनों पतरस, मैं कहता हूँ कि कल मुर्गे की बांग के पहले तुम तीन बार इंकार करोगें कि तुम मुझे नहीं जानते हों। यह सुन पतरस हैरान था, वो सोच रहा था की ये कैसे हो सकता है
प्रभु बोले, शैतान तुम सबकी परीक्षा लेना चाहता है, वो तुम्हे उसी प्रकार अलग करना चाहता है जैसे गेहूं को भूसी से अलग किया जाता है। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करूँगा की तुम सबका विश्वाश न डगमगाए। परमेश्वर तुम्हे परीक्षा में न डालें।
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