विभिन्न स्थलाकृतियाँ : पर्वत, पठार और मैदान | Mountain, Plateau or Plain
विभिन्न स्थलाकृतियाँ:-
हमारी पृथ्वी पर अनगिनत प्रकार के स्थल रूप देखने को मिलते है। स्थलमंडल के कुछ भाग ऊंचे नीचे तथा कुछ समतल होते है। पृथ्वी की सतह सभी जगह एकसमान नहीं होती है। और इसका मुख्य कारण है पृथ्वी के अंदर धीरे धीरे लगातार होने वाली गति।
पृथ्वी के अंदर लगातार गति होती है। इसलिए स्थलमंडल में विभिन्न स्थलरूप देखने को मिलते है, ये स्थलरुप दो प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप बनते है।
1) प्रथम या आंतरिक प्रक्रिया के कारण बहुत से स्थानों पर पृथ्वी की सतह कही कहीं ऊपर उठ जाती है और कही कही से नीचे धंस जाती है ।
2) दूसरी या बाह्य प्रक्रिया पृथ्वी के स्थल के लगातार टूटने एवं बनने की प्रक्रिया होती है। यह दो तरह से होती है अपरदन और निक्षेपण। और यह दोनों प्रक्रिया बहते हुए जल, वायु तथा बर्फ के द्वारा होती है।
🔹अपरदन :- जब पृथ्वी की सतह टूटकर घिस जाती है तो उसे अपरदन कहते है। अपरदन की क्रिया के द्वारा सतह नीचे हो जाती है।
🔹निक्षेपण :- निक्षेपण की प्रक्रिया के द्वारा सतह का फिर से निर्माण होता है।
आंतरिक प्रक्रिया और बाह्य प्रक्रिया के कारण ही विभिन्न स्थलरुप बनते है निर्माण के आधार पर स्थलाकृतियां तीन प्रकार की होती है
1.पर्वत
2.पठार
3.मैदान
1. पर्वत
➤ पर्वत किसे कहते है? :-
पर्वत पृथ्वी की सतह की वह प्राकृतिक ऊंचाई है, जो अपने आस पास के क्षेत्र से बहुत ऊंचे होते है। पर्वतों का शिखर छोटा होता हैं अर्थात उसके शीर्ष वाले भाग की चौड़ाई कम होती और आधार चौड़ा होता है। कुछ पर्वत या पहाड़ बादलों से भी ऊंचे होते है। कुछ पर्वतों पर बर्फ की नदियां हमेशा जमी रहती है। कुछ पर्वत समुद्र के भीतर होते हैं जिन्हें हम देख नही पाते है।
➤ पर्वत निर्माण से सबंधित विभिन्न सिद्धांत है:-
1. भू संतति का सिद्धांत - कोबर
2. तापीय संकुचन सिद्धांत - जेफ्रीज
3. महाद्वीपीय फिसलन सिद्धांत - डेली
4. महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत -वेगनर
5. संवहन तरंग सिद्धांत - होम्स
6. रेडियो एक्टिविटी सिद्धांत - जोली
7. प्लेट विर्वतनिक सिद्धांत - हैरी हेस, मैकेजी
➤ पर्वत कितने प्रकार के होते है :-
उत्पत्ति के अनुसार पर्वत चार प्रकार के होते है।
(a) ब्लॉक पर्वत (Block mountain).
(b) अवशिष्ट पर्वत (Residual Mountain).
(c) संचित पर्वत (Accumulated Mountain).
(d) वलित पर्वत (Fold Mountain).
