महात्मा गांधी/Mahatma Gandhi
Mahatma Gandhi date of birth :-
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात स्थित काठियावाड़ के पोरबन्दर में हुआ था। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गांधी था। बापू ने इंग्लैंड से कानून की शिक्षा ग्रहण की और बैरिस्टर बने। 1915 में वे भारत लौटे।
महात्मा गांधी सन् 1894 से 1914 ई. तक अफ्रीका में रहे। वहां जातीय भेदभाव के विरुद्ध सत्याग्रह किया और सफल हुए। सन् 1915 में वे भारत आये और राजनीति में प्रवेश किया।
1915 ई. में ही अंग्रेजी सरकार ने महात्मा गांधी को कैसर-ए-हिन्द की उपाधि से सम्मानित किया।
गांधी जी जब भारत आये तब भारत अंग्रेजो की गुलामी से जूझ रहा था।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष में वैसे तो कई महान स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान गवांयी। लेकिन महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा का मार्ग अपना कर अंग्रेजों को विवश कर दिया की वे भारत को गुलामी की जंजीरो से मुक्त करें।
महात्मा गांधी के आंदोलन :-
महात्मा गांधी का राजनीतिक जीवन/ राजनीतिक दर्शन :-
1. महात्मा गांधी ने भारतीय राजनीती में प्रविष्ट करने के बाद सन् 1916 में अहमदाबाद के समीप साबरमती आश्रम की स्थापना की।
2. दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह का सफल प्रयोग करने के बाद भारत में सन् 1917 में बिहार के चंपारण में किसान आंदोलन चलाया। यह भारत में उनका पहला सत्याग्रह था। इस सत्याग्रह ने गांधीजी के जीवन को और उनकी राजनीती को एक नई दिशा दे दी।
चंपारण के किसानो पर हो रहे अंग्रेजों के अत्याचरों से किसानों को मुक्ति दिलाने मे एक किसान राजकुमार शुक्ल का बहुत बड़ा हाथ था। जब 1916 में गांधीजी कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेने के लिए लखनऊ पहुंचे तब वहां एक किसान गांधीजी से मिला और उन्हें चंपारण के किसानों के हालात से अवगत कराया एवं चंपारण आने का आग्रह किया। लेकिन तब गांधीजी ने उस किसान की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। लेकिन वो किसान लगातार गांधीजी के पीछे हर जगह जाकर चंपारण आने का आग्रह करता रहा और किसानों की समस्याओं से उन्हें अवगत कराता रहा। इसका नतीजा यह हुआ की गांधीजी चंपारण गए, और वहां के किसानों पर हो रहे अंग्रेजों के अत्याचार और जबरन करायी जा रही नील की खेती से मुक्ति दिलाने के लिए सत्याग्रह किया और चार माह के अथक प्रयास से वहां के किसानों को नील की खेती करने से मुक्ति दिलाई। चंपारण विद्रोह के कारण अंग्रेजों को तीनकठियां प्रथा समाप्त करनी पड़ी। यहीं से उन्हें महात्मा की उपाधि मिली।
3. 1918 में महात्मा गांधी ने अहमदाबाद में पहली बार मिल मजदूरों के समर्थन में भूख हड़ताल की। और 1918 में ही गुजरात के खेड़ा जिले में "कर नहीं आंदोलन" चलाया।
4. 1919 के बाद गांधीजी ने अग्रेजों का खुलकर विरोध करना शुरू कर दिया था। 1919 में अंग्रेजों ने क्रन्तिकारी गतिविधियों को रोकने के लिए एक कानून बनाया जो रौलेट एक्ट के नाम से जाना जाता है।
रौलेट एक्ट कानून :- क्या था रौलेट एक्ट कानून -
भारत में क्रन्तिकारी गतिविधियों को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार ने न्यायाधीश रौलेट की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की। इस समिति द्वारा विधेयक पारित किया गया जो रौलेट एक्ट के नाम से सामने आया। 21 मार्च 1919 ई. को इसे लागू किया गया। इस कानून के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को सन्देह मात्र होने पर गिरफ्तार किया जा सकता था या गुप्त मुकदमा चलाकर अपराधी को दण्डित किया जा सकता था। इस कानून का पूरे देश में विरोध हुआ, और इसे काला कानून कहा गया।
इस कानून के विरोध में महात्मा गांधी ने 6 अप्रैल 1919 में देशव्यापी हड़ताल की। जुलूस निकाले गए। ब्रिटिश सरकार ने गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया और बम्बई भेज दिया। इसके बाद लोगों में बहुत अधिक विद्रोह फैल गया। अंग्रेज सरकार ने इस विद्रोह को दबाने के लिए दो और प्रसिद्ध नेताओं डाँ. सत्यपाल और डाँ. किचलु को गिरफ्तार कर अज्ञात स्थान पर भेज दिया। जिससे विद्रोह और अधिक भड़क गया।
