जब शान से लहराता हूँ मैं।
सर गर्व से अपना ऊँचा कर ,
जग को ये गान सुनाता हूँ मैैं।।
जग को ये गान सुनाता हूँ मैैं।।
उस लोकतंत्र का प्रतीक हूँ मैं ,
जहाँ भिन्न धर्म भिन्न जाती है।
उस लोकतंत्र का प्रतीक हूँ मैं ,
जहां कई भाषा बोली जाती है।।
मेरा देश अनेक रंगों से रंगा ,
भिन्न संस्कृतियों का यहाँ है, मेला ।
पर हर शख्स के सर का ताज हूँ मैं ,
हर भारतीय का स्वाभिमान हूँ मैं ।।
उत्तर से लेकर दक्षिण तक,
पूर्व से लेकर पश्चिम तक ,
हर जगह परचम लहराता हूँ मैं।
हर एक हिंदुस्तानी के दिल में ,
अपना एक घर बनाता हूँ मैं ।।
अब तक तुम मुझकों जान गए ,
मैं जानता हूँ पहचान गये,
पर अपना नाम बताता हूँ मैं ।
जिस देश को कहते, भारत माता ,
उस देश का तिरंगा कहलाता हूँ मैं ,
उस देश का तिरंगा कहलाता हूँ मैं ।।
जय हिन्द
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