(a) ब्लॉक पर्वत (Block mountain):
🔹ब्लॉक पर्वत को भ्रंशोत्थ पर्वत भी कहते है। जब चट्टानों में स्थित भ्रंश के कारण मध्य भाग नीचे धंस जाता है। तथा अगल-बगल के भाग ऊंचे उठे प्रतीत होते है या बहुत बड़ा भाग टूट जाता है। और उर्ध्वाधर रूप से विस्थापित हो जाता है तो ब्लॉक पर्वत/भ्रंशोत्थ पर्वत कहलाते है। बीच में धंसे भाग को रिफ्ट घाटी कहते है इन पर्वतों के शीर्ष समतल तथा किनारे तीव्र भ्रंश कागरों से सीमित होते है। इस प्रकार के पर्वत के उदाहरण है - वॉस्जेस (फ्रांस), ब्लैक फॉरेस्ट (जर्मनी), सॉल्ट रेंज (पाकिस्तान)।
नोट :- विश्व की सबसे लंबी रिफ्ट घाटी जॉर्डन नदी की घाटी है, जो लाल सागर की बेसिन से होती हुई जेंबजी नदी तक 4800 किमी लंबी है।
(b) अवशिष्ट पर्वत (Residual Mountain):-
🔹ये पर्वत
चट्टानों के अपरदन (अर्थात सतह के टूट कर घिसने के कारण) के फलस्वरूप निर्मित होते
है. जैसे -विंध्याचल
एवं सतपुडा, पारसनाथ, राजमहल
की पहाड़ियां, निलगिरि की पहाड़ियां (भारत) सियरा (स्पेन),
गैसा एवं बूटे (अमेरिका)।
(c)संचित पर्वत (Accumulated Mountain)
🔹भूमी की सतह पर मिट्टी, बालू, कंकर, पत्थर, लावा के एक ही स्थान पर जमा होते रहने के कारण बनने वाला पर्वत संचित पर्वत कहलाता है। रेगिस्तान में बनने वाले बालू के स्तूप इसी श्रेणी में आते है।ज्वालामुखी पर्वत भी इसी श्रेणी में आते है। ये ज्वालामुखी क्रियाओं में निकले विभिन्न पदार्थो के जमने से बनते है। जैसे अफ्रीका का (माउंट किलिमंजारो) तथा जापान का (फ्युजियामा)।
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(d) वलित पर्वत (Fold Mountain):-
🔹वलित पर्वत पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों से धरातल की चट्टानो के मुड़ जाने से बनते है। ये लहरदार पर्वत होते है जिन पर असंख्य अपनतियां और अभिनतियां होती है। जैसे : हिमालय, आल्पस, रॉकीज, एंडीज, यूराल आदि।
🔹वलित पर्वतों के निर्माण का आधुनिक सिद्धांत प्लेट टेक्टोनिक (Plate Tectonics) की संकल्पना पर आधारित है। वलित पर्वत तब बनते है जब पृथ्वी की टेक्टोनिक चट्टानें एक दूसरे से टकराती है। या सिकुड़ती है। जिससे पृथ्वी की सतह में मोड़ के कारण उभार आ जाता है। दुनिया के लगभग सभी बड़े और ऊंचे पर्वत युवा मोड़दार पर्वत है।
🔹आज जहां हिमालय पर्वत खड़ा है। वहां किसी समय टेथीस सागर नामक विशाल भू-अभिनति अथवा भू द्रोणी थी। दक्षिण पठार के उत्तर की ओर विस्थापन के कारण टेथीस सागर में बल पड़ गए और वह ऊपर उठ गया। जिससे संसार के सबसे ऊंचा पर्वत हिमालय का निमार्ण हुआ।
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वालित पर्वत हिमालय
🔹भारत का अरावली पर्वत विश्व का सबसे पुराना वलीत पर्वतों में गिना जाता है इसकी सबसे ऊंची चोटी माउंट आबू के निकट गुरुशिखर है। जिसकी समुद्रतल से ऊंचाई 1722 मी. है। कुछ विद्वान अरावली पर्वतों को अवशिष्ट पर्वत का उदाहरण मानते है।
🔹उत्तरी अमेरिका के अल्पेशियन एवं रूस के यूराल पर्वत गोलाकार दिखाई देते है। ये बहुत पुराने वलित पर्वत है।
➤ पर्वत के लाभ:-
🔹 पर्वत जल के संग्रहागार होते है। बहुत से नदियों का स्त्रोत पर्वतों में स्थित हिमानियों (पर्वतों पर बर्फ की जमी नदियां) में स्थित होता है।
🔹पर्वतों के जल का उपयोग सिंचाई तथा पनबिजली के उत्पादन में भी किया जाता है।
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2. पठार (Plateau) :-
➤पठार किसे कहते है?
🔹पृथ्वी की धरातल का वह विशिष्ट स्थल रूप अर्थात वह स्थान, जो अपने आस पास के स्थल से पर्याप्त ऊंचा होता है। और उसका शीर्ष भाग अर्थात ऊपर का भाग चौड़ा और सपाट (Flat) होता है। पठार कहलाता हैं। किसी पठार के एक या एक से अधिक किनारे होते है, जिनके ढाल खड़े होते है। सामान्यतः पठार की ऊंचाई 300 फीट से लेकर 500 फीट तक होती है।कुछ पठार जिनकी ऊंचाई बहुत अधिक है जैसे:-
▫️ भारत में दक्कन का पठार पुराने पठारों में एक है.