जलियांवाला बाग हत्याकांड (jaliyawala bag hatyakand) :-
इसी विद्रोह के चलते अमृतसर का शासन सैनिक अधिकारीयों को सौंप दिया गया। 13 अप्रैल 1919, बैसाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया। सभा के बीच में ही अंग्रेज जनरल, डायर ने उसे गैर क़ानूनी घोषित कर बिना चेतावनी भीड़ पर गोली चलवा दी, जिससे कई बेकसूर लोग मारे गए। कई लोग घायल हो गए। इसी घटना को जलियाँवाला बाग हत्याकांड कहा गया।
असहयोग आंदोलन (Ashyog andolan) :-
रौलेट एक्ट, जलियाँवला बाग हत्याकांड, खिलाफत आंदोलन के उत्तर में 1 अगस्त 1920 को गांधीजी ने असहयोग आंदोलन प्रारंम्भ किया। इस आंदोलन के तहत भारत की अपार जनता गांधीजी के पीछे चल पड़ी। इस आन्दोलन के चलते जलियांवाला बाग हत्याकांड का विरोध करते हुए आन्दोलनकारियों ने सरकारी उपाधियां लौटा दी। गांधीजी ने कैसर-ए-हिंद की उपाधि, रवीन्द्रनाथ टैगोर ने सर की उपाधि, जमनालाल बजाज ने रॉय बहादुर की उपाधि लौटा दी। वकीलो ने अदालतों का बहिष्कार किया। विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार कर जगह जगह विदेशी वस्त्रों की होली जलायी गयी। देशी वस्त्रों को अपनाया गया। कह सकते है की असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था। लेकिन चौरी-चौरा कांड के बाद गांधी जी ने इस आंदोलन को स्थगित करने का फैसला लिया।
चौरी-चौरा कांड:-
क्या था चौरी-चौरा कांड, जिसने गांधीजी को असहयोग आंदोलन स्थगित करने पर मजबूर कर दिया।
5 फरवरी 1922 को उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा नामक स्थान पर कुछ असहयोग आंदोलनकारी एक जुलूस निकाल रहे थे, जिसे पुलिस ने रोकने का प्रयास किया। जिससे जनता और पुलिस के बीच मुठभेड़ हो गयी। इसके बाद उत्तेजित भीड़ ने थाने में आग लगा दी। जनता के इस हिंसात्मक कार्यवाही से थाने में 21 सिपाही और एक हवलदार जलकर खत्म हो गए। इस घटना ने गांधीजी को झकझोर दिया और उन्होंने असहयोग आंदोलन स्थगित करने का फैसला लिया , क्योंकि वे हिंसा नही चाहते थे। इसके बाद 10 मार्च 1922 को गांधीजी को ब्रिटिश सरकार ने 6 साल के लिए जेल भेज दिया। लेकिन बीमारी के कारण 5 फरवरी 1924 को उन्हें रिहा कर दिया गया।
दांडी मार्च और सविनय अवज्ञा आंदोलन :-
असहयोग आंदोलन के असफल होने के बाद गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा निर्धारित लगान, मद्य-निषेध, नमक कर, सैनिक व्यय संबंधी नीतियों के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारम्भ किया। गांधीजी अपने 79 समर्थको के साथ 12 मार्च 1930 को गुजरात प्रदेश के समुद्र तट पर दांडी नामक स्थान की ओर नमक कानून तोड़ने के लिए चल दिए। साबरमती आश्रम से दांडी समुद्र तट की 200 मील की यात्रा 24 दिन में पैदल चलकर तय की। 5 अप्रैल 1930 को वे दांडी पहुँच गए, और 06 अप्रैल को सुबह प्रार्थना के बाद उन्होंने नमक बना कर नकम कानून तोडा। इस यात्रा में सरदार पटेल भी साथ थे। इसके बाद मई 1930 में गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया। 1931 में गांधी इरविन पैक्ट के बाद गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित कर दिया।
"सुभाष चन्द्र बोस ने गांधीजी के नमक सत्याग्रह की तुलना नेपोलियन के एल्बा से पेरिस यात्रा से की "
भारत छोड़ो आंदोलन (1942):-
09 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई जिसमे गांधीजी ने " करों या मरों " का नारा दिया। इसी दिन गांधीजी और अन्य कांग्रेस के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, परन्तु शीघ्र ही यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया। जो की 1944 तक चला जिसे बाद में अंग्रेजो ने दबा दिया गया। भारत छोड़ो आंदोलन में ही गांधीजी ने कहा था की "मेरे जीवन का यह अंतिम संघर्ष होगा" ।
30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की गोली मार कर हत्या कर दी।
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