▫️ तिब्बत का पठार(16,000 फीट) यह विश्व का सबसे ऊंचा पठार है.
▫️ बोलीविया का पठार (12,000 फीट).
▫️ कोलंबिया का पठार (7,800 फीट).
➤ पठार के प्रकार - पठार निम्न प्रकार के होते है:-
(b) पर्वतपदीय पठार:- पर्वततल और मैदान के बीच उठे समतल भाग।
(c) महाद्वीपीय पठार:- जब पृथ्वी के अंदर जमा लैकोलिथ भू-पृष्ठ अर्थात भूमि की सतह के अपरदन के कारण सतह पर उभर आते है तब ऐसे पठार बनते है।
(e) गुंबदाकार पठार:- चलन क्रिया के फलस्वरूप निर्मित पठार। उदा. भारत में रामगढ़ गुम्बद।
➤ पठार के लाभ:-
🔹पठार बहुत उपयोगी होते है। इनमे खनिजों की प्रचुर मात्रा पाई जाती है।
🔹भारत में स्थित छोटा नागपुर के पठार में लोहा, कोयला, तथा मैगनीज के बहुत बड़े भंडार पाए जाते है। अफ्रीका का पठार हीरे और सोने के लिए प्रसिद्ध है।
🔹लावा पठारों में काली मिट्टी की प्रचुरता होती है।
3) मैदान (Plain):-
🔹 500 फीट से कम ऊँचाई वाले भूपृष्ठ के समतल भाग को मैदान कहते है। अधिकांश मैदान नदियों और उनकी सहायक नदियों के द्वारा बनते है।
🔹 नदियां जब पर्वतों की ढालों पर नीचे की ओर बहती है तो उन्हें अपरदित कर देती है। और इन अपरदित पदार्थो (जैसे:- पत्थर, बालू, सिल्ट) को अपने साथ साथ आगे की ओर ले जाती है। और घाटियों में निक्षेपित कर देती है या छोड़ देती है। इन्ही निक्षेपों से मैदानों का निर्माण होता है।
➤ मैदान के प्रकार :- मैदान कई प्रकार के होते है।
1) अपरदनात्मक मैदान - नदी, हिमानी, पवन जैसी शक्तियों के अपरदन से इस प्रकार के मैदान बनते है निम्न प्रकार के मैदान अपरदनात्मक मैदान कहलाते है।
🔹समप्राय मैदान: समुद्र तल के निकट स्थित मैदान, जिनका निर्माण नदियों के अपरदन के फलस्वरूप होता है।
2) निक्षेपात्मक मैदान :- नदी निक्षेप द्वारा बड़े बड़े मैदानों का निर्माण होता है। नदियों द्वारा बनाए गए बड़े मैदानों में एशिया में स्थित भारत में गंगा एवं ब्रह्मपुत्र का मैदान है सतलज, मिसीसिपी, ह्वांग्हो के मैदान प्रमुख हैै। इस प्रकार के मैदानों में जलोढ़ का मैदान, डेल्टा का मैदान प्रमुख है।
विभिन्न कारकों द्वारा निर्मित स्थलाकृति :-
1) भूमिगत जल द्वारा निर्मित स्थलाकृति :- उदाहरण:- उत्सुुत कुआँ (Artision well) (सर्वाधिक उत्सुत कुआँ ऑस्ट्रेलिया में पाया जाता है) डोलाइन, युवाला, कार्स्ट झील, घोल रंध, पोलिए, कंदरा।
2) हिमनद द्वारा निर्मित स्थलाकृति :- ड्रमलिन- ड्रमलिन मुख्य रूप से समूह में मिलते हैं इसी कारण ऐसी स्थलाकृति को "अंडे की टोकरी की स्थलाकृति (Basket of egg topography)" कहते है। सर्क, नुनाटक, हार्न, अरेट।
3) सागरीय जल द्वारा निर्मित स्थलाकृति :- सर्फ, टोम्बोलो, वेला चली, तंगरिका।
4) पवन द्वारा निर्मित स्थलाकृति :- लैगून, यारडंग, इनसेलबर्ग, छत्रक, प्लेया, लोएस।
5) समुद्री तरंग द्वारा निर्मित स्थलाकृति :- लैगून झील, रिया तट (भारत का पश्चिमी तट), डाल्मेशियन (युगोस्लविया का तट)।
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